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इस जगह में नदी से लेकर पेड़ तक सब है विचित्र

बेलपत्र ही डूबते हैं कुंड में, जल करता है परिक्रमा नदी के विपरीत दिशा में उगी हैं वृक्षों की शाखाएं

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Everything from the river to the tree is bizarre in this place  

इस जगह में नदी से लेकर पेड़ तक सब है विचित्र

राहतगढ़. सागर जिले के राहतगढ़ से करीब 7 किमी दूर एक सिद्ध तपोभूमि स्थल है जहां से निकली बीना नदी की धार के कुंड में बेलपत्र के पत्ते डूब जाते हैं, खंडित बेल पत्र नहीं डूबते और अन्य किसी वृक्ष के पत्ते नहीं डूबते। इस स्थान को गिरिजा दहार कहा जाता है बताया जाता है कि माता पार्वती ने शिव को पति रूप में पाने साधना की थी। यहां पर एक कुंड है जो काफी गहरा है। इसकी गहराई में भगवान शिव और माता पार्वती का एक मंदिर है। यही कारण है कि जो भी बिल्व पत्र चढ़ाए जाते हैं वह कुंड की गहराई में बने मंदिर में भगवान शिव और माता पार्वती को अर्पित हो जाता है। एक और बड़ी विशेषता है कि बीना नदी पश्चिम की ओर बह रही है लेकिन नदी किनारे लगे हुए वृक्ष की शाखाएं विपरीत दिशा पूरब की ओर है यह भी एक सोचने वाली बात है लोग बताते हैं कि कितनी पानी आए लेकिन इस कुंड का परिक्रमा लगाकर ही वह जल आगे जाता है इसीलिए यह शाखाएं जिस ओर से पानी आता है उस ओर ही मुड़ी हुई है।

यहां सिद्ध पुरुष बड़े साहब का निवास हुआ करता था जिन्होंने करीब साढे तीन सौ वर्ष की आयु में समाधि ली थी। उनकी समाधि के उपरांत बाद में मझले साहब दयाल दास जी इस तपोभूमि पर रहे। मझले साहब के शिष्य डब्बु महाराज अभी देख रेख कर रहे हैं।
भावसिंह रेकवार ने बताया कि मझले साहिब जी जब कभी भी नदी में नहाने जाते थे तो कई घंटों पानी के अंदर ही रहा करते थ। बहुत वर्षों पहले जब इस स्थान पर भंडारा चल रहा था और घी खत्म हो गया तो साहिब जी ने कहा जाओ नदी से एक पीका जल भरकर कड़ाही में डाल दो और जब घी आ जाए तो वापस नदी में डाल कर वापस कर देना जल कढ़ाई में डाला तो उससे पूऱी निकल गई। पुजारी बताते हैं कि जब बड़े साहिब जी ने समाधि ली तो 11 मगर जल से ऊपर आकर घाट पर काफी देर तक विलाप करते रहे रहे थे यह भी खास बात है कि यहां मगरमच्छों ने कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया है।