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यदि यही रहा हाल तो कुछ वर्षों में ही हो जाएंगे सरकारी स्कूल बंद, जानें कारण

कई योजनाओं पर करोड़ों रुपए खर्च होने के बाद भी नहीं हो रहा सुधार

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सागर

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Anuj Hazari

Aug 10, 2018

If this is the case, it will happen within a few years

If this is the case, it will happen within a few years

बीना. सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने और स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़े इसके लिए कईयोजनाओं पर करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। इसके बाद भी अभिभावकों का रुझान सरकारी स्कूलों की तरफ नहीं दिख रहा है। जिसका जीता जागता उदाहरण है हर साल प्राथमिक, माध्यमिक स्कूलों की घटती दर्ज संख्या। सरकारी स्कूलों में व्याप्त अनियमितताओं को दूर न करने के कारण अभिभावक बच्चों को प्रवेश नहीं दिलाना चाहते हैं। क्योंकि लगातार शिकायतों और निरीक्षणों के बाद भी कई स्कूलों के शिक्षक अपना लापरवाही पूर्व रवैया नहीं सुधार रहे हैं। न तो समय पर स्कूल खुलते हैं और न ही अध्यापन कार्यकराया जाता है। जिससे इस तरह की स्थिति निर्मित होने लगी है। प्राथमिक स्कूल के छह वर्षके आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो वह चौंकाने वाले हैं, जिसमें करीब 1200 से 800 बच्चों की संख्या हर वर्ष घट रही है। इसी प्रकार माध्यमिक स्कूल की संख्या में भी गिरावट आ रही है। यदि प्राथमिक स्कूलों की संख्या इसी तरह घटती रही तो माध्यमिक और हाइ स्कूल भी खतरे में आ जाएंंगे। इसके बाद भी शिक्षा विभाग द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। सिर्फ योजनाओं की दम पर स्कूल चला रहे हैं और करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन योजनाएं दर्ज संख्या बढ़ाने में काम नहीं आ रही हैं। आरटीई के अनुसार प्राथमिक स्कूल में 150 के ऊपर दर्ज संख्या होने पर ही प्राधानाध्यापक का पद स्वीकृत होता है, लेकिन ऐसे कई अधिकांश स्कूल हैं, जिनमें इतनी संख्या भी नहीं है।
स्कूल चलें अभियान भी फेल
शासन द्वारा स्कूल चलें अभियान चलाकर बच्चों को स्कूल में दाखिला दिलाया जाता है। यह अभियान हर वर्षचलाया जाता हैै, लेकिन बच्चों की संख्या बढऩे के बजाय यह संख्या घटती जा रही है। इसके साथ मध्याह्न भोजन, नि:शुल्क गणवेश, पुस्तक, साइकिल सहित अन्य योजनाएं भी चलाई जा रही है।
यह हैं कारण
सरकारी स्कूलों में घटती दर्ज संख्या के मुख्य कारण सरकारी स्कूलों की शैक्षणिक गुणवत्ता से अभिभावकों का उठता भरोसा, भवन, खेल सुविधाएं, शिक्षकों की कमी आदि मूलभूत सुविधाओं का अभाव, शिक्षकों द्वारा अध्यापन कार्य में रुचि न लेना, अन्य कार्यों का बोझ और अधिकारियों द्वारा इस ओर ध्यान न दिया जाना हैं।
चार वर्ष की दर्ज संख्या पर एक नजर
प्राथमिक स्कूल दर्ज संख्या
वर्ष 2013-14 14719
वर्ष 2014-15 13154
वर्ष 2015-16 11890
वर्ष 2016-17 10880
वर्ष 2017-18 10059
वर्ष 2018-19 9226
माध्यमिक स्कूल
वर्ष 2013-14 9492
वर्ष 2014-15 9135
वर्ष 2015-16 8421
वर्ष 2016-17 8061
वर्ष 2017-18 7700
वर्ष 2018-19 6940
इनका कहना है
निजी स्कूलों में आरटीई के तहत 25 प्रतिशत सीटें आरक्षित होती है और कुछ विद्यार्थी उन स्कूलों में प्रवेश ले लेते हैं। साथ ही गांव से आकर लोग शहर में रहने लगे हैं, जिससे वह निजी स्कूल में प्रवेश दिला देते हैं। सरकारी स्कूल में बच्चों को अभिभावक प्रवेश दिलाएं इसके प्रयास हमेशा जारी रहते हैं।
पीएस राय, बीआरसीसी, बीना