script‘बैंक से बीस हजार का लिया था कर्ज, बिक गई ढाई एकड़ जमीन, अब चाय की दुकान चला रहा हूं’ | Karj Ka Marj: Farmer's sold two and a half acres land for bank loan | Patrika News

‘बैंक से बीस हजार का लिया था कर्ज, बिक गई ढाई एकड़ जमीन, अब चाय की दुकान चला रहा हूं’

locationसागरPublished: Sep 18, 2019 03:04:15 pm

Submitted by:

Muneshwar Kumar

बैंक से लिए लोन भी नहीं हो रहे हैं माफ

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सागर/ मध्यप्रदेश में कर्ज से किसान बर्बाद हो रहे हैं। किसान कर्जमाफी योजना से मिलने वाली राहत भी इन तक नहीं पहुंच पा रही है। कई किसानों के हालात ऐसे हैं कि कर्ज के चक्कर में उनकी जमीन बिक गई और अब खेती छोड़ चाय की की दुकान चला रहे हैं। #KarjKaMarj सीरीज में हम आपको सागर के एक किसान की कहानी बताएंगे, जिन्हें कर्ज ने सड़क पर ला दिया है।
सागर के राहतगढ़ में रहने वाले बलराम कुर्मी ने करीब-सात आठ साल पहले बैंक से बीस हजार रुपये का कर्ज लिया था। उसके बाद उसने कुआं खुदवाया लेकिन वह फेल हो गया। इसके बाद बलराम को कई बीमारियों ने घेर लिया। इलाज और परिवार के चक्कर में बलराम ऐसे घिरा कि बीस हजार का कर्ज लाखों में तब्दील हो गया है। इसके बाद उसे साहूकारों से भी कर्ज लेने पड़े। बलराम समय के साथ कर्ज के बोझ तले दबता जा रहा था।
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बिक गई ढाई एकड़ जमीन
बलराम ने पत्रिका से बताया कि कर्ज और स्वास्थ्य की वजह से खेतीबाड़ी भी बंद हो गई। अंत में उसे चुकाने के लिए ढाई एकड़ जमीन बेचनी पड़ी। साहूकारों के कर्ज तो चुका दिए लेकिन बैंक का कर्ज अभी भी है। अब खेती छूट गई है। घर गिर गए हैं। किसी तरह से दीवार खड़ी कर बलराम परिवार के साथ राहतगढ़ में रह रहा है। बैंक वाले कर्ज चुकाने के लिए दबाव बना रहे हैं।
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चाय की दुकान खोली
खेती बंद है, ऐसे में बलराम के पास परिवार पालने के लिए अब कोई चारा नहीं बचा है। तो बलराम ने राहतगढ़ में चाय की दुकान खोल ली है। जिसकी कमाई से घर चल रहा है। लेकिन कर्ज का कीड़ा उसे खोखला कर रहा है। सरकार ने किसानों के कर्जमाफी का फैसला लिया तो उसे उम्मीद जगी थी। लेकिन बैंकों की वजह से आज तक उसे लाभ नहीं मिल पाया।
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बलराम बताता है कि बैंक वाले इसे लेकर कोई सही जानकारी नहीं देते हैं। कई चक्कर बैंक का लगा चुका है। लेकिन राहत नहीं मिली है। ऐसे में अब उम्मीद टूट गई है और सब कुछ भगवान के भरोसे ही है। जाहिर है ये स्थिति सिर्फ बलराम की नहीं, साहूकारों और बैंकों से कर्ज लेने वाले हर किसान की है। जिनका बस एक ही सवाल होता है कि इस कर्ज का मर्ज क्या है। इसका जवाब किसी के पास नहीं होता। कर्ज के बोझ तले इन किसानों की जिंदगी नरक से कम नहीं है। लेकिन सरकारी योजनाएं अभी भी इनसे कोसों दूर हैं।
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