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#osho enlighten day: जब गांधी को बताया था सबसे बड़ा हिंसक…

यही वजह रही कि उनके कुछ बयान या यूं कहें उनके प्रवचन विवादित भी रहे। ब्रह्मचर्य की परिभाषा जो उन्होंने दी, वह रोमांचित कर देने वाली है। कुछ ऐसी बात उन्होंने महात्मा गांधी के लिए भी कही थी।

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Widush Mishra

Mar 20, 2016

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सागर. 'ओशो' आचार्य रजनीश का उनके नाम की तरह सबकुछ अलग है। जिसे समझने के लिए एक अलग ही दृष्टिकोण चाहिए। उन्होंने धर्म, अध्यात्म, समाज, चिंतन सभी को अपने ढंग से अलग ही तरह से परिभाषित किया, व्याख्या की। यही वजह रही कि उनके कुछ बयान या यूं कहें उनके प्रवचन विवादित भी रहे। ब्रह्मचर्य की परिभाषा जो उन्होंने दी, वह रोमांचित कर देने वाली है। कुछ ऐसी बात उन्होंने महात्मा गांधी के लिए भी कही थी।

आज के ही दिन 21 मार्च 1953 में ओशो बुद्धत्‍व को उपलब्‍ध हुए थे। कहा जाता हैं उसी दिन से वे उन लोगों की खोज में है जो उन्‍हें समझ सकें। और बुद्धत्‍व को उपलब्‍ध हो सकें। इस मौके पर पत्रिता आपको उनसे जुड़े हुए प्रसंगों और तथ्यों को किश्तवार बता रहा है। इस कड़ी में हम ओशो की जिंदगी से जुड़े कुछ विवादित और रोचक तथ्यों को इन्फोग्राफिक्स के जरिए बता रहे हैं...

1.गांधी- ओशो ने अपने अधिकतर प्रवचनों में गांधी की विचारधारा का विरोध किया है। उनका मानना था कि यह विचारधारा मनुष्य को पीछे ले जाने वाली है। ओशो की एक किताब जो पूर्णत: गांधी पर केंद्रित है 'अस्वीकृति में उठा हाथ' में ओशो कहते है में दृष्टि में कृष्ण अहिंसक है और गांधी हिंसक हैं।


2.नव संन्यास- 1970 में मनाली के एक ध्यान शिविर में 'श्री कृष्ण मेरी दृष्टि में' प्रवचनमाला के साथ-साथ ओशो के 'नव संन्यास' आंदोलन का सूत्रपात हुआ। इस दौरान उन्होंने दुनियाभर के धर्मों में प्रचलित संन्यास से भिन्न एक नए तरह का संन्यासी होने का कांसेप्ट रखा। ओशो ने एक हंसते-खेलते अभिनव संन्यास की प्रस्तावना की। इस संन्यास में कोई त्याग और पलायन नहीं है, बल्कि ध्यान द्वारा स्वयं को रूपांतरित करते जीवन को और सुंदर व सृजनात्मक बनाने की भावना है।


3.जोरबा टू बुद्ध- ओशो कहते हैं कि 'जोरबा' का अर्थ होता है- एक भोग-विलास में पूरी तरह से डूबा हुआ व्यक्ति और 'बुध्दा' का अर्थ निर्वाण पाया हुआ। जोरबा केवल शुरुआत है। अगर तुम अपने जोरबा को पूर्णरूपेण अभिव्यक्ति होने दोगे तभी कुछ बेहतर बन पाओगे। ओशो पर आरोप है कि वे सिर्फ अमीरों के गुरू थे। उन्होंने पूंजीवाद को बढ़ावा दिया। उनके पास कई लग्जरी कारें थी। वह कभी गरीबों और गरीबी का पक्ष नहीं लेते थे।


4. परिवार की कोई जरूरत नहीं- ओशो का सबसे विवादित विचार है परिवार की परंपरा को समाप्त कर कम्यून की अवधारणा को स्थापित करना। ओशो की नजर में जब परिवार की जरूरत नहीं तो शादी विवाह करना गौण हो जाता है। घर के अंदर लड़ाई करने के बाद पति पत्नी बहार मुस्कुराते हुए निकलते है। सब आंसू पोंछकर बाहर जाते है। यह सब लोग झूठे चेहरे वाले है।


5. धर्मों की कोई जरूरत नहीं- ओशो उपनिषद में वह कहते हैं कि 'सदियों' से आदमी को विश्र्वास, सिद्धांत, मत बेचे गए हैं, जो कि एकदम मिथ्या है, झूठे हैं। वह सब केवल तुम्हारी महत्वाकांक्षाओं, तुम्हारे आलस्य का प्रमाण हैं। तुम करना कुछ चाहते नहीं और पहुंचना स्वर्ग चाहते हो। धर्मों के कारण ही धर्मों का विवाद इतना है, धर्मों की एक-दूसरे के साथ इतनी छीना-झपटी है। धर्मों का एक-दूसरे के प्रति विद्वेष इतना है की धर्म, धर्म ही नहीं रहें।


6. संभोग से समाधि की ओर- 'संभोग से समाधि की ओर' उनकी बहुचर्चित पुस्तक है, लेकिन इससे कहीं ज्यादा अधिक सेक्स के संबंध में अन्य दूसरी पुस्तकों में उन्होंने सेक्स को एक अनिवार्य और नैसर्गिक कृत्य बताकर इसका समर्थन किया है।

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