5. धर्मों की कोई जरूरत नहीं- ओशो उपनिषद में वह कहते हैं कि 'सदियों' से आदमी को विश्र्वास, सिद्धांत, मत बेचे गए हैं, जो कि एकदम मिथ्या है, झूठे हैं। वह सब केवल तुम्हारी महत्वाकांक्षाओं, तुम्हारे आलस्य का प्रमाण हैं। तुम करना कुछ चाहते नहीं और पहुंचना स्वर्ग चाहते हो। धर्मों के कारण ही धर्मों का विवाद इतना है, धर्मों की एक-दूसरे के साथ इतनी छीना-झपटी है। धर्मों का एक-दूसरे के प्रति विद्वेष इतना है की धर्म, धर्म ही नहीं रहें।