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जलेबी के लिए लड़ने को भी तैयार रहते थे मुनि तरुण सागर, बेहद पसंद था मीठा

कड़वे प्रवचन के लिए विख्यात राष्ट्रसंत मुनि तरुण सागर का प्रथम समाधि दिवस 1 सितंबर 2019 को। मध्यप्रदेश के दमोह जिले में हुआ था मुनि तरुण सागर का जन्म, मुनि तरुण सागर को बेहद पसंद था मीठा, जलेबी के लिए लडऩे भी रहते थे तैयार,जैन मुनि तरुण सागर का जीवन परिचय

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सागर

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Samved Jain

Aug 31, 2019

दमोह. विख्यात जैन संत मुनि तरुण सागर का प्रथम समाधि सल्लेखना दिवस पर 1 सितंबर 2019 को देश भर में विविध आयोजन होंगे। इन कार्यक्रमों में मुनि तरुण सागर को याद करते हुए विविध आयोजन होंगे। मुनि तरुण सागर के प्रथम सल्लेखना दिवस पर हम भी उनके जीवन से जुड़े रोचक सच आपके साथ शेयर करेंगे। जिसमें मुनि तरुण सागर के बाल्य काल से लेकर समाधिमरण तक कहानी आप जानेंगे।

वह कड़वा बोलते थे, लोगों के दिलों में चुभता था, लेकिन शिक्षा मिलती थी। वह महावीर के उपदेशों को मंदिर और ग्रंथों से निकालकर सड़क पर लाना चाहते थे। वह जैन नहीं जनसंत थे। 31 अगस्त 2018 को जब यह खबर फैलती है मुनि तरुण ने समाधिमरण की भावना व्यक्त की है। समूचे भारत में फैले मुनि तरुण सागर के अनुयायी और जैन समाज के लोग जैसे कुछ पल के लिए थम से जाते है। 1 सितंबर 2018 को मुनि तरुण का समाधिमरण होता है, लेकिन अब समाज में फैले मुनि तरुण के उपदेश आज भी लोगों को सही रास्ता दिखा रहे है। भले ही मुनि तरुण सागर देह त्याग चुके हो, लेकिन लोगों और भक्तों के मन में वह अब भी है।

मुनि तरुण सागर के गृहस्थ जीवन के परिजन और उनके मित्रों ने पत्रिका से खास चर्चा करते हुए उनके बाल अवस्था के कुछ पहलुओं से रूबरू कराया। कुछ व्यंग्य है, तो कुछ सुनकर हंसी आ जाती है। लेकिन स्कूल के लघु अवकाश के दौरान कैसे उनका जीवन बदल जाता है। यह समझना मुश्किल है। जानने वाले तो यह है कि वह यह सुनकर धर्म प्रभावना की ओर बढ़ गए थे कि आप भी भगवान बन सकते हैं, लेकिन कभी उन्हें भगवान बनते देखा नहीं। वह तो भगवान को मंदिर से बाहर लाना चाहते थे।

जैन मुनि तरुण सागर का जीवन परिचय

मुनि तरुण सागर का बचपन का नाम पवन कुमार जैन है। उनका जन्म दिनांक 26 जून 1967 ग्राम गोहची जिला दमोह मध्य प्रदेश में हुआ था। जन्म स्थली ग्राम गोहची से 2 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम झलौन की शासकीय माध्यमिक शाला में उन्होंने कक्षा ६वीं तक अध्ययन किया। तब उनकी उम्र १३ वर्ष के करीब थी। उनके साथ अध्ययरत चक्रेश जैन,विनोद जैन,अशोक जैन,नन्नू लाल यादव उनके अच्छे मित्रों में थे। अशोक जैन बताते है कि शिक्षा के दौरान स्काउट आदि कार्यक्रम में शिक्षक चतुर्भुज दास के साथ अनेक नगरों व महानगरों में वह पवन जैन के साथ में गए।

वह क्षण- जब पवन कुमार तरुण सागर बनने के लिए तैयार हो गए

तरुण सागर के गृहस्थ जीवन के चाचा रिटायर्ड शिक्षक सुंदरलाल जैन बताते है कि दिनांक 8 मार्च 1981 को बालक पवन कुमार जैन(मुनि तरुण सागर) स्कूल से छुट्टी होते ही झलौन गांव में बस स्टैंड चौराहे पर अपने पसंदीदा व्यंजन को खाने के लिए एक मिष्ठान की दुकान पर जलेबी खाने लगते है। उसी दिन आचार्य पुष्पदंत सागर महाराज का ग्राम में आगमन हुआ था। दिगंबर जैन मंदिर झलौन प्रांगण में आचार्य के प्रवचन चल रहे थे। प्रवचन प्रांगण से करीब 500 मीटर से भी अधिक दूरी पर बस स्टैंड चौराहा है। आचार्यश्री के प्रवचन की आवाज लाउडस्पीकर के माध्यम से बालक पवन कुमार की कानों में गूँजी। आचार्य श्री प्रवचन में बोल रहे थे "तुम भी भगवान बन सकते हो"। यह वह क्षण था कि पवन कुमार तरुण सागर बनने के लिए तैयार हो गए थे।

त्याग तपस्या से पाया मुनि पद, हुए विख्यात
अब बालक पवन कुमार को भगवान बनने का जुनून सवार हो गया था। आचार्य की शरण में जाकर भगवान बनाने की इच्छा व्यक्त करते है। फिर उन्हें बताया जाता है कि कैसे भगवान बन सकते है। जीवन के उन क्षणों के बाद ब्रह्मचर्य, क्षुल्लक, ऐलक और मुनि दीक्षा कर 3 दशकों की अथक साधना, चिंतन किया। अब दिगंबर जैन मुनि और क्रांतिकारी संत तरुण सागर के रूप में देश-विदेश में सर्वाधिक सुने व पढ़े जाने वाले मुनि बन चुके थे। तरुण सागर महाराज की आंखों में भारत की तस्वीर और तकदीर बदलने वाला सपना ही नहीं वरन पूरी मानवता को बचाने का एक तार्किक व सुनियोजित कार्यक्रम भी मौजूद था।जिसके कारण उन्हें सिर्फ जैन समुदाय ही नहीं अन्य समुदाय के लोग भी उनकी प्रवचनों को सुनने को आते थे।

पहली बार किसी 13 वर्ष के बालक को जैन दीक्षा दी गई

संत परंपरा के इतिहास में तरुण सागर जी का नाम एक क्रांतिकारी संत के रूप में जाना जाता था, क्योंकि भारत के जैन धर्म की 2500 वर्ष भारत के इतिहास में पहली बार किसी 13 वर्ष के बालक को जैन दीक्षा दी गई। पहली बार किसी संत का नाम गिनीज ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड और लिम्का बुक ऑफ रिकॉड्र्स में दर्ज हुआ। पहली बार जैन धर्म की दिगंबर और श्वेतांबर समुदाय को एक मंच पर लाने का काम किया। पहली बार ही किसी संत ने लाल किले से राष्ट्र को संबोधित किया। पहली बार किसी संत ने किसी विधानसभा में प्रवचन दिए थे। पहली बार किसी मुनि ने मुनि की व्याख्या किसी टीवी इंटरव्यू में की थी।

मुनि तरुण सागर के कड़वे प्रवचन की इन पंक्तियों के साथ उन्हें शत-शत नमन।

मरने के पहले सबको धन्यवाद दे दो, क्या पता फिर मौका न मिले...।।
तुम अमृत हो, शरीर मृत्यु ।।
तुम शाश्वत हो, शरीर क्षणिक ।।
तुम सदा हो, सदा रहोंगे।।
शरीर अभी हैं, अभी नहीं हो जाएगा।।
तुम चैतन्य हो, शरीर मिट्टी।।