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ओरछा: मिट्टी नहीं, परंपरा; खंडहर नहीं, आत्मा – विरासत बचाने की पुकार

वर्ल्ड हेरिटेज डे पर विशेष: बुंदेलखंड की सांस्कृतिक राजधानी खतरे में, संरक्षण की दरकार ओरछा. एक नाम नहीं, अहसास है। बुंदेलखंड की धरती पर बसा यह कस्बा अपने आप में एक खुली किताब है। वर्ल्ड हेरिटेज डे पर जब दुनिया अपनी सांस्कृतिक विरासत को सलाम कर रही है, ओरछा अपने राजसी अतीत और अनोखी परंपराओं […]

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वर्ल्ड हेरिटेज डे पर विशेष: बुंदेलखंड की सांस्कृतिक राजधानी खतरे में, संरक्षण की दरकार

ओरछा. एक नाम नहीं, अहसास है। बुंदेलखंड की धरती पर बसा यह कस्बा अपने आप में एक खुली किताब है। वर्ल्ड हेरिटेज डे पर जब दुनिया अपनी सांस्कृतिक विरासत को सलाम कर रही है, ओरछा अपने राजसी अतीत और अनोखी परंपराओं के साथ मानो कह रहा है - "मैं मिट्टी नहीं, परंपरा हूं… मैं खंडहर नहीं, आत्मा हूं…" लेकिन यह आत्मा खतरे में है।

गढ़कुंडार से ओरछा: तख्त बदला, तेवर नहीं
13वीं सदी में बुंदेला राजवंश ने गढ़कुंडार के किले पर झंडे लहराए। फिर राजा रुद्रप्रताप सिंह ने बेतवा नदी के किनारे 1501 में ओरछा की नींव रखी - एक ऐसी राजधानी, जो रणनीति में मजबूत और सौंदर्य में अद्वितीय थी।

जब महल बोलते थे, और मंदिर चुपचाप राज करते थे
ओरछा की गलियों में हर कोना कुछ कहता है। जहांगीर महल, राजा महल और रामराजा मंदिर यहां की अनूठी वास्तुकला और संस्कृति के प्रतीक हैं। यहां राम सिर्फ भगवान नहीं, शासक हैं। उनके लिए गार्ड ऑफ ऑनर लगता है, और लोग "राजा राम सरकार" कहते हैं।

खतरे में है ये खजाना!
यूनेस्को ने ओरछा को टेंटेटिव वर्ल्ड हेरिटेज लिस्ट में शामिल किया है। यहां सिर्फ किले नहीं, कहानियां हैं, सिर्फ मंदिर नहीं, लोकविश्वास हैं। लेकिन बढ़ता पर्यटन, अतिक्रमण और आधुनिक निर्माण ओरछा की आत्मा को धीरे-धीरे नष्ट कर रहे हैं।

आज का संकल्प: सेल्फी नहीं, संवेदनाएं क्लिक करें
ओरछा को बचाना, सिर्फ प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं, हम सबकी साझी विरासत है। इस विश्व धरोहर दिवस पर आइए, हम सब मिलकर ओरछा की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने का संकल्प लें।