वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी डीएस तोमर ने बताया कि बीना क्षेत्र में दवाओं का उपयोग बहुत ज्यादा हो रहा है, जबकि एक हेक्टेयर में एक लीटर दवा का ही छिड़काव होना चाहिए। चना की फसल 30 से 35 दिन की होने पर ही कम असर वाली दवा का छिड़काव करें। साथ ही फलियां आने पर यदि इल्ली है, तो फिर से दवा डालें। कीटनाशक और खाद ज्यादा डालने से जमीन खराब हो रही है, जिसका असर कुछ वर्षों बाद दिखने लगेगा।
कृषि वैज्ञानिक के अनुसार जैसे चना की फसल में दवा का छिड़काव करना है, तो पहले इल्ली की संख्या देखें। यदि एक वर्ग मीटर की फसल में एक से ज्यादा इल्ली हैं और ऐसी स्थिति फसल में चार-पांच जगह है, तो दवा का छिड़काव करें। साथ ही दवा दोपहर के बाद डालें, जिससे मित्र कीट कम मात्रा में मरते हैं। सुबह-सुबह मित्र किट निकलते हैं और दवा डालने से वह भी मर जाते हैं। वहीं, एक दवा के साथ दूसरी दवा मिलाकर छिड़काव न करें, यह फसलों के लिए हानिकारक है। यदि दो दवा डालने की जरूरत है, तो मिक्स दवा लेकर डालें।
जानकारों के अनुसार लोग स्वस्थ रहने के लिए गैर मौसमी सब्जी न खाएं, जो सब्जी घर लाते हैं उसे गुनगुने पानी से दो बार धोकर स्टोर करें। साथ ही बनाने के पहले फिर से इसे धोएं, धोने के बाद सब्जी का छिलका निकालें, गोभी व पत्ता गोभी बनाने के पहले काटकर गुनगुने पानी में डालें। हरे धनिया को भी दो बार धोना चाहिए।
कीटों की बढ़ रही प्रतिरोधक क्षमता
कृषि वैज्ञानिक आशीष कुमार त्रिपाठी ने बताया कि दवाओं का ज्यादा छिड़काव करने से लागत तो बढ़ ही रही है, साथ ही कीटों की प्रतिरोधक क्षमता बढऩे से दवाओं का असर नहीं हो रहा है। दवा छिड़काव के बाद जो इल्ली बच जाती है और उनके अंडे से जो इल्ली बनती है उसपर यह दवा असर नहीं कर रही है। फल, सब्जी के साथ दवा के जो अवशेष शरीर में पहुंच रहे हैं, वह कैंसर, लीवर सहित पेट संबंधी अन्य बीमारियों को जन्म दे रहे हैं। जमीन कठोर हो रही है और मित्र कीट भी मर रहे हैं।