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300 साल से लग रहा भापेल का मेला, बाबा फूलनाथ ने की यहां तपस्या, वरदान से मनोकामनाएं होती हैं पूरी

कार्तिक पूर्णिमा पर जिलेवासियों के लिए एक अनोखा धार्मिक उत्सव नजदीक आ रहा है। देवउठनी एकादशी के ठीक बाद भोपाल रोड पर स्थित भापेल गांव की पहाड़ी पर करीब तीन सौ वर्षों से अधिक पुराना फुलेर मेला आयोजित होता है।

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सागर

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Rizwan ansari

Nov 04, 2025

कार्तिक पूर्णिमा पर जिलेवासियों के लिए एक अनोखा धार्मिक उत्सव नजदीक आ रहा है। देवउठनी एकादशी के ठीक बाद भोपाल रोड पर स्थित भापेल गांव की पहाड़ी पर करीब तीन सौ वर्षों से अधिक पुराना फुलेर मेला आयोजित होता है। सागर शहर से मात्र दस किलोमीटर दूर यह स्थान न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि बुंदेलखंड की सांस्कृतिक धरोहर का भी जीवंत प्रमाण है। हर साल हजारों श्रद्धालु यहां बाबा फूलनाथ के दर्शन के लिए आते हैं। यहां मान्यता है कि श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस बार मेला पांच दिनों तक चलेगा, जो बुंदेली लोक परंपराओं की झलक देखने को मिलेगी।

बाबा फूलनाथ ने यहां की थी तपस्या

भापेल गांव की ऊंची पहाड़ी पर बसा प्राचीन शिव मंदिर, जिसे बाबा फूलनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है, इस मेले का केंद्र बिंदू है। मान्यता के अनुसार तीन-चार सौ वर्ष पहले बाबा फूलनाथ गोस्वामी महाराज ने इसी पहाड़ी पर कठोर तपस्या की थी। देवी आराधना कर वरदान प्राप्त किया कि यहां आने वाले हर भक्त की मनोकामना पूरी होगी। लेकिन बाबा की करुणा यहीं तक सीमित नहीं रही। गांव में जल संकट की समस्या देखते हुए उन्होंने वरदान मांगा कि यह स्थान कभी जल-विहीन न रहे। जिसके बाद बाबा ने स्वयं पहाड़ी पर एक तालाब खोदा, जहां आज भी साल भर पानी रहता है। यह चमत्कारिक घटना न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि प्रकृति की रहस्यमयी लीला का भी उदाहरण। जबकि भापेल के निचले इलाकों में कुओं और तालाब गर्मियों में सूख जाते हैं। बाबा फूलनाथ ने जीवन के अंतिम वर्ष इसी स्थान पर तपस्या में व्यतीत किए और समाधि ली, जिससे यह स्थल भक्तों के लिए तीर्थ के समान हो गया।

मनोकामनाएं होती है पूर्ण

बाबा फूलनाथ का दरबार आज भी संतान प्राप्ति, व्यापारिक उन्नति और पारिवारिक सुख जैसी कामनाओं का केंद्र बना हुआ है। दूर-दराज से आने वाले श्रद्धालु यहां मन्नत मांगते हैं और उनकी पूर्ति पर मंदिर में पीतल का घंटा चढ़ाते हैं। विशेष रूप से संतान प्राप्ति की कामना लेकर आने वाले दंपतियों के लिए यह स्थान आशीर्वाद का प्रतीक है। मन्नत पूरी होने पर परिवार सहित यहां पहुंचकर बच्चे का मुंडन संस्कार कराया जाता है। स्थानीय निवासियों की मान्यता है कि बाबा की कृपा से न केवल व्यक्तिगत इच्छाएं पूरी होती हैं, बल्कि सामुदायिक समृद्धि भी सुनिश्चित होती है।

मंदिर का हो रहा जीर्णोद्धार

वर्तमान में मंदिर परिसर को और अधिक भव्य बनाने का कार्य जोरों पर है। पुराने ढांचे को मजबूत करते हुए नया निर्माण कार्य चल रहा है, ताकि श्रद्धालुओं को दर्शन में कोई असुविधा न हो। मंदिर को आधुनिक सुविधाओं से युक्त किया जा रहा है, जिसमें सीढ़ियां, प्रकाश व्यवस्था और आसपास का सौंदर्यीकरण शामिल है। इससे मेले के दौरान आने वाले लोगों को बेहतर अनुभव मिलेगा।

पांच दिन तक लगेगा मेला

कार्तिक पूर्णिमा से प्रारंभ होकर पांच दिनों तक चलने वाला यह मेला इस बार 5 नवंबर से शुरू होगा। बुधवार को उद्घाटन के साथ ही आसपास के ग्रामों और सागर जिले से हजारों भक्त दर्शन करने पहुंचेंगे। मेला परिसर में भव्य सजावट, भजन-कीर्तन और धार्मिक अनुष्ठान आयोजित होंगे। यह मेला 9 नवंबर तक आयोजित होगा। इस बार मंदिर को विशेष फूलों से सजा कर फूल बंगला बनाया जाएगा।

लाेकनृत्य और बुंदेली परंपराओं का संगम

लोकनृत्य और बुंदेली परंपराओं का संगम मेले का विशेष आकर्षण है। 6 नवंबर को मंदिर प्रांगण में बरेदी नृत्य की प्रस्तुतियां होंगी, जिसमें आसपास के ग्रामों से आए मोनिया कलाकार बाबा फूलनाथ को समर्पित नृत्य करेंगे। मेले के दूसरे दिन यह आयोजन होगा। इसके अलावा बुंदेली भजनों भी होगें। मेला स्थल पर सैकड़ों दुकानें सजेंगी, जहां स्थानीय हस्तशिल्प, मिठाइयां और पारंपरिक वस्तुएं उपलब्ध होंगी।

तालाब में चलेगी नाव

समय के साथ धीरे-धीरे इस तरह के मेले आयोजित होने बंद हो गए है। लेकिन भापेल में लगने वाला फुलेर का मेला अपने सांस्कृतिक महत्व के साथ बुंदेलखंड की लोक परंपराओं को भी जीवित रखे हुए है। इस बार मंदिर के तालाब में नाव भी चलेगी, मेले की तैयारियों के लिए स्थानीय विधायक प्रदीप लारिया लगातार बैठक लेकर जायजा ले रहे है। सुरक्षा व्यवस्था के इंतजाम किए जा रहे है।


अंग्रेजाें ने किया था कर माफ

अंग्रेजी शासनकाल में इस मंदिर की लोकप्रियता चरम पर पहुंची। पहले मंदिर की भूमि को अंग्रेजी हुकूमत ने अपने अधीन कर लिया था, लेकिन बाद में मंदिर की प्रसिद्धि से प्रभावित होकर ब्रिटिश शासन ने न केवल मंदिर की जगह को वापस किया, बल्कि कर माफ भी कर दिया था।