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भारतीय ज्ञान परंपरा का सच्चा सार ज्ञान के निरंतर प्रवाह में निहित

पं. दीनदयाल उपाध्याय शासकीय कला एवं वाणिज्य (अग्रणी) महाविद्यालय के हिंदी विभाग ने "भारतीय ज्ञान परंपरा में महामाहेश्वर अभिनवगुप्त का योगदान" विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन शुक्रवार को हुआ।

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सागर

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Rizwan ansari

Nov 01, 2025

पं. दीनदयाल उपाध्याय शासकीय कला एवं वाणिज्य (अग्रणी) महाविद्यालय के हिंदी विभाग ने "भारतीय ज्ञान परंपरा में महामाहेश्वर अभिनवगुप्त का योगदान" विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन शुक्रवार को हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे पं. माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलगुरु डॉ. विजय मनोहर तिवारी ने कहा कि पिछले 1000-1200 वर्षों की भयानक अंधेरे के दौर से निकलकर 15 अगस्त 1947 को अपनी मूल पहचान के साथ जागना दुनिया का सबसे बड़ा चमत्कार है। उन्होंने कहा कि इन आचार्य परंपराओं ने भारत के 'सॉफ्टवेयर' को मजबूत किया, जिसकी बदौलत आतंकवाद और विदेशी आतताइयों के हमलों के बाद भी हम बचे रहे।
उन्होंने छात्रों को भारत के पिछले 1000-1200 वर्षों का इतिहास, खासकर अध्यात्म और स्थापत्य के संदर्भ में पढऩे का आह्वान किया। मुख्य अतिथि डॉ. नीरज दुबे ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा का सच्चा सार ज्ञान के निरंतर प्रवाह में निहित है। उन्होंने अभिनवगुप्त को इस परंपरा का शिखर बताते हुए कहा कि उन्होंने विभिन्न विचारधाराओं का संश्लेषण किया। जेएन यू दिल्ली के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ. रजनीश मिश्रा ने अभिनव गुप्त के दर्शन पर प्रकाश डाला। विशिष्ट अतिथि वक्ता डॉ. जीएस चौबे ने अभिनवगुप्त के दर्शन को स्वास्थ्य से जोड़ते हुए कहा कि उनके शैव दर्शन में शिव और जीव में कोई अंतर नहीं होता। सत्र के शुभारंभ पर प्राचार्य डॉ. सरोज गुप्ता ने अतिथियों का स्वागत किया। संगोष्ठी के संयोजक डॉ. अवधेश प्रताप सिंह ने संगोष्ठी के उद्देश्य पर प्रकाश डाला। विचार सत्र में डॉ. किरन आर्या, ईएमआरसी सागर के निदेशक डॉ. पंकज तिवारी, मीडिया विशेषज्ञ डॉ. आशीष द्विवेदी, पत्रकार सूर्यकांत पाठक व कार्टूनिस्ट अम्बिका यादव सहित देश के विभिन्न राज्यों के विद्वान, शोधार्थी एवं प्राध्यापक सम्मिलित हुए। विचार सत्र का संचालन सेमिनार के सचिव डॉ. राना कुंजर सिंह ने किया। समापन सत्र में आभार सुरेन्द्र यादव ने माना।