हर साल दीवाली के पहले मिट्टी को महीन करना, फिर कागज पीसकर गलाना और चक्के पर रखकर अलग-अलग आकार देना। यह कला दिखने में जितनी सामान्य लगती है, उतनी ही मुश्किल होती है। महंगाई के इस दौर में हर कोई सस्ते से सस्ता और अच्छे से अच्छा खरीदने की चाह रखता है। शुद्ध रूप से पीली मिट्टी से बनने वाले दीपक दिखने में ज्यादा आकर्षक नहीं होते, जितने दूसरी मिट्टी से बने दीपक। ऐसे में इस मिट्टी के कलाकारों को सस्ता और अच्छा बनाना काफी मुश्किल और खर्चीला होता जा रहा है।