खनिज तत्व बनते हैं बिजली के लिए आकर्षण का केंद्र
छतरपुर. हर साल बुंदेलखंड अंचल विशेषकर छतरपुर टीकमगढ़, पन्ना और आसपास के जिलों में आकाशीय बिजली गिरने की घटनाएं बड़ी संख्या में दर्ज की जाती हैं। बरसात से ठीक पहले और मानसून के दौरान बिजली गिरने से कई लोगों की जान चली जाती है, तो दर्जनों घायल होते हैं। अब इस गंभीर समस्या के पीछे भूगर्भीय और वैज्ञानिक कारण तलाशे जा रहे हैं और इसमें सबसे बड़ा कारण सामने आ रहा है इस क्षेत्र की धरती में मौजूद खनिज अयस्कों की प्रचुरता।
आकाशीय बिजली को जमीन की ओर खींचने में सहायक
बुंदेलखंड की चट्टानी संरचना और मिट्टी में मौजूद लौह अयस्क, तांबा, मैंगनीज, ग्रेफाइट जैसे धात्विक तत्व अत्यधिक मात्रा में पाए जाते हैं। भूगर्भीय विशेषज्ञों के मुताबिक, ये खनिज विद्युत के अच्छे सुचालक होते हैं और आकाशीय बिजली को जमीन की ओर खींचने में सहायक होते हैं। जब बादलों में विद्युत आवेश (चार्ज) अत्यधिक मात्रा में इकठ्ठा होता है, तो वह धरती पर किसी भी अच्छे सुचालक पदार्थ यानी धातु युक्त क्षेत्र की ओर आकर्षित होता है।
ये है बिजली गिरने के कारण
लाइटनिंगरेजिलिएंट इंडिया कैंपेन के वैज्ञानिक कर्नल संजय श्रीवास्तव (सेवानिवृत्त) का कहना है वनों की कटाई, जल निकायों में कमी, शहरीकरण, प्रदूषण के कारण एरोसोल के स्तर में वृद्धि, बड़े पैमाने पर खनन, औद्योगीकरण सहित अन्य कारकों से बिजली गिरने की घटनाएं बढ़ी हैं। खासतौर पर मध्य और पश्चिमी भारत के राज्यो में लाइटनिंगबढी है।
हाल ही की घटनाएं बनीं चेतावनी
कुछ दिन पूर्व ही छतरपुर-टीकमगढ़ सीमा पर बिजली गिरने से तीन महिलाओं सहित चार लोगों की मृत्यु हो गई, जबकि आधा दर्जन से अधिक लोग झुलस गए। यह कोई अपवाद नहीं है। हर साल छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना जैसे जिलों में औसतन तीन दर्जन से अधिक मौतें आकाशीय बिजली से होती हैं। यह दर्शाता है कि बुंदेलखंड में यह प्राकृतिक आपदा कितनी गंभीर है।
किसे रहता है ज्यादा खतरा?
-खेतों में काम कर रहे किसान
-तालाब, कुएं, या नदी किनारे मौजूद लोग
-मोबाइल या छतरी का उपयोग कर रहे लोग
-पेड़ों के नीचे खड़े होकर बारिश से बचने की कोशिश करने वाले
-ऊंची जगहों या खुले मैदानों में मौजूद व्यक्ति
एनसीआरबी रिपोर्ट,हर साल हजारों जानें जाती हैं
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर साल करीब 2500 लोग आकाशीय बिजली से मारे जाते हैं। आकस्मिक मौतों में बिजली गिरने का योगदान 35 से 40 प्रतिशत तक होता है। इसका सबसे अधिक असर ग्रामीण क्षेत्रों और किसानों पर होता है।
बुंदेलखंड में जरूरी है विशेष सर्वे और चेतावनी प्रणाली
महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के भूगर्भ के प्रोफेसर पीके जैन का कहना है आज तक बुंदेलखंड में बिजली गिरने की संवेदनशीलता पर कोई विशेष सर्वे नहीं हुआ है। भूगर्भीय सर्वेक्षण और खनिजों की विद्युत संवेदनशीलता पर अध्ययन कर संवेदनशील ज़ोन चिह्नित किए जा सकते हैं। साथ ही, ऑटोमेटिक लाइटनिंग अलर्ट सिस्टम जैसे आधुनिक तकनीक वाले अलर्ट सिस्टम ग्रामीण क्षेत्रों में लगाए जा सकते हैं।
Published on:
21 Jun 2025 08:00 pm