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Interview: अनाज बेचकर भरी थी बेटे की फीस, अब रिजल्ट देख भर आई पिता की आखें

सहारनपुर के बेटे ने एमफिल प्रवेश परीक्षा में किया विश्वविद्यालय टॉप रिजल्ट देख पिता बोले पैसे नहीं थे तो अनाज बेचकर दी थी फीस ccs university meerut के Student Rajneesh ने किया टॉप

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सहारनपुर। यह कहानी गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाले एक ऐसे छात्र की है जिसका रिजल्ट देखकर उसके पिता के भी आंखें भर आई। पत्रिका के साथ विशेष बातचीत में इस छात्र के पिता ने बताया कि जब कॉलेज की फीस जमा करनी थी तो उनके पास पैसे नहीं थे। ऐसे में फीस जमा करने के लिए पहले उन्हाेंने अपनी भैंस काे बेचा और फिर घर में रखा अनाज तक बेचना पड़ गया।

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हम बात कर रहे हैं सहारनपुर के गांव नंदी फिरोजपुर के रहने वाले रामनाथ कश्यप के बेटे रजनीश कुमार की। रजनीश ने चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय CCS university meeru की एमफिल संस्कृत प्रवेश परीक्षा में विश्वविद्यालय टॉप किया है। सामान्य वर्ग में रजनीश कुमार कश्यप ने प्रथम स्थान प्राप्त करके यह साबित कर दिया है कि संस्कृत में भी अच्छे नंबर हांसिल किए जा सकते हैं और अच्छे नंबर पाने का हक सिर्फ मॉडर्न और मेट्रो सिटी से आने वाले छात्रों का ही नहीं होता बल्कि गांव देहात में सुविधाओं के अभाव में पले बढ़े छात्र-छात्राएं भी बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं, टॉप कर सकते हैं।

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रजनीश कुमार कश्यप की इस कामयाबी पर उसके दोस्तों में खुशी है शुक्रवार को सहारनपुर कलेक्ट्रेट परिसर में अश्वनी कुमार एडवोकेट समेत रजनीश के अन्य दोस्तों ने उसका फूल माला पहनाकर स्वागत किया। पत्रिका रिपोर्टर शिवमणि त्यागी के साथ विशेष बातचीत में रजनीश कुमार ने बताया कि उसके पास सुविधाओं का हमेशा अभाव रहा लेकिन कभी भी नकारात्मक विचारों को हावी नहीं होने दिया। हमेशा मन लगाकर पढ़ाई की और आज उसी का परिणाम है कि एमफिल की एंट्रेंस परीक्षा में वह विश्वविद्यालय टॉप कर पाए।

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बेटे की इस कामयाबी पर पिता रामनाथ कश्यप बेहद खुश हैं। पत्रिका के साथ अपने पुराने दिनों की यादों को ताजा करते हुए रामनाथ ने बताया कि जब उनके बेटे रजनीश ने बीएड एंट्रेंस क्लियर किया था तो उस समय ₹50000 फीस जमा करनी थी लेकिन उनके पास इतनी रकम नहीं थी। बेटे की पढ़ाई के लिए उन्होंने उस समय अपनी दुधारू भैंस को बेच दिया था लेकिन इसके बाद भी वह ₹50000 की रकम इकट्ठा नहीं कर पाए थे। बाद में उनके पिता (रजनीश के दादा) जो अब इस दुनिया में नहीं हैं, उन्होंने घर में रखा 1 वर्ष का राशन यानी अनाज तक भ बेच दिया था लेकिन रजनीश का एडमिशन गोचर महाविद्यालय में कराया था।

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रामनाथ बताते हैं कि वह दिन बेहद कष्ट वाले थे और अनाज बिक जाने के बाद परिवार को हर रोज मजदूरी करके आटा खरीदना पड़ता था। अपने पुराने दिनों को याद करते हुए रामनाथ की आंखें भर आती हैं और वह यही कहते हैं कि आज जब यह खुशी मिली है वह तो पुराने दिनाें में उठाया गया कष्ट छोटा लगता है।

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