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बरेली के ‘आला हजरत’ से जारी फतवे का पहली बार देवबन्दी उलेमा ने किया समर्थन

निदा खान के मामले में पहली बार हुआ यह ऐतिहासिक काम

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मौलाना लुत्फुर्रहमान सादीक कासमी

बरेली के 'आला हजरत' से जारी फतवे का पहली बार देवबन्दी उलेमा ने किया समर्थन

देवबन्द। बरेली की विश्व प्रसिद्ध दरगाह आला हजरत के दारुल इफ्ता से निदा खान के खिलाफ जारी फतवे का देवबन्दी उलेमाओं ने भी समर्थन किया है। मौलाना लुत्फुर्रहमान सादीक कासमी ने कहा कि जो शख्स इस्लाम के शरीयत कानून को मानने से इंकार करता है तो वह इस्लाम से खारिज हो जाता है। इसके बाद उस शख्स की जनाजे की नमाज मुसलमान नहीं पढ़ें और न ही बीमार होने पर कोई मुसलमान दवाई देगा।

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बरेली से जारी किया था ये फतवा
बरेली की विश्व प्रसिद्ध दरगाह आला हजरत के दारुल इफ्ता ने निदा खान के खिलाफ फतवा जारी कर निदा खान को इस्लाम से खारिज करते हुए निदा का हुक्का पानी बन्द कर दिया गया है। साथ ही निदा से ताल्लुक रखने वाले लोगों का भी हुक्का पानी बंद करने की बात कही गई है। इसके अलावा फतवे के मुताबिक निदा के बीमार पड़ने पर कोई उसे दवा भी नहीं दे सकेगा। निदा के मरने के दौरान नमाजे जनाजा और कब्रिस्तान में दफनाने पर भी रोक लगा दी गई है।

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कौन है निदा खान
दरअसल पुराना बरेली शहर के मुहल्ला शाहदाना निवासी निदा खान का निकाह 16 जुलाई 2015 को आला हजरत खानदान के उसमान रजा खां उर्फ अंजुम मियां के बेटे शीरान रजा खां से हुआ था। अंजुम मियां आल इंडिया इत्तेहादे मिल्लत काउंसिल के मुखिया मौलाना तौकीर रजा खां के सगे भाई हैं। निदा का कहना है कि शादी के बाद से ही उसके साथ मारपीट की गई जिससे उसका गर्भपात हो गया। शौहर शीरान रजा खां ने 5 फरवरी 2016 को उसे 3 तलाक देकर घर से निकाल दिया। फिलहाल निदा हलाला व 3 तलाक और बहूविवाह से पीड़ित महिलाओं की मदद कर रही हैं।