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उत्तरा खण्ड हाईकोर्ट की ओर से फतवों पर बैन लगाने को उलेमा ने बताया शरीयत में दखल

locationसहारनपुरPublished: Sep 01, 2018 07:17:56 pm

सुप्रीम कोर्ट ने फतवे को सलाह मानते हुए रोक लगाने से किया था इनकार

Mufti ahmed gaud

उत्तरा खण्ड हाईकोर्ट की ओर से फतवों पर बैन लगाने को उलेमा ने बताया शरीयत में दखल

देवबंद. उत्तरा खण्ड हाईकोर्ट की ओर से फतवों पर बैन लगाने पर उलेमा ने आपत्ति जताई है। देवबंद के उलेमा ने कोर्ट के फैसले को शरीयत में दखल करार दिया है। इसके साथ यह भी कहा है कि कोर्ट के आदेश से देवबन्दी उलेमा नहीं सहमत है। दरअसल, वर्ष 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसल में फतवों को इस्लामिक शरई मशवरा मानते हुए कहा था कि किसी के सलाह देने रोक नहीं लगायी जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट के इसी आदेश को आधार बनाते हुए देवबंद के मुफ्ती अहमद गोड ने उत्तराखंड हाई कोर्ट के आदेश को शरीयत में हस्तक्षेप बताया है। उन्होंने कहा है कि हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट को गम्भीरता से फैसला लेना चाहिए। क्योंकि, हमें संविधान ने जो आजादी दी है। इस तरह के फैसले उस आजादी पर रोक है । गौरतलब है कि इससे पहले दारुल-उलूम देवबंद के प्रवक्ता ने भी उत्तराखंड हाईकोर्ट के इस फैसले को शरीयत में दखल के साथ ही संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन बताया था।

दरअसल, उत्तराखंड हाईकोर्ट ने एक अहम फैसल में एक रेप पीड़िता के खिलाफ जारी किए गए एक पंचायत के फतवे को गैर कानूनी करार देते हुए सभी फतवों को असंवैधानिक बताया था। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि उत्तराखंड के सभी धार्मिक संगठनों, सांविधिक पंचायतों और अन्य समूहों को फतवे जारी करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, क्योंकि यह सांविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों, गरिमा, सम्मान और व्यक्तियों के दायित्वों का उल्लंघन करता है।

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बताया जाता है कि उत्तराखंड के लक्सर में पंचायत ने एक बालात्कार पीड़िता के परिवार को गांव से निकालने के संबंध में फतवा जारी किया था। यानी इस फतवे में बलात्कार पीड़िता के परिवार को साथ देने के बजाए उनके परिवार का सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया। इस घटना की खबर एक समाचार पत्र में छपने के बाद इसी को आधार बनाकर हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी। इस याचिका का संज्ञान लेते हुए उत्तराखंड हाईकोर्ट के कार्यवाहक चीफ जस्टिस राजीव शर्मा और न्यायामूर्ति शरद कुमार शर्मा की एक खंडपीठ ने कहा कि फतवा कानून की भावना के खिलाफ है। अदालत ने कहा कि इस फतवे में दुष्कर्म पीड़िता से सहानुभूति दिखाने की बजाए पंचायत ने परिवार को गांव से बाहर निकालने का आदेश दिया, जो संविधान में प्रदत्त अधिकारों का खुला उल्लंघन है।

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