
सहारनपुर/देवबंद. समलैंगिकता अपराध है या नहीं इस पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्र की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने वृहद पीठ को सुनवाई का आदेश दिया है। इस पर अभी अंतिम फैसला आना बाकी है, लेकिन धार्मिक हलकों में इस को लेकर अभी से बेचैनी शुरू हो गई है। इस मुद्दे पर देवबंद के हिंदू और मुस्लिम दोनों ही धर्म गुरुओं ने विरोध जताया है। दोनों ही समुदाय के धर्म गुरुओं का कहना है कि यह संस्कृति के खिलाफ है। इस तरह की बातें किसी भी धर्म या शास्त्र में नहीं लिखी है।
मुस्लिम धर्मगुरु नदीम-उल-वाजिदि का कहना है कि इस्लाम धर्म में तो ये बिल्कुल मना है। मर्द का मर्द और औरत का औरत से निकाह नहीं हो सकता। कुरान-ए-करीम में इसकी वजह भी बयान कर दी गई है। यह कहा गया है कि निकाह का मकसद इंसान की नस्ल बढ़ाना है। नस्ल को आगे बढ़ाने के लिए निकाह किया जाता है। नस्ले इंसानी सिर्फ इसी सूरत में बढ़ सकती है, जब किसी मर्द का औरत से निकाह हो । मर्द का मर्द से निकाह होने की सूरत में या औरत की औरत से शादी होने की सूरत में यह मकसद पूरा नहीं होता। जहां तक हम समझते हैं कि किसी भी आसमानी मजहब में इसकी इजाजत नहीं है। जहां तक हमारा ख्याल है हिंदू मजहब भी इसकी इजाजत नहीं देता है कि औरत-औरत के बीच या मर्द-मर्द के बीच शादी जैसा कोई संबंध हो ।
इस्लाम धर्म में यह एक जुर्म है। मर्द का मर्द के साथ शारीरिक संबंध बनान जुर्म है। क़ुरआन-ए-करीम में इसकी सजा भी बताई गई है। इस्लाम से पहले जो पैगंबर थे, उनकी कौमों में इस तरह का रिवाज था, तो उन्हें अल्लाह की तरफ से सख्त सजा दी गई थी। उनकी बस्तियां तक उलट दी गई थी ।
वही, हिंदू धर्म गुरु ? समलैंगिक विवाह का विरोध करते हुए कहते हैं कि समलैंगिक विवाह के बारे में जो प्रस्ताव चल रहा है, वह एकदम गलत है। हिंदू संस्कृति के आधार पर यह अमान्य है। यह उचित नहीं है। न तो हमारे लिए ठीक है और न हमारे शास्त्रों में कहीं भी इसे उचित माना गया है। यह नहीं होना चाहिए। यह विदेशी कल्चर है। इंडिया से बाहर क्या होता है, वह एक अलग कल्चर है। बाहरी चीजें हमारे हिंदुस्तान पर नहीं थोपनी चाहिए और न ही देश में इसकी इजाजत देने वाले कानून होने चाहिए । अगर ऐसा होता है तो यह हिंदू धर्म के साथ एकदम गलत होगा, जो किसी भी रूप में उचित नहीं है।
Published on:
09 Jan 2018 06:13 pm
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