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रमजान की पांच रातों में मुसलमान क्यों करते हैं इबादत, क्या है शब-ए-कद्र की असलियत

एक हजार रातों से अफजल मानी जाती है शब-ए-कद्र रमजान की 21, 23, 25, 27 और 29वीं रात में से एक होती शब-ए-कद्र इसी रात को अल्लाह आने वाले एक साल के लिए लेते हैं फैसले

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देवबंद. इस्लामी धर्म में शब-ए-कद्र मुकद्दस महीने रमजान में आने वाली बहुत ही मुबारक रात है। कुरआन-ए-करीम में पूरी एक सूरत (अध्याय) इसी की फजीलत में नाजिल हुई है। इसमें शब-ए-कद्र की रात को एक हजार रातों से अफजल करार दिया गया है। इस रात को लैयलतुल कद्र इसलिये कहा जाता है, क्योंकि इसे दूसरी रातों के मुकाबले में बहुत बड़ा रुतबा हासिल है।

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बुखारी और मुस्लिम शरीफ की किताबों में हजरत अबू हुरैरा रजि. से रिवायत है कि इस्लाम धर्म के आखिरी पैगंबर रसूल अल्लाह स.अ.व ने फरमाया कि जो शख्स शबे कद्र में इबादत के लिए ईमान व अखलास के साथ खड़ा रहा। उसके तमाम पिछले गुनाह माफ हो गए। एक रिवायत में है कि सरकारे दो आलम स.अ.व ने इरशाद फरमाया कि जब शबे कद्र आती है तो जिब्रईल अले. (सबसे महान फरिश्ता) मलाईका (फरिश्तों) की एक जमात के साथ उतरते हैं और उन सभी लोगों के लिए रहमत की दुआ करते हैं, जो (इस रात) में खड़े हुए या बैठे हुए अल्लाह के जिक्र में लगे हुए हैं।

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एक हदीस में यह भी है कि पैगंबर मुहम्मद (स) ने फरमाया कि जब शब-ए-कद्र होती है तो अल्लाह तआला जिब्रईल अले. को हुक्म देते हैं कि फरिश्तों के झुंड के साथ जमीन पर जाओ। ये फरिश्ते इस रात में इबादत करने वाले हर बंदे को सलाम करते हैं और उनकी दुआओं पर आमीन कहते है। यहां तक कि सुबह हो जाती है। इसके बाद जिब्रईल फिर उन फरिश्तों से कहते है कि बस अब चलो, फरिश्ते पूछते हैं कि अल्लाह तआला ने मोमिनों के बारे में क्या फैसला फरमाया तो जिब्रईल कहते हैं कि अल्लाह तआला ने उन्हें अपनी रहमत से माफ कर दिया है। सिवाय चार शख्सों के एक वो जो आदतन शराब पीता है। दूसरा वह जो मां-बाप की नाफरमानी करते हैं। तीसरा कता रहमी (रिश्तों को तोड़ने वाले) तथा चैथा वह जो किसी से कीना (द्वेष) रखता है।

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किसी नहीं पता 5 रातों में से कौन सी शब-ए-कद्र की रात है
यह निर्धारित है कि शब-ए-कद्र रमजानुल मुबारक के महीने में आती है, लेकिन किस रात में है, यह नहीं बताया गया है। इस सिलसिले में साहबे तफसीर मजहरी ने लिखा है कि सही बात यह है कि शब-ए-कद्र रमजान मुबारक के आखिरी अशरे (आखिरी दस दिन) में होती है, लेकिन आखिरी अशरे की कोई विशेष तिथि निर्धारित नहीं है। आखिरी दस रातों में से खास ताक रातों यानी 21, 23, 25, 27 और 29वीं रात में अहादीस सहीहा में शब-ए-कद्र होने की अधिक उम्मीद है। सही बुखारी में हजरत आयशा सिद्दीका रजि. की रिवायत है कि पैगंबर-ए-इस्लाम (स) ने इरशाद फरमाया शब-ए-कद्र को रमजान के आखिरी अशरे में तलाश किया करो। सही मुस्लिम में हजरत सुफियान बिन एैनिया रजि. की रिवायत में है कि सरकारे दो आलम स.अ.व ने इरशाद फरमाया कि शब-ए-कद्र को रमजान के अशरा-ए-आखिर की ताक रात में तलाश करो।