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Religion : शंकराचार्य ने कहा जात-पात की विदाई चाहते हैं धीरेंद्र शास्त्री तो पहले खुद छोड़े ब्राह्मण जात!

शंकराचार्य बोले कि बात को समझने की जरूरत है। रामानंदाचार्य ने कभी जात-पात खत्म करने की बात नहीं की थी उन्होंने जात-पात का भेद-भाव खत्म करने की बात कही थी, उन्होंने कहा था कि भगवत भक्ति का सभी को अधिकार है, यही हम भी कहते हैं।

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Shankaracharya

रामचरित मानस में जात-पात का वर्णन दिखाते शंकराचार्य

Religion : शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा है कि धीरेंद्र शास्त्री वामपंथियों की भाषा बोल रहे हैं ! वो सनातन तो तोड़ने की बात कर रहे हैं! अगर उन्हे जात-पात की विदाई करनी है तो पहले खुद ब्राह्मण जाति छोड़ने की घोषणा करें। एक दिन किसी दलित के घर खाने से कुछ नहीं होता, किसी दलित बेटी से शादी करें फिर सारी उम्र उसके हाथ का बना खाना खाएं, दिखावा ना करें।

यह बात शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने सहारनपुर में दिल्ली रोड स्थित श्री सालासर बालाजी हनुमत धाम में पंडित अभिषेक कृष्णात्रें को तुलसी रचित रामचरित मानस का पाठ सुनाते हुए कही। शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद मंगलवार को सहारनपुर पहुंचे थे। यहां उन्होंने सिद्ध पीठ शाकम्भरी देवी के दर्शन किए और फिर शाकम्भरी देवी पीठ के महंत शहजानंद महाराज को साथ लेकर सहारनपुर पहुंचे। यहां जात-पात पर के विषय पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि बात को समझने की आवश्यकता है। जात-पात की विदाई करने की बात नहीं कही गई है जात-पात के भेद के खत्म करने की बात कही गई है।

उन्होंने रामचरित मानस को पढ़ते हुए बताया कि, देखों साफ लिखा है जब श्री राम अयोध्या लौटे तो सब ठीक हो गया। सब अपने-अपने कार्यों में लग गए, जिसकी जो जाति थी वह अपनी जाति के अनुसार कार्य करने लगा, तो साफ है कि जब तुलसीदास जी ने भी जात-पात की विदाई करने की बात नहीं कही तो तुलसी पीठ पर बैठकर धीरेंद्र शास्त्री ऐसा कैसे कह सकते हैं। उन्होंने कहा कि जाति सनातन धर्म की रीढ़ है। जहां-जहां जातियां खत्म हुई वहां सनातनियों ने धर्म बदल लिया। इससे साफ है कि धीरेंद्र शास्त्री सनातन के खिलाफ बोल रहे हैं उनको ऐसा नही करना चाहिए।

उन्होंने यह भी कहा कि धीरेंद्र शास्त्री जो बोल रहे हैं वो रामजी के विरुद्ध हैं तुलसीदास जी के विरुद्ध है और रामानंदाचार्य के भी विरुद्ध है। धीरेंद्र शास्त्री के गुरु कहते हैं कि हम रामानंदाचार्य के पदचिन्हों पर चलते हैं लेकिन रामानंदाचार्य ने कभी जात-पात की विदाई की बात नहीं की। उन्होंने तो ये कहा था कि जात-पात का भेदभाव खत्म हो भगवान की स्तुति करने का अधिकार सभी को जात-पात के भेदभाव से किसी को भगवान की स्तुति करने से रोका ना जाए। यह तो हम भी कह रहे हैं यह होना चाहिए लेकिन इसका मतलब जात-पात की विदाई नहीं है।