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कच्ची शराब की सच्ची कहानी, जानिए महज दस रुपये में कैसे तैयार होता है मौत का पव्वा

जहरीली शराब ( poisonous liquor ) दाे तरह से बनती है लेकिन दोनों ही तरीकों में इसका कारक मिथाइल एल्कोहल बनाता है। मिथाइल एल्कोहल की महज दस एमएल मात्रा ही व्यक्ति की मौत का कारण बन सकती है।

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Raw liquor

poisonous liquor

शिवमणि त्यागी
सहारनपुर ( Saharanpur ) यूपी में एक बार फिर जहरीली शराब ( liquor ) ने कई जिंदगियां उजाड़ दी। अलीगढ़ ( Aligarh ) में अब तक 28 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। एक माह के भीतर यूपी में जहरीली शराब ( poisonous liquor ) पीकर मरने वालो की संख्या का ग्राफ 60 के पार जा चुका है। पुलिस हर मामले में कुछ को हिरासत में लेती है, जेल भेजती है। मुकदमा चलता है और कुछ माह बाद आरोपी रिहा हो जाता है लेकिन मौत का सिलसिला नहीं थमता।

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कच्ची शराब से होने वाली मौत के लिए मिथाइल अल्कोहल और इथाइल अल्कोहल जिम्मेदार हैं। इथाइल अल्कोहल नेचुरल प्रक्रिया (सड़ने) से तैयार होता है। इससे शराब बनती है जबकि, मिथाइल अल्कोहल फर्टिलाइजर इंडस्ट्री का वेस्ट है। यह इतना जहरीला होता है कि महज 10 एमएल मिथाइल अल्कोहल से व्यक्ति अंधा हो सकता है और उसकी जान जा सकती है। दोनों की गंध और नेचर एक जैसा होता है। इसलिए बिना लैब जांच के दोनों की पहचान मुश्किल है। कई बार कच्ची शराब बनाने वाले इथाइल अल्कोहल सोचकर मिथाइल अल्कोहल से जहरीली शराब बना बैठते हैं। मिथाइल अल्कोहल के इस्तेमाल के पीछे एक बड़ी वजह यह भी बताई जाती है कि यह महज छह रुपए लीटर मिलता है जबकि, इथाइल अल्कोहल 40 से 45 रुपये लीटर बिकता है। ऐसे में अधिक मुनाफे के चक्कर में भी कछित ठेकेदार मिथाइल अल्कोहल से शराब बनाते हैं।


गुजरात से होती है सप्लाई
जिला आबकारी अधिकारी वरुण कुमार के अनुसार मिथाइल अल्कोहल की यूपी में सर्वाधिक सप्लाई गुजरात से होती है। थिनर और पेंट बनाने में इसका इस्तेमाल होता है। इसलिए फैक्ट्रियों में इसकी सप्लाई होती है। जब हमने इसकी पड़ताल की तो पता चला कि वैसे ताे मिथाइल अल्कोहल का ट्रांसपोट्रेशन सेंट्रल एक्साइज की निगरानी में होता है लेकिन अफसरों की लापरवाही और कैंटर चालकों की मिलीभगत से यह मिथाइल शराब तस्करों तक पहुंचता है। इसके अलावा मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, मेरठ, बिजनौर और यूपी के अन्य जिलों में शराब माफियाओं की भट्ठियां सुलगती हैं। यहां कई बार साहड़े काे सड़ाने और कच्ची शराब की मात्रा को त्रीव करने के लिए यूरिया और अन्य केमिकल का प्रयोग किया जाता है। बाद में यही शराब आबकारी और पुलिस विभाग की मिलीभगत से यह शराब खुदरा दुकानों तक पहुंचती है। डिस्टलरी कंपनी में शराब में अल्कोहल की जांच करने वाले केमिस्ट अजय शर्मा बताते हैं कि कच्ची शराब में यूरिया और ऑक्सिटोसिन जैसे केमिकल पदार्थ मिलाने की वजह से यह मिथाइल अल्कोहल बन जाता है। यह भी मौत का कारण बनता है।

चीनी मिलों के कारण माल उपलब्ध
कच्ची शराब गुड़, शीरा और लहन से बनती है। उत्तर प्रदेश में चीनी मिलें अधिक होने के कारण गुड़ और शीरा मिलने में परेशानी नहीं होती। लहन की खेती गंगा के किनारे खूब होती है। लहन को मिट्टी में गाड़ देते हैं। एक सप्ताह बाद इसमें यूरिया, बेसरमबेल की पत्ती और ऑक्सीटोसिन का इस्तेमाल कर शराब बनाते हैं। इस शराब में मिला ऑक्सीटोसिन ही मौत का कारण बनता है। इस तरह जहरीली या कच्ची शराब का एक पव्वा 10 रुपये में तैयार हो जाता है।

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