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विजयदशमी पर रावण का पुतला जलाने से डरते थे इस गांव के लाेग, अब धीरे-धीरे निकल रहा डर

Highlights दशकाें से इस गांव में नहीं हाेता रावण का दहन अब हाेने लगी रामलीलाएं बदल रही परम्पराएं जानिए Ravan Village Bisrakh की कहानी जानिए क्याें इस गांव नहीं हाेता लंकापति का दहन

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रावण मंदिर

सहारनपुर। वेस्ट यूपी में एक गांव ऐसा भी है जहां विजयादशमी पर लंकापति रावण का पुतला नहीं जलाया जाता। इस गांव के लाेगाें का कहना है कि अगर वह लंकापति का पुतला दहन करते हैं ताे उनके गांव में काेई अपशकुन हाे जाता है। हम बात कर रहे हैं ग्रेटर नाेएडा के गांव 'बिसरख' की।

गाैतमबुद्धनगर जिले के इस गांव के लाेग रावण का पुतला दहन करने से डरते हैं। दरअसल इस गांव के लाेगाें का यह मानना है कि जब-जब उन्हाेंने लंकापति का पुतला जलाने की काेशिश की ताे उनके गांव में काेई बड़ा अपशकुन हाे गया। यही कारण है कि इस गांव के लाेग रावण का पुतला नहीं जलाते।

ग्रामीणाें के मन में इस आशंका यूं ही जन्म नहीं लिया इसके पीछे भी एक बड़ी वजह है। दरअसल, इस गांव के लाेगाें का दावा है कि, लंकापति रावण का जन्म इसी (Bisrakh) गांव में हुआ था। लंकापति रावण का मेरठ (Meerut) जिले से भी खास नाता है। कहा जाता है कि मेरठ में लंकापति की ससुराल थी और उनकी पत्नी मंदाेदरी मेरठ जिले की रहने वाली थी। इस तरह लंकापति दशानन रावण का वेस्ट की धरती से सीधा कनेक्शन रहा है।

लंकापति का नहीं जलाते पुतला लेकिन आदर्श हैं श्रीराम

ग्रेटर नाेएडा के गांव बिसरख के लाेग भले ही लंकापति का पुतला ना जलाते हाें लेकिन इनकी आस्था भगवान श्रीराम में है। इसी गांव के रहने वाले लाेगाें का कहना है कि वह रावण काे गलत नहीं मानते, रावण का पुतला नहीं जलाते लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वह राम विचारधारा के विराेधी है। इस गांव के लाेगाें का कहना है कि उनके आदर्श भगवान श्री राम ही हैं।

अब बदल रही ग्रामीणें काे साेच निकल रहा डर

कई दशकाें तक इस गांव के लाेगाें काे यह डर रहा कि यदि उन्हाेंने रावण का पुतला जलाया ताे काेई बड़ा अपशकुन हाे सकता है। धीरे-धीरे गांव के लाेगाें का यह अब डर खत्म हाे रहा है। अब पुरानी परम्परा और साेच बदल रही है। गांव की युवा पीढ़ी ने रामलीला शुरु कर दी है और अब इस गांव में लंकादहन का विराेध भी धीरे-धीरे कम हाे रहा है।

इसलिए माना जाता है जन्मस्थली

ग्रेटर नाेएडा के गांव बिसरख के लाेग मानते हैं कि उनका गांव लंकापति का गांव है। गांव के बुजुर्गाें के का कहना है कि, इस गांव में जाे अष्टभुजाधारी शिवलिंग हैं, जिसकी स्थापना रावण के पिता ऋषि विश्रवा ने की थी। पुराणाें में भी यह उल्लेख आता है कि रावण के पिता ने शिवलिंग की घाेर तपस्या की थी और इसक तपस्या के बाद ही रावण का जन्म हुआ था जिन्हे बाद में लंकापति रावण कहा गया।

इसी गांव के मंदिर के पुजारी महंत रामदास बताते हैं कि ऐसा काेई शिवलिंग पूरे वेस्ट यूपी से लेकर देव भूमि हरिद्वार तक नहीं है। ऐसे में यही मान्यता है कि इसी गांव में रावण के पिता ने तपस्या की और फिर रावण का जन्म हुआ। यह अनाेखा शिवलिंग है, जिसकी अराधना करने के लिए देश के पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर भी इस गांव में आ चुके हैं।

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