
लोकसभा चुनाव से पहले पीएम मोदी ने दिया तोहफा, किसानों को नहीं आ रहा पसंद
सहारनपुर। सरकार ने भले ही धान की एमएसपी यानि न्यूनतम समर्थन मूल्य में ₹200 की बढ़ोतरी करने की घोषणा कर दी हो लेकिन किसान अभी भी खुश नहीं है। अभी भी किसानों का यही कहना है कि एमएसपी सिर्फ आंकड़ों का खेल है। आज भी किसानों को Msp से कम दर पर अपनी फसल बेचनी पड़ रही है। इसके लिए कोई और नहीं बल्कि खुद सरकार ही जिम्मेदार है।
इस बारे में किसानों का यही कहना है कि सरकारी क्रय केंद्रों पर इतने नियम और शर्तें लगा दी जाती हैं कि किसान वहां पर अपनी फसल को बेच नहीं पाता और ऐसे में दलाल किसान की मजबूरी का फायदा उठाते हैं और एमएसपी से भी कम मूल्य पर किसान अपनी फसल बेचने के लिए मजबूर हो जाता है।
सहारनपुर के किसान अरुण राणा, विनय चौधरी, सत्यपाल और मुरली का कहना है सरकार ने धान की फसल पर जो एमएसपी बढ़ाई है वह स्वागत योग्य है। सरकार ने धन की फसल के न्यूनतम मूल्य में जो वृद्धि की है उसका किसान स्वागत करते हैं लेकिन यह बढोत्तरी कम है।
किसानों का यह भी कहना है कि सरकार को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि किसानों को वाकई एमएसपी का लाभ मिल रहा है या नहीं। सरकार को यह देखना होगा कि किसी भी जिले में किसान एमएसपी से नीचे दरों पर अपनी फसल ना बेचे। जो लोग किसानों से एमएसपी से कम दरों पर फसल खरीद रहे हैं उनके खिलाफ भी सरकार को सख्ती से पेश आना चाहिए। ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए।
क्या है एमएसपी
दरअसल, किसानों को अपनी फसल का सही दाम मिल सके इसके लिए सरकार एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करती है। यह न्यूनतम समर्थन मूल्य इसलिए घोषित किया जाता है कि किसान को उसकी फसल का सही दाम मिल सके। एमएसपी यह भी तय करता है कि किसी भी तरह की परिस्थितियों में किसान की फसल को इससे कम मूल्य पर नहीं बेचा जाएगा और ना ही इससे कम मूल्य पर खरीदा जाएगा।
खास बात यह है कि किसान एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य से ऊपर किसी भी दाम पर अपनी फसल को कहीं भी बेच सकते हैं। इस पर सरकार को कोई आपत्ति नहीं होती। किसान को अगर एमएसपी से अधिक मूल्य कहीं भी अपनी फसल का मिल रहा है तो किसान स्वतंत्र हैं और एमएसपी से अधिक मूल्य पर अपनी फसल को बेच सकते हैं, लेकिन अगर बाजार में या खरीददार से न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नहीं मिल रहा है तो फिर इसके लिए सरकार किसान की फसल खरीदने के लिए बाध्य होती है और सरकार इस कीमत पर किसान की फसल को खरीदती है।
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इसके लिए सभी जिलों, कस्बों और यहां तक कि गांव में भी सरकार की ओर से क्रय केंद्र लगाए जाते हैं। इन क्रय केंद्रों पर सरकार इस मूल्य पर किसानों की फसल खरीदती है। यानी साफ है कि जो एमएसपी तय किया जाता है उतना पैसा किसानों को अपनी फसल का मिलना ही होता है। अगर किसान को बाजार में अपनी फसल का कितना मूल्य नहीं मिल पा रहा तो किसान अपनी फसल को सरकारी क्रय केंद्र पर बेच सकता है।
क्या कहते हैं किसान
किसानों का कहना है कि कई बार सरकार की ओर से MSP बढ़ाकर घोषित किए जाने के बाद भी किसानों को अपनी फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नहीं मिल पाता और इसका एक बड़ा कारण यह होता है कि सरकारी क्रय केंद्रों पर नियम और शर्तें बहुत कठिन होती हैं। ऐसे में किसान वहां अपनी फसल को नहीं भेज पाता और जब किसी सरकारी क्रय केंद्र से किसान की फसल रिजेक्ट हो जाती है तो फिर किसान उसको न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी कम कीमत पर बेचने के लिए मजबूर हो जाता है। ऐसे में सरकार को चाहिए कि वह सरकारी क्रय केंद्रों पर नियम और शर्तों में सैलरी कर लें और सभी सरकारी क्रय केंद्र किसान फ्रेंडली होने चाहिए।
Published on:
05 Jul 2018 03:01 pm
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