सोयाबीन की लहलहाती फसल को देखकर उन्होंने जो सपने देखे थे वे एक-एक कर उनकी आंखों के समाने नाचने लगे। अपनी उपज लेकर मंडी आए रामकरण ने बताया कि पांच एकड़ जमीन की उपज से पांच बोरियां नहीं भरीं। कुल चार बोरी सोयाबीन हुआ है। हलांकि मंडी में उनका सोयाबीन सबसे महंगा बिका। रामकरण ने बताया कि जब घर में फसल ही नहीं तो दाम अच्छे मिलने या न मिलने से कोई फर्क नहीं पड़ता। 30 लाख की लगत से पांच एकड़ में फसल लगाई थी। लेकिन, उपज मात्र 9 हजार की हुई है। एसी खेती से हम किसानों के दिन कैसे बदल सकते हैं। चबूतरे पर बिखरी फसल समेटे हुए किसान ने कहा कि अब खेती के बूते परिवार चलाना मुश्किल हो गया है। सूखे की मार ने अरमानों पर पानी फेर दिया। छह माह हाड़ तोड़ मेहनत की, लेकिन जितनी उपज मिली उससे मेहनताना निकालना मुश्किल है। अब यह समझ में नहीं आ रहा कि इस पैसे से खाद-बीज खरीदी या बिजली का बिल कैसे भरें।