
satna lilgi dam
सतना. राजशाही जमाने में 12 गांवों की 1068 हैक्टेयर जमीन को अधिगृहीत कर उसे लिलजी जलाशय का रूप दिया गया था। स्वतंत्रता के बाद जल संसाधन विभाग के आधिपत्य में रही इस जमीन पर बाद में इसके नीचे छिपे ए ग्रेड के लाइम स्टोन पर कब्जा करने लगातार साजिशें चलती रहीं। इसे फर्जी तरीके से तत्कालीन कलेक्टर द्वारा अनुपयोगी बताकर राजस्व भूमि में परिवर्तित किया गया। इसके बाद यहां सुनियोजित तरीके से अवैध कब्जे कराए गए। फिर इन कब्जेदारों को भू-स्वामी बताकर जमीन वापसी की घोषणा भी मुख्यमंत्री से करा दी गई। तब से यहां जमीन वापसी और खनन माफिया का खेल लगातार चलता रहा।
विधानसभा में मामला
एक वक्त स्थिति तो यहां तक आई कि तत्कालीन कलेक्टर सुखबीर सिंह ने इस जमीन पर खनिज की पीएल तक स्वीकृत कर दी। मामला विधानसभा में उठने पर आनन-फानन में इसे निरस्त किया। बाद में कलेक्टर केके खरे, संतोष मिश्रा और नरेश पाल ने लगातार इस जमीन की स्थिति स्पष्ट करते हुए मूल भू-स्वामी नहीं होने पर जमीन वापसी नहीं हो पाने का स्पष्ट प्रतिवेदन तक शासन को भेज दिया है। जो अभी भी विचाराधीन है। ऐसे में इस जमीन पर अब एक बार फिर खनन लीज स्वीकृत किए जाने की बात सामने आई है। हालांकि इस मामले में जिला पंचायत की सामान्य प्रशासन समिति की बैठक में जिपं सदस्य ने आपत्ति उठाते हुए उसे निरस्त करने की मांग की है।
यूं सामने आया मामला
जिला पंचायत की सामान्य प्रशासन समिति की बैठक में जिपं सदस्य एवं निर्माण समिति के अध्यक्ष सत्येन्द्र सिंह ने इस फर्जीवाड़े का खुलासा किया। बताया कि इस जमीन की वापसी का मामला अभी शासन स्तर पर विचाराधीन है। मुख्यमंत्री की घोषणा में यह शामिल है। इसके साथ ही यहां तत्कालीन कलेक्टर सुखबीर सिंह ने 1800 एकड़ की पीएल जारी की थी। यह फर्जीवाड़ा खुलने पर उन्होंने लीज निरस्त किया था। अब एक बार फिर साजिश पूर्वक इस जमीन में डेढ़ सौ एकड़ के लगभग क्वैरी लीज दे दी गई। किसानों को खेती के लिए अभी इस भूमि का विवाद शासन पर विचाराधीन है और इसका स्वामित्व अभी शासन के पास है। ऐसे में जिला प्रशासन ने बड़ा खेल करते हुए यह लीज जारी की है। उन्होंने दो नाम भी बताए कि खुशी माइनिंग और एक निगम को लीज दी गई है साथ ही यहां क्रेशर स्थापित किए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि वन विभाग, तहसीलदार, पटवारी, जिला पंचायत और ग्राम पंचायत सहित खनिज अधिकारी ने मिलकर बड़ा खेल किया है। उन्होंने यह लीज निरस्त करने सहित इसकी जांच की मांग की है।
वन विभाग ने भी दी गलत जानकारी
जिपं सदस्य ने बताया कि वन विभाग ने मामले में अपनी एनओसी में बताया है कि यह जमीन सफारी से 10 किमी दूर है। जबकि यह संरचना सफारी से बमुश्किल ३ किलोमीटर की दूरी पर आती है। इसी तरह से राजस्व अमले ने भी गलत प्रतिवेदन दिया है।
क्या कलेक्टर को जानकारी नहीं
यहां सवाल यह भी खड़ा हो गया कि क्या कलेक्टर मुकेश शुक्ला को लिलजी जलाशय के मामले की जानकारी नहीं है जो उन्होंने यहां पर लीज स्वीकृत करने का निर्णय लिया। हालांकि पूरी हकीकत का खुलासा इसकी जांच में ही होगा। लेकिन इन्होंने लिलजी के जिन्न को बाहर निकाल कर एक बार फिर सनसनी फैला दी है।
एनओसी के बाद लिया निर्णय
खनिज अधिकारी पीपी राय ने कहा कि हमने राजस्व अमले की एनओसी के बाद ही निर्णय लिया है। अगर गलत होगा तो फिर से निरस्त किया जा सकता है।
Published on:
22 Aug 2018 12:12 pm
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