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इंटरनेट के मकडज़ाल में बच्चे

डिजिटल युग: मानसिक रूप से हो रहे रिमोट, फिजिकल प्रॉब्लम भी बढ़ी  

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सतना

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Jyoti Gupta

Apr 22, 2019

Digital age: mental retardation, physical problem also increased

Digital age: mental retardation, physical problem also increased

केस- एक
पांच साल की कुहू को जब भी उनकी मॉम खाना खिलाती हैं तब तब उन्हें मोबाइल पर गेम चलाना पड़ता है। अब तो हालात यह हैं कि मोबाइल पास में न हो तो वह भूखी ही रह जाती है। इस बात को लेकर अब हर वक्त कुहू की मॉम परेशान रहती हैंं।

केस- दो

दस साल के अमन की आंखों की रोशनी इतनी कम उम्र में कम हो गई। जब चेकअप कराया तो पता चला कि वह आवश्यकता से अधिक मोबाइल चलाता था। मोबाइल से निकलने वाली रोशनी के कारण अमन को एेसी दिक्कत हो गई।


सतना. पांच से 14 साल के लगभग 60 प्रतिशत बच्चे मोबाइल के अधिक इस्तेमाल से मेंटली और फिजिकली परेशान हैं। किसी का स्टडी में मन नहीं लगता है। कम उम्र में नजर का चाश्मा लग रहा है। छोटी उम्र में मोटपे के शिकार हो रहे हैं। कुछ बच्चे बुरी आदतों के भी शिकार हो रहे हैं। इनकी सबकी वजह मोबाइल और इंटरनेट है। शहर के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. एसके पांडेय की मानंे तो उनके यहां हर दिन पैरेंट्स बच्चों की इस तरह की समस्याओं के साथ पहुंच रहे हैं। जब डीपली पूछताछ की जाती है तो पता चलता है कि इसके पीछे मोबाइल की अधिकता वजह है। जिस मोबाइल और इंटरनेट सुविधा को लोग भविष्य संवारने की मशीन समझ रहे थे, अब वही बच्चों का दुश्मन बन बैठा है। पिछले कुछ सालों में स्कूल और कॉलेज के बच्चे ऑनलाइन गेम्स की लत, सोशल मीडिया में परोसे जाने वाले अश्लील कंटेंट देखने की साइबर बुलिंग शिकार हुए हैं। बच्चों के भविष्य को देखते हुए ही हाल ही में टिक-टॉक और पब्जी जैसे एेप में बैन लगा दिया गया है। इंटरनेट ने बच्चों का हंसता खेलता बचपन छीन लिया है। बच्चे इसके माया जाल में उलझते ही जा रहे हैं। अगर पैरेंट्स ने ध्यान नहीं दिया तो उनके बच्चे मानसिक और फिजिकली रूप से खुद को नुकसान पहुंचा बैठेंगे।


इंटरनेट एडिक्शन बना बीमारी

साइबर एक्सपर्ट ने बताया, बच्चों में साइबर एडिक्शन पिछले तीन सालों में ज्यादा बढ़ा है। ऐसे-ऐसे हिंसक गेम्स आ रहे हैं जिन पर कोई रोक-टोक नहीं है। जैसे पब्जी 16 प्लस गेम है, लेकिन हमारे यहां नौ से 14 साल के बच्चे भी खेल रहे हैं। इंस्टाग्राम बच्चों में बहुत पॉपुलर है। उसमें कई बार बच्चे आपत्तिजनक फ ोटोज भी शेयर कर देते हैं। टिक-टॉक भी किसी एडक्शिन से कम नहीं है। इन वीडियो को हर तरह के लोग देखते हैं फिर बच्चों को बहला-फु सलाकर उनके आपत्तिजनक फ ोटो ले लेते हैं और धमकाते हैं। इसके अलावा पोर्नोग्राफ ी का एडिक्शन और साइबर बुलिंग के मामले भी इन दिनों खूब देखने को मिल रहे हैं।
पैरेंट्स करें पालन
- बच्चे को पर्सनल मोबाइल फ ोन न दें। यदि देना जरूरी हो तो कीपैड वाले बेसिक मोबाइल सेट दें।

- बच्चे पर नजर रखें कि वह इंटरनेट या मोबाइल पर कितने घंटे बिताता है। उसके हिसाब से उसका स्क्रीन टाइम लिमिट करें।
- बच्चा कौन-कौन से ऐप्स इस्तेमाल कर रहा है, यह देखें।

- उसके फ ोन के पासवर्ड की जानकारी रखें।
- फ ोन पर पैरेंटल सेफ्टी कंट्रोल रखें।

- सामान्य यूट्यूब या गूगल के बजाय बच्चों के लिए सुरक्षित यूट्यूब फ ॉर किड्स और किंडर ब्राउजर डाउनलोड करें।
- हेलीकॉप्टर पैरटिंग मत कीजिए। अगर हर वक्त बच्चों के सिर पर मड़मड़ाते रहेंगे तो वे आप से चीजें शेयर नही कर पाएंगे ।

- बच्चों का भरोसा जीतें ताकि वह अपनी दिक्कतें आपसे शेयर करें।
- अगर वह बातें छुपा रहा है तो एक्सपर्ट की मदद लें।

- मां-बाप अक्सर टेक्नालॉजी के मामले में बच्चों से कम जानते हैं। ऐसे में खुद भी नई टेक्नोलॉजी सीखते रहें।
- सबसे बड़ी बात छोटे बच्चों के सामने कभी भी मोबाइल न यूज करें।


स्कूल्स भी रखें ध्यान

- बच्चों और पैरेंट्स से बात करने में न हिचकंे ।
- ऑनलाइन सुरक्षा को लेकर समय समय पर इंटरैक्टिव वर्कशॉप करें।

- स्कूल में काउंसलर या कोई ऐसी व्यवस्था की जाए जहां बच्चे बिना डरे सहमे अपनी समस्याएं शेयर कर सकें।
- स्कूल के कम्प्यूटर सिस्टम पर सिक्योर एक्सेस ही प्रदान करें। गैर जरूरी पॉप अप ब्लॉक रखें और बच्चों की ऑनलाइन गतिविधियों पर नजर रखें।

- बच्चों को लाइफ स्किल डेवलप करने के लिए प्रोत्साहित करें।

प्राब्लम बढ़ जाने पर आते हैं पैरेंट्स
सॉइकोलॉजिस्ट डॉ. राजीव गुप्ता कहते हैं, बच्चों की इस बुरी आदत के पीछे पैरेंट्स का ही हाथ है। क्योंकि पैरेंट्स ही बच्चों के सामने मोबाइल चलाते हैं। उनके सवालों से बचने और झटपट काम खत्म करने के चक्कर में बच्चों को मोबाइल थमा देते हैं। अब तो हर दिन एेसे पैरेंट्स आते हैं, जिनके बच्चे इंटरनेट इविल्स का शिकार है। पैरेंट्स पहले नोटिस नहीं करते हैं और समस्या बढऩे पर चिकित्सक के पास आते हैं। आवश्यकता से अधिक मोबाइल चलाने वाले बच्चे भावनात्मक रूप से कमजोर और रोबोट की तरह हो जाते हैं। व्यक्तित्व विकास में कमी, खराब रिजल्ट, मोटापा कमजोर नजर जैसी समस्याओं की देन है इंटरनेट की बुरी लत है। इसलिए पैरेंट्स को अब इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए।