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सतना : सरकार ने जिस रासुका बंदी की कारावास अवधि 3 माह बढ़ाई, जेल अधीक्षक ने उसे मुक्त किया

कलेक्टर रीडर के मौखिक कथन पर ले लिया रासुका बंदी को मुक्त करने का निर्णय

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सतना : सरकार ने जिस रासुका बंदी की कारावास अवधि 3 माह बढ़ाई, जेल अधीक्षक ने उसे मुक्त किया

सतना : सरकार ने जिस रासुका बंदी की कारावास अवधि 3 माह बढ़ाई, जेल अधीक्षक ने उसे मुक्त किया

सतना। केन्द्रीय जेल में एक रासुका निरुद्ध कुख्यात अपराधी को जेल अधीक्षक ने नियम विरुद्ध तरीके से रासुका से मुक्त कर दिया है। यह कृत्य उन्होंने तब किया है जबकि गृह विभाग ने संबंधित बंदी की निरोध अवधि पुलिस अधीक्षक और जिला दण्डाधिकारी के प्रस्ताव पर तीन माह के लिए बढ़ा दी थी। हद तो यह हो गई है कि जेल अधीक्षक ने महज एक रीडर की मौखिक जानकारी पर यह कार्रवाई करना बताया है। हालांकि मामला खुलने के बाद मामले में हड़कंप मच गया है और संबंधित जिम्मेदार इस मामले में कुछ बोलने से कतरा रहे हैं। जानकारी के अनुसार राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत कुख्यात अपराधी राजन सिंह करही को 3 माह के लिए जेल में निरुद्ध किया था। इसकी निरोध अवधि 22 जून को समाप्त हो रही थी। इसे देखते हुए पुलिस अधीक्षक और जिला दण्डाधिकारी ने गृह विभाग को राजन की निरोध अवधि बढ़ाने का प्रस्ताव भेजा। जिसमें बताया गया कि वह जेल में बंद रहकर भी अपने संगठित सहयोगियों के जरिये खुद पर चल रहे आपराधिक प्रकरणों के शिकायतकर्ताओं और गवाहों को धमका रहा है। अगर रिहा होता है तो स्थिति और गंभीर हो जाएगी। इस मामले की गंभीरता को देखते हुए गृह विभाग ने 19 जून को राजन की निरोध अवधि तीन माह अर्थात 22 सितंबर तक बढ़ा दी। इस आदेश की प्रतिलिपि जेल अधीक्षक सहित जिला दंडाधिकारी को दी गई।

जेल अधीक्षक का खेल

इधर इस मामले में जेल अधीक्षक ने यह कहते हुए कि जेल अधीक्षक कार्यालय को राजन सिंह की निरोध अवधि बढ़ाए जाने के संबंध में कोई आदेश प्राप्त नहीं हुआ है। यह भी कहा कि कलेक्टर न्यायालय के रीडर द्वारा मौखिक रूप से निरोध की अवधि नहीं बढ़ाने की जानकारी दी गई। इस आधार पर राजन सिंह करही को रासुका से मुक्त कर दिया। जबकि नियमानुसार रासुका से मुक्त करने के लिए जेल अधीक्षक को जिला दंडाधिकारी को जानकारी देनी चाहिए थी।

विवादों में है सेन्ट्रल जेल

इन दिनों सेन्ट्रल जेल विवादो में है। कुछ दिन पहले ही जेल से पैरोल पर रिहा किए गए अपराधियों पर प्राण घातक हमला किया गया था। इस विवाद की वजह जेल के अंदर बंद कैदियों से पैरोल पर छूटे कैदियों के विवाद से जोड़ कर देखा जा रहा है। और अब इस तरह से कुख्यात अपराधी को रासुका से मुक्ति दे देना अपने आप में बडा मामला हो गया है।

'' जेल अधीक्षक की कार्रवाई गलत है। रासुका जैसे गंभीर मामले में किसी अनाधिकारिक व्यक्ति के मौखिक कथन पर निर्णय नहीं लिये जा सकते हैं। नियमानुसार उन्हें जिला दंडाधिकारी से जानकारी लेनी थी। इस मामले का हम परीक्षण कर रहे हैं '' - अनुराग वर्मा, कलेक्टर