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सतना जिले में शिशु और मातृ मृत्यु दर प्रदेश के औसत से ज्यादा

शिशु गहन चिकित्सा इकाई में भर्ती होने वालों में भी ज्यादातर मेल चाइल्ड कलेक्टर ने स्वास्थ्य अधिकारियों से कहा कि कुर्सी में बैठना छोड़ फील्ड में जाओ

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सतना जिले में शिशु और मातृ मृत्यु दर प्रदेश के औसत से ज्यादा

शिशु औौर मातृ मृत्यु दर की समीक्षा करते कलेक्टर अनुराग वर्मा

सतना। जिले में शिशु मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर मध्यप्रदेश के औसत से ज्यादा है। यह खुलासा स्वास्थ्य विभाग और महिला बाल विकास विभाग की संयुक्त समीक्षा के दौरान सामने आया। चौंकाने वाले सामने आए आंकड़ों से खुली स्वास्थ्य सेवाओं की पोल में कलेक्टर अनुराग वर्मा ने पाया कि प्रति एक हजार में 83 नवजातों की असमय मौत हो रही है जबकि प्रदेश का औसत 52 है। अर्थात में 31 नवजातों की मौत प्रदेश के औसत से ज्यादा हो रही है। इसी तरह से जिले की मातृ मृत्यु दर 268 है जबकि प्रदेश की 227 प्रति लाख है। अर्थात जिले में ४२ महिलाओं की मौत प्रदेश के औसत से ज्यादा हो रही है। इसमें ज्यादातर महिलाओं की मौत प्रसव के बाद 42 दिन के अंदर हो रही है। इस पर कलेक्टर ने जमकर नाराजगी जताई और स्वास्थ्य अधिकारियों से कहा कि यह आंकड़े ग्रामीण क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं की कमजोर व्यवस्था को दिखा रहे हैं। कुर्सियों में बैठना बंद करो और फील्ड में जाओ। इसके पीछे एएनएम की सेवाओं की कमी स्पष्ट नजर आ रही है।

परिवार नियोजन भी कमजोर

समीक्षा बैठक में पाया गया कि जिले की जन्म दर 28.2 है जबकि प्रदेश का बर्थ रेट 24.5 है। स्पष्ट है कि प्रदेश के औसत से ज्यादा बच्चों का जन्म जिले में हो रहा है। इससे साबित हो रहा है कि जिले में परिवार नियोजन कार्यक्रम अपेक्षित रूप से सफल नहीं है इसलिये जिले की बर्थ रेट ज्यादा है।

चौंके कलेक्टर, कहा जेंडर परीक्षण की संभावना

समीक्षा के दौरान एसएनसीयू में भर्ती कराए जाने वाले नवजातों के बारे में जब जानकारी दी गई तो कलेक्टर चौंक गए। पाया कि यहां भर्ती होने वालों में मेल चाइल्ड ज्यादा है जबकि फीमेल चाइल्ड की संख्या अपेक्षाकृत काफी कम है। कलेक्टर ने पूछा कि ऐसा कैसे हो सकता है। मेल फीमेल नवजात में भर्ती का इतना अंतर बता रहा है कि या तो यहां जेंडर टेस्ट हो रहा है या फिर फीमेल चाइल्ड को लेकर अभी भी समाज में गंभीरता नहीं है।

बिल्ला टांग कर घूमना बंद करो

कलेक्टर ने पीसी एंड पीएनडीटी की टीम को कहा कि आप लोग बिल्ला टांग कर घूमना बंद करो बल्कि गंभीरता से नर्सिंग होम और निजी क्लीनिकों में जांच करो। यह देखों की कहीं भ्रूण का जेंडर परीक्षण तो नहीं हो रहा है। हालांकि सीएमएचओ ने सफाई दी और बताया कि सतना में ऐसा नहीं होता है बल्कि सुनने में आया है कि रीवा में ऐसा होता है। कलेक्टर ने कहा कि इस दिशा में गंभीरता से काम करें।

278 नवजातों की मौत

बताया गया कि एनएनसीयू में कुल 2246 नवजात भर्ती किये गये जिसमें से 278 नवजातों को नहीं बचाया जा सका। हालांकि यहां का सर्वाइवल रेट 81 फीसदी है। यहां आने वाले बच्चों में 42 फीसदी इन बार्न अर्थात जिला अस्पताल से तथा 57 फीसदी आउट बार्न अर्थात बाहर से आते हैं।

जब पकड़ा संस्थागत प्रसव का गड़बड़झाला

स्वास्थ्य अधिकारियों ने कलेक्टर को बताया कि जिले में संस्थागत प्रसव 95 फीसदी है। इसके बाद मातृ मृत्यु दर की समीक्षा में बताया गया कि 60 फीसदी माताओं की मौत प्रसव के दौरान, 17 फीसदी प्रेगनेंसी के दौरान और 76 फीसदी प्रसव के बाद 42 दिन के अंदर होती है। फिर बताया कि 21 फीसदी मौतें घर में, 17 फीसदी परिवहन के दौरान और 62 फीसदी मौते अस्पतालों में हो रही है। यहीं पर कलेक्टर ने पकड़ लिया। कहा कि जब 21 फीसदी मौतें घर में हो रही है तो फिर संस्थागत प्रसव 95 फीसदी कैसे हो रहे हैं? इसका संतोषजनक जवाब नहीं मिला। इस पर कलेक्टर ने कहा कि गांव में अगर एएनएम सही काम करतीं तो यह स्थिति नहीं बनती। आपके यहां एएनएम काम नहीं कर रही है। इस पर सुधार लाएं। सीएमएचओ खुद ग्रामीण क्षेत्रों का भ्रमण कर यह देखें की एएनएम सही काम कर रहीं है या नहीं। ग्रामीण स्वास्थ्य की रीढ वही हैं।