ये भी पढ़ें: ग्रामीणों की जुबानी, UP पुलिस ने भी MP पुलिस के दावों पर उठाए सवाल विश्वविद्यालय के पंडित शंभूनाथ शुक्ल सभागार में आयोजित 16वीं भाषणमाला में
कुलाधिपति ने कहा कि आजादी के बाद हमारी कोई शिक्षा नीति नहीं थी। मैकाले के सिद्धांत में अंग्रेज शासकों ने सेवा के उद्देश्य से युवाओं के लिए शिक्षा पद्धति बनाई। इससे भारत की आत्मा नहीं है। भारत के गौरवशाली इतिहास को इससे हटा दिया गया। परिणाम स्वरुप हमारी शिक्षा पद्धति से नौकरी व गुलामी की मानसकिता व प्रवृत्ति बन गई है।
ये भी पढ़ें: मुठभेड़ में मारा गया 6 लाख का इनामी डकैत बबुली कोल व लवलेश कोल जबकि हमारे यहां प्राचीन में सबसे उत्तम खेती और व्यापार को माध्यम तथा निकृष्ट नौकरी की विचार धारा थी। कुशाभाउ ठाकरे जैसे शिक्षक व चिंतक कि विचारों को देखेंं तो आज नई शिक्षा नीति नौकरी नहीं बल्कि स्वाभिमान एवं राष्ट्रभाव जागृति करने वाली चाहिए, क्योकि इसके बिना कवि, विचारक व चिंतक पैदा नहीं होगें। अब नई शिक्षा नीति में स्वाभिमान जागृति करने वाली होगी।
ये भी पढ़ें: बबुली कोल के अंत से अब डकैत विहीन हुई पाठा की धरती, 70 साल से स्थापित था साम्राज्य इस दौरान केन्द्रीय लोहा एवं इस्पात मंत्री फग्गन सिंह फुलस्ते ने कहा कि शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए समय सीमा में शिक्षकों को नियुक्त किया जाना चाहिए। योग्य शिक्षकों की नियुक्ति होगी तभी शिक्षा में गुणवत्ता आएगी। और यह शिक्षा राष्टभाव को बढ़ाएगी।
ये भी पढ़ें: दस्यु सरगना बनने से पहले बबुली कोल बैंड पार्टी में बजाता था झुनझुना इस दौरान चिंतक एवं विचारक भगवत शरण माथुर एवं सांसद जर्नादन मिश्रा ने नई शिक्षा नीति को लेकर अपने विचार रखे। अध्यक्षता कुलपति पीयूष्ज्ञ रंजन अग्रवाल ने की और विशिष्ट अतिथि के रूप में रीवा विधायक राजेन्द्र शुक्ला उपस्थित रहे।