
Mahalakshmi fast Importance of worship
पन्ना। महालक्ष्मी व्रत पर बुधवार को महिलाओं ने दिनभर व्रत रखकर रात में माता लक्ष्मी की विधि विधान के साथ पूजा-अर्चना कर उनके महात्म की कथा सुनी। इस अवसर पर पूजन के लिए घरों में गुजिया, खुरमा, पपड़ी, शेव सहित विविध प्रकार के पकवान बनाए गए थे।
इसी कारण आज नगर में खोवा की मांग अधिक रही। दुकानदारों से इसका फायदा उठाते हुए आज अन्य दिनों की अपेक्षा खोवा को ज्यादा कीमत पर बेचा। नगर के प्रमुख चौराहों पर पूजन में उपयोग आने वाले हाथी भी बेचे जा रहे थे।
धरम सागर में आज अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक भीड़
व्रत शुरू होने के साथ ही महिलाओं ने ब्रह्मम मुहूर्त में उठकर नदियों और तालाबों में स्नान करने के लिए पहुंची। इसके कारण नगर के धरम सागर में आज अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक भीड़ रही। इसके बाद महिलाएं हाथ में दूबा और पूजा का जल लिए हुए भगवान जुगल किशोर मंदिर पहुंची। इसी कारण यहां भी सुबह अन्य दिनों की अपेक्षा श्रद्धालु महिलाओं की संख्या अधिक थी। दिनभर महिलाओं ने घरों में पकवान बनाए और फिर रात को देवी माहलक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए पूजा अर्चना की।
सदा रोशन रहता है कथा पढऩे-सुनने वाले के घर का चिराग
पंडि़त आनंद मिश्रा ने बताया ज्योतिषशास्त्र के पंचांग खंड अनुसार महालक्ष्मी व्रत आश्नि मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन प्रदोष काल में मनाया जाता है। धर्मशास्त्रों के अनुसार इस दिन हाथी पर सवार देवी गजलक्ष्मी के पूजन का विधान है। शस्त्रानुसार यह पर्व देवी गजलक्ष्मी की कृपा पाने के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन किए गए पूजन, उपाय, अनुष्ठान का संपूर्ण फल प्राप्त होता है। जिस घर की महिलाएं इस कथा को पढ़ती या सुनती हैं उस घर का चिराग सदा रोशन रहता है।
यह है महालक्ष्मी व्रत कथा
महालक्ष्मी व्रत पौराणिक काल से मनाया जा रहा है। शास्त्रानुसार महाभारत काल में जब महालक्ष्मी पर्व आया। उस समय हस्तिनापुर की महारानी गांधारी ने देवी कुन्ती को छोड़कर नगर की सभी स्त्रियों को पूजन का निमंत्रण दिया। गांधारी के 100 कौरव पुत्रों ने बहुत सी मिट्टी लाकर सुंदर हाथी बनाया व उसे महल के मध्य स्थापित किया। जब सभी स्त्रियां पूजन हेतु गांधारी के महल में जाने लगी। इस पर देवी कुन्ती बड़ी उदास हो गई। इस पर अर्जुन ने कुंती से कहा हे माता! आप लक्ष्मी पूजन की तैयारी करें मैं आपके लिए जीवित हाथी लाता हूं।
कुन्ती ने सप्रेम पूजन किया
अर्जुन अपने पिता इंद्र से स्वर्गलोक जाकर ऐरावत हाथी ले आए। कुन्ती ने सप्रेम पूजन किया। जब गांधारी व कौरवों समेत सभी ने सुना कि कुन्ती के यहां स्वयं एरावत आए हैं तो सभी ने कुंती से क्षमा मांगकर गजलक्ष्मी के ऐरावत का पूजन किया। शास्त्रनुसार इस व्रत पर महालक्ष्मी को 16 पकवानों का भोग लगाया जाता है। सोलह बोल की कथा 16 बार कहे जाने का विधान है। कथा के बाद चावल या गेहूं छोड़े जाते हैं।
Published on:
13 Sept 2017 06:24 pm
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