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विंध्य में देसी आम की 50 से अधिक किस्में खतरे में

मिठौहा, लोढ़ामा के स्वाद से वंचित होती नई पीढ़ी, आम के पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और पुराने पेड़ों के सूखने से अस्तित्व संकट

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सतना

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Hitendra Sharma

Dec 19, 2021

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सतना. जैवविविधता से भरे विंध्य प्रदेश में देशी आम के बगीचों की भरमार थी। यहां देशी आम की 144 किसमें पाई जाती हैं। इनमें से सुंदरजा, आम्रपाली जैसी 88 किस्में ऐसी हैं जिन्हें विंध्य के किसी भी बाजार में बेचा जा सकता है। लेकिन, बढ़ती जनसंख्या, खेती के लिए घटती जमीन और आम की खेती को बाजार न मिलने के कारण किसानों का आम के बगीचों से मोह भंग हो रहा है। इसका परिणाम यह है कि दिन प्रति दिन आम के बगीचे खत्म होते जा रहे हैं।

आम के पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और पुराने पेड़ों के सूखने से विंध्य में देसी आम की 50 से अधिक प्रजातियों का अस्तित्व संकट आ गया है। यदि जल्द ही शासनस्तर पर विलुप्त हो रही आम की देशी किस्मों को बचाने कोई ठोस प्रयास नहीं किए गए तो लोढ़ामा, मिठौहा जैसे देशी आम के स्वाद से नई पीढ़ियां वंचित हो जाएंगी।

इसलिए अस्तित्व संकट में: 19वीं सदी तक आम और महुआ ग्रामीण जनता के भोजन का आधार रहे। गांव की पूरी आबादी भोजन के लिए इन पर निर्भर थी। इससे लोगों ने अपने खेतों में बगीचे लगाए और देशी किस्सों को संरक्षितकिया | लेकिन, 21वीं सदी में अनाज के रिकार्ड उत्पादन और बाजारवाद से देशी आम और महुआ पर लोगों की निर्भरता कम हुई। इससे किसानों ने आम के बगीचे उजाड़ कर उन्हें खेतबना लिया।विगतएक दशक में अकेले सतना जिले में आम के 40 फीसदी बगीचे उजड़ चुके हैं। नई पीढ़ी देशी आम के बगीचे लगाने की जगह गमलों में विदेशी आम की किसमें रोप रही है। इससे विंध्य में बहुतायत में होने वाली देशी आम की 50 से अधिक प्रजातियां संकट में आ चुकी हैं।

यह है विशेषता
विध्य प्रदेश में देशी आम की सर्वाधिक 145 प्रजातियां हैं। विंध्य में सुंदरजा एवं आम्रपाली जैसी प्रसिद्ध किसमें हैं, जिनकी देश ही नहीं विदेशी बाजार में भी अपनी अलग पहचान है। देशी आम की आचार वाली किस्मों की मांग देशभर की मंडियों में है। जवकि हकीकत यह है कि देसी आम की सर्वाधिक 145 प्रजातियां विंध्य प्रदेश में, 88 प्रजाति ऐसी जिन्हें किसी भी बाजार में बेचा जा सकता है। हर दस साल में आम के 40 फीसदी बागान खत्म हो गए हैं। एक दशक में 8.50 लाख पेड़ सूखने व काटने से नष्ट हो गए। देशी आम की 80 से अधिक प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं।

पेड़ो को लगी सूखने को बीमारी
बदलते पर्यावरण और उपेक्षा के कारण बगीचों में लगे आम के पेड़ों में सूखने की बीमारी लग गई है। अकेले सतना जिले में प्रति वर्ष 5 हजार से अधिक आम के पेड़ बीमारी लगने से सूख रहे हैं। विंध्य प्रदेश की बात करें तो विगत एक दशक में आम के डेढ़ लाख से अधिक पेड़ सूख चुके हैं। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि आम के पेड़ों को बदलते मौसम के बीच हर साल खाद-पानी की जरूरत होती है। लेकिन किसानों ने बगीचे में लगे आम के पेड़ों को भगवान भरोसे छोड़ दिया है। न पेड़ों के चारों ओर गिराई-गुड़ाई की जाती और न उन्हें खाद जी जाती। इस उपेक्षा के कारण एक ओर जहां आम की पैदावार घट रही है, वहीं वह एक-एक कर सूख रहे हैं।