इसमें कंबोडिया के वाइल्ड लाइफ और टाइगर से जुड़े एक्सपर्ट के साथ ही भारत के वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (डब्ल्यूआईआई), नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) और ग्लोबल टाइगर फोरम (जीटीएफ) के प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं। पन्ना टाइगर रिजर्व से जुड़े अपने अनुभव एक्सपर्ट कमेटी को बताने के लिए पन्ना टाइगर रिजर्व के तत्कालीन फील्ड डायरेक्टर आर. श्रीनिवास मूर्ति को भी मीटिंग में आमंत्रित किया गया है।
आबाद करने का प्रयास तत्कालीन फील्ड डायरेक्टर आर. श्रीनिवास मूर्ति ने बताया कि पन्ना की तरह कंबोडिया भी वर्ष २००७ में बाघविहीन हो चुका है। अब वह अपने यहां बाघों के संसार को दोबार आबाद करने का प्रयास कर रहा है। इसके लिए वह अपने देश में भी पन्ना के बाघ पुनर्स्थापना योजना के मॉडल को अपनाना चाह रहा है।
बाघ विहीन हो चुका है पन्ना
गौरतलब है कि शिकारियों की सक्रियता के चलते पन्ना टाइगर रिजर्व वर्ष २००८ में बाघविहीन घोषित कर दिया गया था। वर्ष २००९ में यहां बाघों के उजड़े संसार को पुन: बसाने के लिए दो चरणों वाली बाघ पुनस्र्थापन योजना शुरू की गई थी। जिले के तहत कान्हा, बांधवगढ़ और पेंच टाइगर रिजर्व से यहां बाघ और बाघिनों को लाया गया। योजना के शुरुआती दिनों में वाइल्ड लाइफ से जुड़े एक्सर्ट भी मानते थे।
विश्व का ध्यान अपनी ओर खींचा यहां बाघों का संसार पुन: आबाद करने में १० से १५ साल लग जाएगा, लेकिन तत्कालीन फील्ड डायरेक्टर आर.श्रीनिवास मूर्ति के बेहतर मैनेजमेंट के चलते यहां महज ८ साल में ही बाघों की संख्या ३५ से ४० के बीच पहुंच गई है। पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों के कुनबे में हुई अप्रत्याशित वृद्धि ने जहां एक ओर पूरे विश्व का ध्यान अपनी ओर खींचा वहीं दूसरी ओर पालतू बाघिनों को भी जंगली बनाकर ब्रिडिंग कराने को लेकर अनोखा कीर्तिमान भी बनाया।
इस संबंध में अभी मुझे जानकारी नहीं है। यदि कंबोडिया अपने देश में बाघों के संसार को दोबारा बसाने के लिए पन्ना के बाघ पुनस्र्थापन मॉडल को अपना रहा है तो यह पन्ना टाइगर रिजर्व और पन्ना के लोगों के लिए गर्व की बात है। इससे पन्ना में पर्यटन कारोबार को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी।
विवेक जैन, फील्ड डायरेक्टर, पन्ना टाइगर रिजर्व