
Patients do not get treatment in district hospital
सतना. कायाकल्प और एनक्यूएएस में बेहतरी की तलाश के बीच जिला अस्पताल का लेबर रूम और मेटरनिटी वार्ड चिकित्सकों और नर्सिंग स्टाफ की मनमानी का शिकार हो गया है। यहां तैनात चिकित्सक और नर्सिंग स्टाफ हाई रिस्क प्रेग्नेंसी को भी गंभीरता से नहीं लेते हैं। शुक्रवार को सांसद की सिफारिश के बाद भी एक मामला ऐसा सामने आया, जिसमें बिना पूरी जांच के जबरन गर्भवती महिला को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।
यह है मामला
बेलहटा निवासी पूजा यादव पति दिनेश (20) जिला अस्पताल में 7 माह की गर्भ की स्थिति में पहुंची। पानी जाने की शिकायत पर जिला अस्पताल पहुंची पूजा अपने साथ सांसद की सिफारिश भी लेकर आयी थी। पीडि़ता को 20 दिसंबर को अस्पताल में भर्ती किया गया। चिकित्सक ने परीक्षण कर अल्ट्रा सोनोग्राफी के लिए लिखा। लेकिन, स्टाफ ने सोनोग्राफी कराना तो दूर बिना जांच के ही 22 को डिस्चार्ज बना दिया। हद तो यह हो गई कि उससे 'स्वेच्छा से जानाÓ भी लिखवा लिया। जबकि प्रोटोकॉल के तहत चिकित्सक के लिखने के साथ ही उसकी प्राथमिकता के आधार पर सोनोग्राफी करवाई जाकर विशेषज्ञ चिकित्सक को दिखाया जाना चाहिए था। हालांकि डीएचओ डॉ. विजय आरख की नजर मामले में पड़ी तो उन्होंने सिविल सर्जन के संज्ञान में लाया। तब जाकर इलाज शुरू हो सका।
चिकित्सकीय लापरवाही से चली गई बच्चे की जान
कोठी अस्पताल से 10 दिसंबर को रेफर की गई प्रसूता गायत्री पति रोहित रैकवार की चिकित्सकीय लापरवाही से गर्भस्थ शिशु की मौत के मामले की जांच शुरू कर दी गई है। सीएस ने शुक्रवार को प्रसूता के पति और स्टाफ से पूछताछ की है। अगले दिन संबंधित चिकित्सकों से भी पूछताछ की जाएगी। हालांकि मामले में प्रथम दृष्ट्या चिकित्सकों की लापरवाही सामने आ रही है। हालात यह रहे कि 10 दिसंबर को जिला अस्पताल में गायत्री की जांच के बाद डॉक्टर चहल ने सीजेरियन ऑपरेशन के लिए लिखा। लेकिन, रात को डॉ. जसपाल बीना ने कुछ अन्य जांच लिखी। 11 को पुन: डॉ. बीना ने जांच की। रात को डॉ. आरके तिवारी ने परीक्षण किया। 12 दिसंबर को ड्यूटी डॉक्टर ने बच्चेदानी का मुंह खुलना बताया। गर्भस्थ शिशु की धड़कन चलना बताया। इसके बाद भी शिशु को बचाने और उचित इलाज का प्रबंध नहीं किया गया। 13 को फिर जांच-जांच खेला गया। डॉ. आरके तिवारी ने जांच की खानापूर्ति की। लेकिन, उचित प्रबंध नहीं किया। 14 को डॉ. पूजा कुशवाहा ने परीक्षण किया। वह भी खानापूर्ति ही रहा। 15 को फिर डॉ. बीना ने देखा, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया। कुल मिलाकर 5 दिन तक गायत्री जिला अस्पताल के बदहाल सिस्टम का शिकार होती रही। हद तो यह हो गई कि 16 को गायत्री को गायब बता दिया गया। जबकि उसका कहना है कि वह वार्ड में ही थी। 17 को पुन: उसे नए सिरे से भर्ती दिखाया गया। 18 को सुबह ड्यूटी डॉक्टर ने स्त्री रोग विशेषज्ञ को प्रबंधन के लिए रेफर किया। लेकिन इतने गंभीर केस को 4 बजे शाम तक नहीं देखा गया। डॉ. रेखा त्रिपाठी से शाम को डॉक्टर पूजा ने चर्र्चा भी की। 19 को फिर जांच का खेल शुरू हुआ। डॉक्टर माया पाण्डेय ने जांच की। डॉ बीना ने उपचार शुरू किया। दोपहर ड्यूटी डॉक्टर ने उपचार यथावत किया। शाम ६ बजे मृत शिशु को निकाला गया।
ये आपराधिक लापरवाही है
जिला अस्पताल में भर्ती हाईरिस्क प्रसूता के इलाज में डॉक्टर्स ने जांच-जांच खेला। जिस तरीके से चिकित्सकों ने लापरवाही बरती उसे सामान्य नजरिये से देखें तो यह आपराधिक है। जिले के सबसे बड़े रेफरल संस्थान में पांच दिन तक एक प्रसूता के साथ की गई ऐसी अनदेखी लोगों को उद्वेलित करती है। महज जांच के नाम पर पांच दिन तक खानापूर्ति होती रही। तब तक उसे ऑपरेट नहीं किया गया, जब तक कि उसका जिंदा गर्भस्थ शिशु मृत नहीं हो गया। अब गेंद प्रबंधन के पाले में है कि वे दोषियों को कड़ा दंड देकर जनमानस का विश्वास अस्पताल के प्रति बनाए अन्यथा इस तरह की अनदेखी से अस्पताल की साख तो खत्म होगी ही साथ ही लोगों के आक्रोश का सामना भी करना पड़ेगा।
Published on:
23 Dec 2017 12:03 pm
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