
Shraddh aur Pitru Paksha or Pitra Paksha and Pitru Paksha Me Kya Daan Dena Chahiye
सतना। वैसे तो हिन्दू समाज में दान-धर्म का बहुत ही महत्व है। खासतौर से जब पितरों की बात आती है तो हर इंसान के अंदर भक्ति-भावना जागृत हो जाती है। ऐसे में बड़े-बुर्जूग पितरों की याद में अपनी श्रद्धा के अनुसार दान करते है। इससे जहां मृत आत्माओं को शांति मिलती है। वहीं उनका अगला जन्म सफल हो जाता है।
पंडित हरिनारायण शास्त्री की मानें तो तर्पण और श्राद्ध में दान बहुत ही अहम माना गया है। पुराणों में बताया गया है कि पितरों को प्रसन्न करने के लिए श्राद्ध, बरसी, मासिक अमावस्या पर जो लोग दान करते है। इससे हमे सदैव आशीर्वाद मिलता है। यहां ब्राह्मणों को पांच प्रकार से दान कर सकते है। जैसे...
1. तिल दान
श्राद्ध में तिल का दान अति महत्वपूर्ण है। वैसे दान के लिए काला तिल सबसे अच्छा माना गया है। क्योंकि काला तिल भगवान विष्णु को सबसे अधिक प्रिय थे। इसके दान से संपूर्ण फल पितरों को मिलता है। पितरों की श्राद्ध में काला तिल दान संकटों में परिवार की रक्षा करता है।
2. घी-दूध का दान
शास्त्रों में घी-दूध दान का अलग ही स्थान दिया गया है। श्राद्ध के समय गाय का घी अपनी श्रद्धा के अनुसार ब्राह्मण को दान करने से घर में खुशहाली आती है। ये जरूर ध्यान रखें कि गाय का दूध-घी पुराना हो। मतलब गाय बछड़ें को जन्म दिन हुए १० दिन बीत चुका हो। क्योंकि इस दौरान गाय का दूध अपवित्र माना गया है।
3. स्वर्ण दान
हिन्दू धर्म में स्वर्ण दान का अलग ही महत्व बताया गया है। पुराणों में कहा गया है कि स्वर्ण दान से परिवार की कलह दूर होती है। घर के सदस्यों के बीच आपसी प्रेम और सौहाध्र्य का वातावरण उत्पन्न होता है। अगर स्वर्ण दान संभव न हो तो अपने सामथ्र्य के अनुसार धन, धान्य, रुपए, पैसे का दान करें।
4. अन्नदान
जानकारों की मानें तो पुराणों में अन्नदान सबसे बड़ा दान है। अन्नदान में अनाज का दान देना माना गया है। यह दान श्रद्धा-भक्ति के संकल्प सहित करने पर मानव की सभी इच्छाएं पूरी होती है। घर में भिखारी को अन्न खिलाएं और अन्न दान भी करना चाहिए। कहते है अन्न में भगवान से लेकर घर आए हुए उस नागरिक का रहता है। जो भोजन की आस में आया है।
5. वस्त्र दान
पितरों को भी मानव की भांति सर्दी, गर्मी का एहसास होता है। जिसके बचाव के लिए पितर लोग अपनी वंशजों से वस्त्र की इच्छा रखते हैं। जो मनुष्य अपने पूर्वजों के बनाए हुए वस्त्र दान करते है उन पर पितरों का भक्ति भाव बना रहता है। दान में धोती एवं दुपट्टे का दान करना चाहिए। वस्त्र दान से यमदूतों का भय ही समाप्त हो जाता है।
पितृ पक्ष भाद्रपद की पूर्णिमा से लेकर आश्विन कृष्णपक्ष की अमावस्या तक मनाया जाता है। इस दौरान आने वाले १६ दिनों को पितृपक्ष कहते हैं। इन १६ दिनों में पृथ्वी पर रहने वाले मनुष्य अपने पितरों को रोजाना पिंड दान, तर्पण, ब्राह्मण भोज, गरीबों को दान आदि जैसे कर्म करते हैं। इससे पितरों को जल्द मोक्ष मिलती है।
पंडित हरिनारायण शास्त्री, ज्यातिषाचार्य सतना
Published on:
01 Sept 2017 04:48 pm
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