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रेलवे की राह में झुग्गियों का ब्रेकर

अपनी ही जमीन से अतिक्रमण हटाने में नाकाम रेलवे, पश्चिमी मार्ग में शहर से नहीं जुड़ सकी सड़क, कागजी खानापूर्ति कर रहे रेलवे के अफसर

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Slum breaker in the way of railway

Slum breaker in the way of railway

सतना. रेलवे की राह में झुग्गियों का ब्रेकर लगा हुआ है और रेल प्रशासन चुप्पी साधे बैठा है। शहर से जोडऩे के लिए लाखों रुपए खर्च कर पश्चिम की ओर जो सड़क महीनों पहले बनी थी वह शहर की सड़क से आज तक नहीं जुड़ सकी। इसी सड़क के ठीक सामने शहर की पटरी पर झुग्गियां तनी हैं। एक इस अहम मुद्दे के अलावा पश्चिम की ओर बीसीएन डिपो और ओवरब्रिज के बीच सैकड़ों झुग्गियां रेल अधिकारियों की अनदेखी के चलते बन गई हैं। जब इस अतिक्रमण की बात पर जोर दिया जाता है तो रेल अधिकारी झुग्गी हटाने के लिए नोटिस जारी करने की बात करने लगते हैं। लेकिन हकीकत में कोई इस ओर ठोस पहल करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा।
आखिर कब खुलेगा रास्ता
प्लेटफार्म दो और तीन से पश्चिम की ओर बाहर आने वाले यात्रियों की सहूलियत के लिहाज से रेलवे ने पश्चिम की ओर नई सड़क बनाई है। इस सड़क का काम शहर की सीमा पर रोक दिया गया। पहले तो रेल अधिकारी कहते रहे कि शहर प्रशासन से बात कर सड़क के सामने का अतिक्रमण हटाएंगे। लेकिन कोरोना कफ्र्यू के चलते इस ओर ध्यान नहीं दिया गया। इस रास्ते के खुलने से जहां रेलवे की ओर आने जाने वालों को सहूलियत होगी वहीं रेलवे को राजस्व का फायदा भी अधिक होगा।
चल रहा कागजी खेल
स्थानीय रेल अधिकारियों की अनदेखी का नतीजा है कि पश्चिम की ओर बीसीएम डिपो से शास्त्री ब्रिज तक अतिक्रमण बढ़ता गया है। यहां बनी झुग्गियों को हटाने के लिए रेल सुरक्षा बल की मदद से रेल प्रबंधन ने नोटिस जारी कराया था। लेकिन कागजी खानापूर्ति तक सब कुछ सिमटा रहा। नोटिस मिलने के बाद भी यहां से झोपड़े नहीं हट सके और दिन ब दिन रेलवे की आराजी पर अतिक्रमण बढ़ता जा रहा है।
पुलिस भी कुछ नहीं कर सकती
रेलवे की वेशकीमती जमीन पर झोपड़े तनते जा रहे हैं और स्थानीय अधिकारी खुली आंखों से सब देखकर भी चुप बैठे हैं। यहां रहने वालों का सत्यापन तक रेलवे ने नहीं कराया कि यह कौन लोग हैं और किसकी अनुमति से रेलवे की जमीन पर कब्जा कर रहने लगे। रेल सुरक्षा बल, राजकीय रेल पुलिस भी यहां चाह कर सख्ती नहीं कर सकती है। जानकार बताते हैं कि रेल प्रशासन, शहर के पुलिस प्रशासन से बात कर संयुक्त कार्रवाही के जरिए ही रेलवे की जमीन से अतिक्रमण हटा सकता है और मार्ग में आने वाली बाधा भी इसी तरह से हल हो सकेगी।
बढ़ती जा रही तादात
रेलवे की जमीन पर अवैध कब्जा हुए एक दशक से ज्यादा वक्त बीत चुका है। अब हालात एेसे हैं कि हर महीने यहां आबादी बढ़ जाती है। एक नया झोपड़ा तन जाता है और किसी को कोई परहेज नहीं होता। खबर है कि यहां कुछ लोग एेसे हैं जो दबंगई के दम पर बाहरी लोगों को बसाने का काम कर रहे हैं और इसके एवज में मोटी रकम भी वसूलते हैं। यहीं रहने वाले कुछ लोगों ने तो किराए पर भी झोपड़े दे रखे हैं।