।शहर के गुमनाम समाजसेवियों ने मिलकर नजीराबाद मुक्तिधाम को नया स्वरूप दिया जा रहा है। मुक्तिधाम का तीन माह के अंदर नयारुप दिया गया है। मुक्तिधाम आने वाले दिनों में राशिा वृक्ष वाटिका से महकेगा। अव्यवस्थित मुक्तिधाम को व्यवस्थित किया जा रहा है। मुक्तिधाम में पहुंचने वाले लोगों को जो - जो आवश्यक्ता पढ़ती है वे सभी सुविधाएं देने की तैयारी चल रही हैं। शहर के समाजसेवी संजय शाह एवं निगम से सेवानिवृत्त बागवान शिव कुमार व्दिवेदी अपनी सेवाएं प्रतिदिन तीन से चार घंटे दे रहे हैं। संजय ने जानकारी देते हुए बताया कि शहर के कई लोग मुक्तिधाम को सुन्दर बनाने में अपना भरपूर योगदान दे रहे हैं।
फलदार वृक्ष लगेंगे
मुक्तिधाम में फलदार वृक्ष भी लगाए जाएंगे। विशेष मिट्टी डाली जा चुकी है। फलदार वृक्षों में नीबू, अनार, अमरूद, गुलेशी, गुढ़हल, मीठी नीम, कंजी एवं आवंला समेत कई फलदार वृक्ष हैं। वृक्षों को जिन्दा रखने के लिए शिव कुमार व्दिवेदी नित्य पानी की व्यवस्था भी की गयी है।
अज्ञात व लावारिस मिट्टी का अंतिम संस्कार अब नहीं रुकेगा
पहले मुक्तिधाम में अज्ञात व लावारिस लाशों के अंतिम संस्कार के लिए काफी ी दिक्कत आती थी। इस समस्या को देखते हुए अब लावारिस लास का अंतिम संस्कार नि:शुल्क किया जाएगा। ज्ञात हो कि एक अंतिम संस्कार में तीन से चार क्विंटल लकड़ी लगती है। जिसका मूल्य 750 रुपए लगता है। अब संस्था व्दारा मुक्तिधाम में मात्र पांच सौ रुपए में सुविधा दी जाएगा। ज्ञात हो कि सन 1983 में 120 रुपए क्विंटल लकड़ी मिलती थी।
अब अज्ञात के राख फूल त्रिवेणी में विसजिज़्त होंगे
मुक्ति धाम में राख - फूल रखने के लिए अलमारी की व्यवस्था की जा चुकी है। संस्था व्दारा अब अज्ञात व्यक्ति के राख-फूल को गंगा जी प्रयाग में त्रिवेणी में विसजज़्न करने की भी व्यवस्था की जा रही है। मिट्टी को नहलाने के लिए विशेष व्यवस्था की गई है। पानी की चौबिस घंटे व्यवस्था के लिए टंंकी की व्यवस्था की गई है। मुक्ति धाम में अंतिम संस्कार के लिए दो स्थल को व्यवस्थित किया जा चुका है। मुक्ति धाम में सुझाव पुस्तिका रखी गयी है जिसमे सभी से सुझाव मांगे गये हैं।
श्यामगिरि वाबा एवं कुत्ते की एक साथ समाधी
मुक्तिधाम के प्रथम अघौड़ बाबा श्यामगिरि थे। उनके साथ एक कुत्ता भी रहता था। जब बाबा का निधन हुआ तो उनके साथ कुत्ते ने भी अपने प्राण त्याग दिये थे। दोनों की समाधी मुक्तिधाम के अंदर है। उसी समय का एक कुंआ है जिसे रामचन्द्र अग्रवाल ने बनवाया था।