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80 के दशक में चरम पर थी धारावाहिकों की लोकप्रियता, लोग घर को साफ-सुथरा कर करते थे रामायण का इंतजार

टेबिल से हाथों तक पहुंच गई टीवी: 1980 के दशक में कुछ और ही था टेलीविजन के प्रति उत्साह

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The popularity of serials was at its peak in 1986 ramayan full episode

The popularity of serials was at its peak in 1986 ramayan full episode

सतना/ दूरदर्शन को देशभर के शहरों में पहुंचाने की शुरुआत 80 के दशक में हुई। इसकी वजह थी 1982 में दिल्ली में आयोजित किए जाने वाले एशियाई खेल। एशियाई खेलों के दिल्ली में होने का एक लाभ यह भी मिला कि श्वेत और श्याम दिखने वाला दूरदर्शन रंगीन हो गया था। फिर दूरदर्शन पर शुरू हुआ पारिवारिक कार्यक्रम। 1984 में देश के गांव-गांव में दूरदर्शन पहुंचाने के लिए प्रयास शुरू कर दिए गए। हमारे मध्यप्रदेश और शहर में टेलीविजन का दौर 1985-86 के आसपास शुरू हुआ। तब एकात लोगों के यहां या गांव में एक या दो लोगों के यहां टीवी होती थी।

उस दौर में टेलीविजन का ऐसा माहौल था कि लोग प्रमुख नाटक को देखने के लिए अपने दूसरे आवश्यक कार्यों को छोड़ देते थे। और एक ही जगह पर एकत्रित होकर टेलीविजन के धारावाहिक, समाचार और मूवी देखते थे। खैर टेलीविजन की लोकप्रियता एेसी बढ़ी कि अब यह घरों तक सीमित नहीं रह गई। अब यह दीवारों से निकल कर लोगों के हाथ तक पहुंच गई। मोबाइल के चलते टेलीविजन देखना इतना आसान हो गया कि अब लोग जैसे ही फ्री होते हैं मोबाइल पर टीवी देखना शुरू कर देते हैं।

धारावाहिकों ने घर-घर में दिलाई पहचान
शहर के 75 वर्षीय विनोद जायसवाल कहते हैं कि 1984 के दौर में टीवी की लोकप्रियता बेहद तेजी से बढ़ी। टेलीविजन ने भारत और पाकिस्तान के विभाजन की कहानी पर बना बुनियाद जिसने विभाजन की त्रासदी को उस दौर की पीढ़ी से परिचित कराया। इस धारावाहिक के सभी किरदार आलोक नाथ मास्टर, अनीता कंवर लाजो जी, विनोद नागपाल, दिव्या सेठ घर-घर में लोकप्रिय हो चुके थे। फिर तो एक के बाद एक बेहतरीन और शानदार धारवाहिकों ने दूरदर्शन को घर घर में पहचान दे दी।

अब मोबाइल पर टीवी की धाक
आज के वर्तमान समय में लोग इतने व्यस्त हो गए हैं कि वह टीवी के पास जाकर टीवी नहीं देख पाते, लेकिन इससे यह नहीं कहा जा सकता टेलीविजन देखने का उत्साह कम हुआ है। आज भी युवा वर्ग, प्रोफेशनल, युवतियां मोबाइल में टीवी देखती हैं। हर व्यक्ति अपनी इच्छानुसार टीवी देखता है। हा पहले जैसे एक जगह पर बैठ कर टेलीविजन तो नहीं देखा जाता। पर कही भी फ्री होकर लोग अपना मनपसंद धारावाहिक, स्पोट्र्स एक्टिविटी, न्यूज मोबाइल में ही देख लेते हैं। इतना ही नहीं उन्होंने मोबाइल को ही टीवी बना रखा है।

ये रहे काफी लोकप्रिय
दूरदर्शन पर 1980 के दशक में प्रसारित होने वाले मालगुडी डेज, ये जो है जिंदगी, रजनी, ही मैन, वाह: जनाब, तमस, बुधवार और शुक्रवार को आठ बजे दिखाया जाने वाला फिल्मी गानों पर आधारित चित्रहार, भारत एक खोज, व्योमकेश बक्शी, विक्रम बैताल, टनि प्वॉइंट, अलिफ लैला, शाहरुख खान की फौजी, रामायण, महाभारत, देख भाई देख ने देश भर में अपना एक खास दर्शक वर्ग ही नहीं तैयार कर लिया था, बल्कि गैर हिन्दी भाषी राज्यों में भी इन धारवाहिकों को जबरदस्त लोकप्रियता मिली।

रामायण-महाभारत होता था खास
65 वर्षीय शिक्षक अनिल शुक्ला कहते हैं कि उस दौर में रामायण और महाभारत जैसे धार्मिक धारावाहिकों ने तो सफ लता के तमाम कीर्तिमान ध्वस्त कर दिए थे। 1986 में शुरु हुए रामायण और इसके बाद शुरु हुए महाभारत के प्रसारण के दौरान रविवार को गली, मोहल्ले, सड़कों पर सन्नाटा पसर जाता था और लोग अपने महत्वपूर्ण कार्यक्रमों से लेकर अपनी यात्रा तक इस समय पर नहीं करते थे। रामायण की लोकप्रियता का आलम तो ये था कि शहर ही नहीं बल्कि आस पास के लोग अपने घरों को साफ सुथरा करके रामायण का इंतजार करते थे, घरों में चटाई बिछा कर बैठने की व्यवस्था करते थे।

टेलीविजन का इतिहास
संयुक्त राष्ट्र महासभा नें 17 दिसंबर 1996 को 21 नवम्बर की तिथि को विश्व टेलीविजन दिवस के रूप घोषित किया था। संयुक्त राष्ट्र नें वर्ष 1996 में 21 और 22 नवम्बर को विश्व के प्रथम विश्व टेलीविजन फोरम का आयोजन किया था। इस दिन पूरे विश्व के मीडिया हस्तियों नें संयुक्त राष्ट्र के संरक्षण में मुलाकात की। इस मुलाकात के दौरान टेलीविजन के विश्व पर पडऩे वाले प्रभाव के सन्दर्भ में काफी चर्चा की गयी थी। साथ ही उन्होंने इस तथ्य पर भी चर्चा की कि विश्व को परिवर्तित करने में इसका क्या योगदान है। उन्होनें आपसी सहयोग से इसके महत्व के बारे में चर्चा की। यही कारण था कि संयुक्त राष्ट्र महासभा नें 21 नवंबर की तिथि को विश्व टेलीविजन दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की।

मुझे टेलीविजन देखना बेहद पसंद है पर हर वक्त टीवी टाइम शेड्यूल के अनुसार नहीं देख सकती। इसलिए मोबाइल में ही टीवी देखना पसंद करती हूं।
प्रियंका द्विवेदी, रचना बिहार कॉलोनी

कुछ भी हो टेलीविजन मैं बड़े शौक से देखती हूं। इसके लिए समय भी निकालती हूं। मेरे लिए टेलीविलन में आने वाले सीरियल मनोरजंन का कार्य
करते हैं।
संस्कृति पांडेय, कोठी रोड

टेलीविजन हम महिलाओं के लिए मनोरंजन का साधन है। दिन भर के काम से फुरसत हो कर एक दो घंटे टीवी देखने से माइंड फ्रेश हो जाता है।
डॉ. स्नेहलता सिंह, आदर्श नगर

टेलीविजन के उस दौर को याद करता हूं तो काफी अच्छा महसूस होता है। टीवी के सामने बैठे रहना और एंटीने पर नजर रखना। क्या मजा आता था। आस पास के सभी लोग एकत्रित होकर धारावाहिको को देखते थे।
डॉ. एके पांडेय, प्रोफेसर

1986 की बात है। उस समय टेली विजन में रामायण और महाभारत आता था। इनकी लोकप्रियता थी कि लोग देखा- देखी टीवी खरीद लाते थे। टीवी ने मेल मिलाप बढ़ा दिया था।
व्यंकटेश तिवारी, रामपुर बाघेलान