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महेश गुप्ता। आज जहां गंगापुरसिटी शिक्षा का हब बनता जा रहा है और बड़ी-बड़ी फैकल्टी बच्चों को होशियार बना रही हैं, वहीं रियासत काल में निजी गुरुकुल तथा चटशालाओं में आखर ज्ञान दिया जाता था। अब फटाफट गणित के सवाल करने के लिए जहां एबेकस जैसी पद्धति अपनाई जा रही है, वहीं पूर्व समय में बारहखड़ी याद करने के लिए तरीका गेय अपनाया जाता था।
मजे की बात तो यह है कि आजादी से पूर्व रियासत काल में वर्ष 1899 तक यहां कोई भी सरकारी विद्यालय नहीं था। घास मंडी स्थित बिहारीजी मंदिर में एक गुरुकुल चला करता था। जिसमें पं. नारायणलाल, भौरीलाल शास्त्री, पं. बल्देव आचार्य तथा पं. काड़ूराम संस्कृत, व्याकरण व ज्योतिष का अध्ययन कराते थे।
इसी प्रकार नेहरू पार्क के पास चतुर्भुजजी मन्दिर में पं. लक्ष्मीनारायण शर्मा शिष्यों को कर्मकाण्ड, ज्योतिष व भागवत की शिक्षा दिया करते थे। उस जमाने में हनुमान चटशाला मुनीम पाड़ा, नृसिंह मंदिर में मोतीलाल मिश्र की चटशाला, बजरंगा पंडित की चटशाला पटवा बाजार में चला करती थी।
राष्ट्रीय कवि व इतिहासकार डॉ. गोपीनाथ चर्चित की पुस्तक ’हमारा गंगापुर’ के अनुसार उस समय के लोग मात्र काम चलाऊ अक्षर व अंक ज्ञान प्राप्त करने तक ही सीमित रहते थे। बच्चे स्लेट-बरता व लकड़ी की तख्ती पर खड़ी की कलम से लिखा करते थे।
पं. नानगराम खेड़ापती भवन के पास चबूतरे पर बच्चों को हिन्दी, गणित के अलावा ब्याज व बही-खाता भी पढ़ाया करते थे। जिसे महाजनी पढाई कहा जाता था। बालाजी चौक के पास व्यासों के चबूतरे पर प्यारे लाल मास्टर व इनके भाई रामेश्वर लाल भी पढ़ाया करते थे तथा तेली मोहल्ले में सईदा तेली भी घर पर बच्चों को पढ़ाया करते थे।
उक्त पुस्तक के अनुसार वर्ष 1877-78 तक यहां 12 चटशालाएं थीं। जिनमें 270 विद्यार्थी पढ़ते थे। यह चटशालाएं वर्ष 1970 तक चली। चटशालाओं में उस समय बारह खड़ी याद कराने के लिए एक गेय तरीका अपनाया गया। जिसमें छात्र कक्को के केवरियो, खख्खो बुखारी, गग्गो री गाय, घघ्घो घटूणो, नन्नामण को दूणों गाकर वर्णमाला को रटकर याद कर लिया करते थे।
इसी प्रकार उस समय के पहाड़े भी आज के केलक्यूलेटर की तरह तुरंत परिणाम देते थे। इनमें पोण्या, सवैया, डोड्या, धम्मा, सोंटा, ढोंच्या आदि थे। जिन्हें बोलकर तुरंत बता दिया जाता था कि तीन डोड के साढ़े चार, चार डोड के छ:, चार ढाम के दस तथा छ: ढाम के पन्द्रह होते हैं।
चर्चित के अनुसार सन् 1899 में जयपुर स्टेट ने यहां पहला सरकारी इंग्लिश मिडिल स्कूल खोला, जो कैलाश टाकिज के पास आज भी है। गंगापुर के आरंभिक सरकारी अध्यापकों में श्रीनिवास शर्मा, किशन लाल पटेल, गैंदीलाल शर्मा, धूलीलाल शर्मा, नाथूलाल शर्मा, कन्हैयालाल शर्मा, गिन्नी लाल शर्मा व गिरधारी लाल शर्मा थे। जिनमें से नाथूलाल शर्मा, धूली लाल शर्मा व गैंदीलाल शर्मा इसी विद्यालय में आरंभिक अध्यापक तथा रहमतअली प्रधानाध्यापक नियुक्त हुए।
सन् 1930 में यहां स्टेट गवर्मेंट की ओर से सरकारी कन्या प्राथमिक विद्यालय भी आरंभ किया गया, जो खारी बाजार में मुनीमों की हवेली में चलाया गया। जिसमें लगभग 50 कन्याएं अध्ययनरत थीं। श्रीमती द्रोपदी देवी यहां अध्यापिका बनीं। यहां पर रेलवे स्कूल की स्थापना सन् 1920 में हुई। जिसमें यहां के गिन्नीलाल शर्मा अंग्रेजी के अध्यापक नियुक्त हुए। सन् 1924 में पं. दीनदयाल उपाध्याय ने इसी विद्यालय में अध्ययन किया।
रियासत काल में कन्याओं को पढ़ाने का चलन तो नहीं था, फिर भी कुछ कन्याएं पढ़ ही जाती थीं। जिनमें श्रीमती द्रोपदी देवी गोयल व श्रीमती शांति देवी शर्मा कक्षा चार या पांच उत्तीर्ण कर यहां की पहली सरकारी अध्यापिका बनीं। यहां पहला निजी विद्यालय सन् 1941 में पं. मिश्रीलाल शर्मा ने सूरसागर में श्रीकृष्ण पाठशाला नाम से आरंभ किया। जिसे राज के खजाने से साठ प्रतिशत अनुदान भी मिला करता था।
Published on:
05 Sept 2024 04:25 pm
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