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संघर्ष की कहानी: पति की मृत्यु के बाद भी नहीं खोया हौसला, बच्चों का लिखा भविष्य

मां को धरती पर ईश्वर की प्रतिनिधि माना जाता है। कहा जाता है बच्चों की देखरेख के लिए जमीन पर हर बार भगवान स्वयं नहीं आ सकते, इसलिए उसने मां को बनाया है।

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Story Of Struggle Woman Handled Herself After Husband Death In Sawai Madhopur Rajasthan

पत्रिका न्यूज नेटवर्क/सवाईमाधोपुर। मां को धरती पर ईश्वर की प्रतिनिधि माना जाता है। कहा जाता है बच्चों की देखरेख के लिए जमीन पर हर बार भगवान स्वयं नहीं आ सकते, इसलिए उसने मां को बनाया है। आज हम जिले की ऐसी ही मां, जिसने विपरीत हालातों के सामने घुटने नहीं टेके, बल्कि हालातों से संघर्ष कर अपनी और अपने बच्चों की तकदीर लिखी। हम बात कर रहे हैं बालमंदिर कॉलोनी निवासी राजरानी राजपूत की। सालों पहले पति के देहांत के बाद भी उन्होंने हौसला नहीं खोया और कड़ी मेहनत कर अपने बच्चों का भविष्य संवारा।

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टैंकरों के नीचे सो जाते थे बच्चे: जब वह नौकरी पर चली जाती थीं, तो तीनों बच्चे घर में अकेले होते थे। कभी-कभार पड़ौसी बच्चों को खाना आदि खिलाते थे तो कभी बाजार में नाश्ता आदि करके समय व्यतीत करते थे। उन्होंने बताया कि जहां वो किराए पर रहते थे, उसके पास टैंकर खड़े रहते थे। कई बार जब शाम को वह बैंक से घर लौटती थी तो बच्चे घर पर नहीं मिलते थे और ना ही किसी पड़ौसी के घर पर। बच्चे धूप से बचने के लिए टैंकर के नीचे सो जाते थे। इसके बाद 1998 में जमा पूंजी व बैंक से लोन लेकर बाल मंदिर कॉलोनी में घर बनवाया। इसके बाद धीरे-धीरे बच्चे बड़े हुए और स्थिति सामान्य हुई। आज उनकी दोनों बेटियों प्राची कंवर व भावना कंवर की शादी हो चुकी है और बेटा मनमोहन हाड़ा एक आईटीआई कॉलेज में प्राचार्य के पद पर कार्यरत है।

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1992 में हो गई पति की मृत्यु: राजरानी का ससुराल महावीरजी में था, लेकिन 1992 में बीमारी के चलते पति का देहांत हो गया। पति की मौत के समय उनके बच्चे छोटे थे। बेटा पांच साल व बेटी तीन व दो साल की थी। इसके बाद वह अपने पीहर सवाईमाधोपुर आ गई। कठोर मेहनत व भागदौड़ के बाद उनके पति के स्थान पर उनको बैंक में नौकरी मिल गई। इसके बाद वह बजरिया में मकान किराए पर लेकर रहने लगी।