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पृथ्वी पर ‘महाप्रलय’ आने में बस 2 करोड़ वर्ष बाकी

अध्ययन सांख्यिकीय आंकड़ों के आधार पर इस बात की पुष्टि करता है कि यह एक सामान्य चक्र है और ये भूगर्भीय घटनाएं एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं।

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जयपुर

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Mohmad Imran

Jul 20, 2021

पृथ्वी पर 'महाप्रलय' आने में  बस 2 करोड़ वर्ष बाकी

पृथ्वी पर 'महाप्रलय' आने में बस 2 करोड़ वर्ष बाकी

बीते 26 करोड़ (260 मिलियन) वर्षों में, पृथ्वी पर डायनासोर आए और गए, पैंजिया उन महाद्वीपों और द्वीपों में विभाजित हो गया जिन्हें हम आज देखते हैं और मनुष्यों ने इस दुनिया को अपने अनुसार ढाल लिया। लेकिन इन सबके बीच, ऐसा लगता है कि पृथ्वी उतनी तेजी से नहीं बदल रही है जितना हम सोचते हैं। हाल ही प्राचीन भूवैज्ञानिक घटनाओं के एक नए अध्ययन से पता चला है कि पृथ्वी में हर 2.7 करोड़ (27.5 मिलियन) वर्ष में 'महाप्रलय' लाने वाली भूगर्भीय गतिविधि होती है। लेकिन यह बेहद धीमी और स्थिर होती है। वैज्ञानिकों ने इसे 'पृथ्वी की धड़कन' (Pulse of Earth) माना है। इससे ज्वालामुखियों के सक्रिय होने, बड़े पैमाने पर प्रजातियों की विलुप्ति, प्लेटों का पुनर्गठन और समुद्र के स्तर में वृद्धि जैसी विनाशकारी घटनाओं का जन्म होता है। लेकिन सौभाग्य से 'महाप्रलय' लाने वाली ऐसी भूगर्भीय गतिविधियों और हमारे बीच अभी 2 करोड़ वर्ष (20 मिलियन) का समय है।

89 भूगर्भीय घटनाओं का अध्ययन
न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय के भूविज्ञानी और अध्ययन के प्रमुख लेखक माइकल रैम्पिनो का कहना है कि, बहुत से भूवैज्ञानिक मानते हैं कि ऐसी भूगर्भीय घटनाएं समय के साथ रेंडमली घटित होती हैं। लेकिन हमारा अध्ययन सांख्यिकीय आंकड़ों के आधार पर इस बात की पुष्टि करता है कि यह एक सामान्य चक्र है और ये भूगर्भीय घटनाएं एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं। शोधदल ने पिछले 26 करोड़ वर्ष में घटी ऐसी 89 बड़ी भूगर्भीय घटनाओं पर शोध कर निष्कर्ष निकाला है। अध्ययन के अनुसार, ऐसी आठ से अधिक विश्व-परिवर्तनकारी घटनाएं भूगर्भीय रूप से बेहद कम अंतराल पर एक साथ मिलकर पृथ्वी की इस विनाशकारी 'पल्स' का निर्माण करती हैं।

2.7 करोड़ लंबी है 'पल्स'
माइकल रैम्पिनो का कहना है कि वैश्विक भूगर्भीय घटनाएं आमतौर पर सहसंबद्ध होती हैं और 2.7 करोड़ वर्ष के चक्र में साथ आती हैं। दरअसल, भूवैज्ञानिक लंबे समय से इन घटनाओं में संभावित चक्र को पहचानने की कोशिश कर रहे हैं।हालांकि, यह कोई पहला अध्ययन नहीं है। इससे पहले 1920 और 30 के दशक में भी उस दौर के वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया था कि भूवैज्ञानिक रिकॉर्ड में 3 करोड़ वर्ष का चक्र होता है, जबकि 1980 और 90 के दशक में शोधकर्ताओं ने उस समय की सर्वोत्तम-भूवैज्ञानिक तकनीकों का उपयोग कर इन घटनाओं का वर्गीकरण करने का प्रयास किया था।

उन्होंने इस चक्र की अवधि 2.62 करोड़ से 3.06 करोड़ वर्ष के बीच बताई थी। लेकिन नए शोध में 2.7 करोड़ वर्ष को ज्यादा सटीक अनुमान माना जा रहा है। ऐसे ही 2018 में ऐडिलेड विश्वविद्यालय के टेक्टोनिक भूविज्ञानी मुलर और डटकिविक्ज ने भी इस पर शोध किया था। दोनों शोधकर्ताओं ने अपने शोध में पृथ्वी के कार्बन चक्र और प्लेट टेक्टोनिक्स की जांच करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि यह चक्र लगभग 2.6 करोड़ वर्ष लंबा है।

अभी कारण स्पष्ट नहीं है
जियो साइंस फ्रटियर्स में प्रकाशित इसशोध में कहा गया है कि पृथ्वी के इस बेहद धीमे चक्र के पीछे क्या भौगोलिक कारण है,इसका अभी पता नही चल सका है। हालांकि, रैम्पिनो और उनकी टीम के अन्य शोधों के अनुसार, धूमकेतु के हमले इसका कारण हो सकते हैं। शोध में उन्होंने यह भी कहा कि ऐसा संभवत: प्लेट टेक्टोनिक्स और पृथ्वी के क्रोड़ की गतिशीलता से संबंधित प्रक्रियाओं का परिणाम भी हो सकती हैं। यह भी संभव है कि इस पर सौरमंडल और आकाशगंगा में अपनी धुरी पर घूमती पृथ्वी की गति का भी प्रभाव पड़ता हो।