हरगोविंद खुराना का जन्म अविभाजित भारत के रायपुर जिला मुल्तान, पंजाब नामक स्थान पर 9 जनवरी 1922 में हुआ था। उनके पिता एक पटवारी थे। अपने माता-पिता के चार पुत्रों में हरगोविंद सबसे छोटे थे। गरीबी के बावजूद हरगोविंद के पिता ने अपने बच्चो की पढ़ाई पर ध्यान दिया जिसके कारण खुराना ने अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगा दिया। वे जब मात्र 12 साल के थे, तभी उनके पिता का निधन हो गया और ऐसी परिस्थिति में उनके बड़े भाई नंदलाल ने उनकी पढ़ाई-लिखाई का जिम्मा संभाला। उनकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानिय स्कूल में ही हुई। उन्होंने मुल्तान के डी.ए.वी. हाई स्कूल में भी अध्यन किया। वे बचपन से ही एक प्रतिभावान् विद्यार्थी थे जिसके कारण इन्हें बराबर छात्रवृत्तियाँ मिलती रहीं।
उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से सन् 1943 में बी.एस-सी. (आनर्स) तथा सन् 1945 में एम.एस-सी. (ऑनर्स) की डिग्री प्राप्त की। भारतीय-अमेरिकी बायोकेमिस्ट डॉ. हरगोविंद खुराना का जन्म 9 जनवरी 1922 को अविभाजित भारत के रायपुर (जिला मुल्तान, पंजाब) में हुआ था खुराना को 1968 में फिजियोलॉजी के लिए नोबेल पुरस्कार मिला था। उन्हें यह पुरस्कार साझा तौर पर दो और अमेरिकी वैज्ञानिकों के साथ दिया गया। नोबेल का यह पुरस्कार पाने वाले वह भारतीय मूल के पहले वैज्ञानिक थे।
पढ़ाई में खुराना की मेहनत और लगन देखकर उन्हें उच्च शिक्षा के लिए भारत सरकार ने छात्रवृत्ति पर 1945 में इंग्लैंड भेजा। वहां लिवरपूल विश्वविद्यालय में प्रोफेसर ए.रॉबर्टसन् के अधीन डॉक्टरेट किया। खुराना को इसके बाद भारत सरकार से शोधवृत्ति मिली और वह स्विट्जरलैंड के फेडरल इंस्टिटयूट ऑफ टेक्नॉलोजी में प्रोफेसर वी. प्रेलॉग के साथ रिसर्च में लग गए। खुराना भारत में कुछ नया करना चाहते थे। वे आनुवांशिकी विज्ञान में खोज करने के लिए उत्सुक थे। पर दुर्भाग्य से देश में खुराना को अपने योग्य कोई काम नहीं मिल सका, इसलिए मजबूरन उन्हें विदेश वापस लौटना पड़ा। खुराना 1960 में अमेरिका के विस्कान्सिन विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के पद पर नियुक्त हुए और उन्होंने अमेरिकी नागरिकता अपना ली।
हरगोविंद खुराना ने विज्ञान के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण योगदान दिए। जिसके लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया। वह अमेरिकी नागरिक होकर भी अपनी मातृभूमि भारत को कभी भूल नहीं पाए। जब भी उन्हें समय मिलता वे अपने रिश्तेदारों और दोस्तों से मिलने के लिए भारत आया करते थे। पूरी दुनिया में भारत का नाम रौशन करने वाले और जिंदगी को जिंदादिली से जीने वाले डॉ. हरगोविंद खुराना ने इस दुनिया को 9 नवंबर 2011 को अलविदा कह दिया। डॉ खुराना ने जीन इंजीनियरिंग (बायो टेक्नोलॉजी) विषय की बुनियाद रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जेनेटिक कोड की भाषा समझने और उसकी प्रोटीन संश्लेषण में भूमिका प्रतिपादित करने के लिए सन 1968 में डॉ खुराना को चिकित्सा विज्ञान का नोबल पुरस्कार प्रदान किया गया।