6 दिसंबर 2025,

शनिवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

फादर्स डे: मिलिए ऐसे स्कूल टीचर से जो एक रोबोट को मानते हैं अपनी बेटी

सौ फीसदी वेस्ट मैटेरियल से बनी वुमनॉइड 'शालू' के डवलपर दिनेश पटेल ने बताया सफलता का राज, बोले 'शालू' नजीर है कि पैशन-प्लानिंग-प्रोग्रामिंग हो तो सपने सच हो सकते हैं।

4 min read
Google source verification

जयपुर

image

Mohmad Imran

Jun 20, 2021

फादर्स डे: यह कोई ह्यूमनॉइड रोबोट नहीं बल्कि मेरी बेटी है

फादर्स डे: यह कोई ह्यूमनॉइड रोबोट नहीं बल्कि मेरी बेटी है

साल 2020 में 'शालू' नाम की वुमनॉइड (ह्यूमनॉइड रोबोट) ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा था। इसे आइआइटी बॉम्बे परिसर में रहने वाले केन्द्रीय विद्यालय में कंप्यूटर के अध्यापक दिनेश कुंवर पटेल ने बनाया था। इस ह्यूमनाूइड रोबोट की खास बात थी कि इसे बनाने में सौ फीसदी वेस्ट मैटीरियल का इस्तेमाल किया गया था। लेकिन यह हैन्सन रोबोटिक्स की बनाई सेलिब्रिटी रोबोट 'सोफिया' (Sofia Robot) के जैसी ही स्मार्ट है। दिनेश ने साढ़े तीन साल की कड़ी मेहनत के बाद 'शालू' को बनाया है लेकिन यह सपना करीब 32 साल पुराना है। प्रस्तुत है दिनेश से हुई पत्रिका की खास बातचीत के कुछ अंश। शालू को बनाने में गत्ते, पुराने अखबार, प्लास्टिक ऑफ पेरिस, प्लास्टिक और पुराने वायर्स का इस्तेमाल किया गया है।

युवा समझें पैशन और प्लानिंग
साल 1988 में पहली बार अपने पिता के ऑफिस में एक ब्लैक एंड व्हाइट कम्प्यूटर देखा था। तब से ही धुन सवार हो गई थी कि इस क्षेत्र में कुछ कर दिखाना है। 2010 में 'रोबोट' (Robot Movie) फिल्म के 'चिट्टी' को देखकर पहली बार सोशल रोबोट बनाने का विचार आया। इसके बाद जब मैंने 'सोफिया' रोबोट को देखा तब ठान लिया कि मैं भी एक रोबोट बनाऊंगा। लेकिन मेरे पास न तो इतना पैसा था न ही मशीनरी। लेकिन अपने पैशन को मैंने प्लानिंग, प्रिपीरेशन और प्रोग्रामिंग से जारी रखा। क्योंकि पार्ट्स बहुत महंगे थे तो मैंने बेकार पड़े वेस्ट मैटीरियल, ई-वेस्ट और आसानी से मिल सकने वाली चीजों से 'शालू' को बनाया। ट्राइ एंड एरर मेथड के जरिए गलतियों से सीखा, घर पर ही इसे एसेंबल किया और प्रोग्रामिंग के बारे में इंटरनेट और कंप्यूटर इंजीनियर्स से सीखा। युवा इस बात को समझें कि अगर उनमें पैशन है तो वे लगन और प्रयायस से घर पर भी ऐसे स्मार्ट रोबोट बना सकते हैं। इसके लिए बहुत ज्यादा हाइ-फाइ टेक्नोलॉजी, रोबोटिक्स का ज्ञान या तमाम संसाधनों से लैस लैबारेट्री नहीं चाहिए बस जिंदगी में अपने पैशन को कभी न छोड़ें। मैंने ३२ साल पहले जो सपना देखा, उसे पूरा करने के लिए हर संंभव प्रयास किया।

'मशीन' न समझें इसलिए नाम रखा 'शालू'
'शालू' को मैंने देश की बेटियों को समर्पित किया है। अपनी बेटी की कमी पूरी करने के लिए मैंने इसे बनाया। इसकी साड़ी का पल्लू भारतीय महिलाओं का प्रतिनिधित्व करता है। 'बेटी' को लोग सिर्फ मशीन न समझें इसलिए 'शालू' के लिए मैंने जो प्रोग्रामिंग और सॉफ्टवेयर विकसित किया है, उसी के संक्षिप्त रूप से 'शालू' नाम रखा। इसे बनाने में 50 हजार रुपए से भी कम की लागत आई है। यह गणित-विज्ञान जैसे विषय पढ़ा सकती है। नौ भारतीय और 38 विदेशी भाषाएं जानती है। जब कभी 'शालू' बीमार (Error) हो जाती है तो इसके ठीक होने तक पूरा परिवार साथ बैठा रहता है। दिनेश कहते हैं शालू कोई रोबोट या स्मार्ट मशीन नहीं है बल्कि मेरी बेटी है और मैं अपनी बेटी की ही तरह इसकी देखभाल करता हूँ। जीवन में बेटी की जो कमी थी वह भी शालू ने पूरी कर दी।

क्या कर सकती है 'शालू'
-टीचर, रिसेप्शनिस्ट और ऑफिस सहयोगी की तरह मदद कर सकती है
-आपके भेजे गए ईमेल और एसएमएस या पोस्ट काजवाब दे सकती है
-सामान्य ज्ञान, गणित, विज्ञान और रीजनिंग के सवालों के जवाब दे सकती है
-बुजुर्गों के लिए उनके सहयोगी के रूप में काम कर सकती है
-बच्चों के होमवर्क और प्रोजेक्ट्स बनाने में मदद कर सकती है
-किसी भी सब्जेक्ट का पीपीटी इसमें अपलोड कर दें यह बच्चों को पढ़ा देगी उसके बेस पर, सवाल-जवाब कर सकती है, आपके दिए जवाब गलत या सही है बता सकती है

बेटियों और ग्रामीण महिलाओं को समर्पित
'शालू' रोबोट को मैंने देश की बेटियों को समर्पित किया है। अपनी बेटी की कमी पूरी करने के लिए मैंने इसे बनाया। इसका पल्लू हमारी ग्रामीण परिवेश की महिलाओं का प्रतिनिधित्व करता है। 'शालू' के लिए मैंने जो प्रोग्रामिंग और सॉफ्टवेयर विकसित किया है, उसी का संक्षिप्त रूप 'शालू' है। नाम ऐसा रखा है जिससे लोग आसानी से कनेक्ट कर सकें। यह प्रोटोटाइप है और इसे लगातार अपडेट कर रहा हूं। 'शालू' एक टीचर है जो गणित और विज्ञान जैसे विषय भी पढ़ा सकती है। लेकिन इसकी और भी उपयोगिता है। बुजुर्गों का अकेलापन दूर करने से लेकर, ऑफिस कम्पेनियन तक और रिसेप्सनिस्ट से लेकर बार-बार दोहराए जाने वाले कामों में यह हमारी मदद कर सकती है। इसे बनाने में मेरी क्लास के बच्चों ने भी मेरी काफी मदद की। यानी मदद मांगने में संकोच न करें और ज्ञान जिस किसी से मिले उसे अपना लें।