
साबूदाने का इस्तेमाल हो रहा है थैले बनाने में ...... जाने कैसे
नई दिल्ल दुनियां भर में जहां देखों वहां प्लास्टिक का भरमार भरा पड़ा रहता है चाहें वो पोलेथीन के रूप में होे या बॉटल्स के रूप में। लेकिन वैज्ञान जिस प्रकार से हर चीज का वैकल्प निकाल रेह हैं उसी तरह से प्लास्टिक का वैकल्पिक रूप निकाल लिया गया है। इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता से करीब 30 किमीटर दूरी पर तांगरंग लैंडफिल पड़ता हैं। इस जगह पर कचरे का ढे़र 35 हेक्टर क्षेत्र में फेला हुआ है। जो इस कचरे से बदबू निकलती है वो असहनिय होती है। मगर कूड़ा उठाने वाले लोग इसी बदबू का सामना करते हैं। कहा जाता है कि 1500 टन कूड़ा आता है जिसमें से बीस प्रतिशत प्लास्टिक होता है।
सुगिआंतो तानदियो ने प्लास्टिक के कूड़े का ढेर बनने के चलते एक मुहिम उठाई है। इसके लिए उन्होंने ग्रीनहोप नाम की संस्था बनाई है। वह बताते हैं कि इंडोनेशिया में प्लास्टिक की रिसाइक्लिंग रेट सिर्फ आठ फीसदी है, "दुनिया भर में प्लास्टिक की रिसाइक्लिंग का औसत करीब 15 फीसदी है।"
वहीं इंडोनेशिया में इन प्लास्टिक में दवाईयों को बांध कर दिया जाता है। एेसी पैकेजिंग से ही प्लास्टिक का कचरा बढ़ता ही जा रहा है। कहा जाता है कि इस प्लास्टिक खत्म होने में कम से कम 500 साल लगेगें। इससे पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंच रहा है। साथ ही समुद्र में रहने वाले जीव भी इससे अछुते नहीं है। सुगिआंतो प्लास्टिक का ऐसा विकल्प पेश करना चाहते हैं जो आराम से नष्ट हो जाए। वह कहते हैं, "उपाय यह हो सकता है कि पैकेजिंग वाले सारे प्लास्टिक को डिग्रेडेबल बनाया जाए।"
आपको बता दें कि सुगिआंतो ने विकल्पों की तलाश में लंबी रिसर्च की है। उनकी कंपनी ग्रीनहोप जैविक रूप से विघटित होने वाला पॉलीमर टापियो का यानी साबूदाने से बना रही है। प्रोसेसिंग के बाद इसे प्लास्टिक के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। दरअसल, साबूदाना कसावा के पौधे से बनता है जो एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के ट्रॉपिकल इलाकों में उगाया जाता है। सुगिआंतो बताते हैं, "कसावा का पौधा जमीन के नीचे बढ़ता है। कटाई के दौरान इसे सिर्फ ऊपर खींचना पड़ता है। तने को निकाला जाता है, वही स्टार्च का स्रोत है। ऊपर का तना इसके बाद दो तीन मीटर बढ़ता है।" कसावा सस्ता है और भारी मात्रा में पाया जाता है, लेकिन इसमें बहुत ज्यादा पोषक तत्व नहीं होते। इसीलिए प्लास्टिक के विकल्प के तौर पर इसका इस्तेमाल भी ठीक ही लगता है।
90 फीसदी प्लास्टिक कच्चे तेल से मिलता है। यह पर्यावरण enviourment के लिए बिल्कुल अच्छा नहीं है। अगर प्लास्टिक plastic से निपटा नहीं गया तो आने वाली पीढ़ियों को इसकी कीमत चुकानी होगी। सिर्फ इंडोनेशिया ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को फौरन कुछ करने की जरूरत है।
Updated on:
01 Apr 2019 01:10 pm
Published on:
01 Apr 2019 01:08 pm
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