
निस्वार्थ दोस्ती
आष्टा. ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे, तोड़ेंगे दम मगर तेरा साथ नहीं छोड़ेंगे... साल 1975 में आई शोले फिल्म के इस गीत को कौन नहीं जानता है। जिसमें अभिनेता धर्मेंद्र और अमिताब बच्चन की जय-वीरू की दोस्ती को पर्दे पर बहुत ही बेहतरीन तरीके से प्रदर्शित किया है, लेकिन असल में इस दोस्ती को आष्टा क्षेत्र के दो दोस्त निस्वार्थ भाव से निभाकर मिशाल कायम कर रहे हैं।
जी हां हम बात कर रहे हैं गांव खानदौरापुर भंवरी निवासी अशोक कुमार परमार और शंकर लाल परमार की। जिनकी बचपन की सच्ची दोस्ती आज भी कायम है। इसकी शुरूआत गांव के प्राथमिक स्कूल से हुई। जब दोनों ने एक साथ प्राथमिक स्कूल में दाखिला लेकर शिक्षा ग्रहण करना शुरू की, उसके बाद साथ नहीं छोड़कर हायर सेकंडरी की शिक्षा आष्टा और कॉलेज की शिक्षा सीहोर के शासकीय कॉलेज से प्राप्त की। यह भी एक संयोग ही रहा कि दोनों अपनी कक्षाओं में उस समय के टॉपर रहे और अध्यापक बने।
गहरी होती चली गई
अशोक परमार अध्यापक वर्ग 2 में होकर बागेर के स्कूल में पढ़ाते हैं, जबकि शंकर लाल परमार भी अध्यापक वर्ग 2 में शिक्षक के रूप में पदस्थ हैं। अपनी दोस्ती को यादगार बनाने के लिए आष्टा में पुष्प विद्यालय के पास दोनों ने एक साथ और एक ही नक्शे पर आधारित मकान बनाया है। उनकी दोस्ती समय के साथ इतनी गहरी होती चली गई कि उसके अब गांव से लेकर शहर तक में उदाहरण दिए जाते हैं। खास बात यह है कि हर साल मित्रता (फ्रेंडशिप डे) पर दोनों एक साथ पौधरोपण कर पर्यावरण को बढ़ावा देने का संदेश देते हैं।
नहीं आया मनमुटाव
बताया जाता है कि दोनों की दोस्ती पिछले 48 साल से कायम है, जिसमें कभी मनमुटाव की स्थिति नहीं बनी है। अशोक परमार और शंकरलाल परमार का कहना है कि दोस्ती को एक पवित्र रिश्ते की तरह निभाना चाहिए। एक सच्चा दोस्त दोस्ती को निभाकर दूसरे के काम आए उससे बड़ी कोई बात नहीं होती है। इस तरह से सभी मिलजुलकर रहने लगे तो पूरा माहौल ही बदल जाएगा। इन दोनों दोस्तों का कहना है कि किसी से भी दोस्ती हो तो उसे सच्ची शिद्दत के साथ निभाना चाहिए।
Published on:
01 Aug 2021 11:38 am
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