
परिसीमन के बाद प्रदेश के इस संभाग की 7 विधानसभा सीटें हो गई थी आरक्षित
शहडोल. परिसीमन ने शहडोल संभाग के राजनीतिक परिदृश्य को ही बदलकर रख दिया। वर्ष 2008 में संभाग की 8 में से 7 विधानसभा सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हो गई। आदिवासी बाहुल्य संभाग होने के बाद भी आदिवासी परिवारों को नेतृत्व का अवसर परिसीमन के पहले बिरले ही मिला। वर्ष 2008 के चुनाव में पहला अवसर था जब संभाग की 8 सीटों में से 7 में प्रतिनिधित्व के लिए अनुसूचित जाति, जनजाति से प्रत्याशी मैदान में थे और चुनाव परिणाम के बाद विधायक चुनकर आए। इसके बाद लगातार पिछले तीन बार से शहडोल की 3, उमरिया की 2 और अनूपपुर की 2 सीटों में अजजा वर्ग ही नेतृत्व करता चला आ रहा है।
समीकरण बदले, हालात जस के तस
विधानसभा सीटें एसटी वर्ग के लिए आरक्षित होने के बाद राजनीतिक समीकरण तो बदल गए लेकिन यहां के ग्रामीण अंचलों में निवास करने वाले आदिवासी परिवारों की जीवन स्तर में कुछ खास बदलाव देखने नहीं मिला। तीन पंचवर्षी से जिनके हाथो में क्षेत्र का नेतृत्व है उसी वर्ग की स्थिति आज भी जस की तस ही है। जातिगत समीकरणों के आधार पर इन्हे बड़ा वोट बैंक माना जाने लगा और चुनाव के समय इन्हे तवज्जो भी मिला, लेकिन अवसर निकलने के बाद इन्हे मूलभूत सुविधाएं भी मुहैया नहीं हो पाई।
अभी भी संघर्ष जारी, कोतमा सीट अनारक्षित
आदिवासी बाहुल्य संभाग में जल, जंगल और जमीन की लड़ाई आज भी आदिवासी परिवार लड़ रहे हैं। आदिवासी नेतृत्व होने के बाद भी आदिवासियों के साथ ही समुचित न्याय नहीं हो पा रहा है। संभाग की सिर्फ और सिर्फ अनूपपुर जिले की कोतमा विधानसभा सीट ही अनारक्षित है। इस सीट से किसी भी वर्ग से प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतर सकता है।
Published on:
27 Oct 2023 12:14 pm
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