
Atal bihari vajpeyee- Do not give up I will love Rar
शहडोल- हार नहीं मानूंगा, रार नई ठानूंगा, काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं, गीत नया गाता हूं.... अटल जी की ये कविता आज हर किसी के जुबान पर है। आज अटल बिहारी वाजपेयी का जन्मदिन है। जिसे आज पूरा देश मना रहा है। शहडोल जिले में भी अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन पर कई कार्यक्रम हो रहे हैं। अलग-अलग तरह के कार्यक्रम कर आज अटल जी को याद किया जा रहा है। अटल बिहारी वाजपेयी जी का जन्म मध्यप्रदेश के ग्वालियर में २५ दिसंबर १९२४ को हुआ था। उनके पिता का नाम कृष्ण बिहारी वाजपेयी था जो शिक्षक थे। देश के पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी का 93वां जन्मदिन पूरा देश मना रहा है. भाजपा के साथ-साथ देश भर में फैले उनके चहेतों ने जन्मदिन का जश्न मनाना शुरू कर दिया है।
जब शहडोल आए अटल जी
अटल बिहारी वाजपेयी जी 1986 में शहडोल आए थे । शहर के गांधी स्टेडियम में उनका आगमन हुआ था।
अटल जी की खास बातें
वो एक कुशल राजनीतिज्ञ, प्रशासक, भाषाविद, कवि, पत्रकार व लेखक के रूप में जाने जाते हैं। हालांकि, वाजेपीय अब सक्रिय राजनीति से दूर हैं। लेकिन एक दौर में उनकी भाषाण शैली का भारतीय राजनीति में डंका बजा करता था।
वह जब जनसभा या संसद में बोलने खड़े होते तो उनके समर्थक और विरोधी दोनों उन्हें सुनना पसंद करते थे। वाजपेयी अपने कवितामय भाषण से लोगों को अपना मुरीद बना लेते थे। राजनीति में संख्या बल का
आंकड़ा सर्वोपरि होने से 1996 में उनकी सरकार सिर्फ एक मत से गिर गई और उन्हें प्रधानमंत्री का पद त्यागना पड़ा। ये सरकार सिर्फ 13 दिन तक चली। बाद में उन्होंने प्रतिपक्ष की भूमिका निभायी। इसके बाद हुए चुनाव में वो दोबारा प्रधानमंत्री बने।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की विचारधारा में पले-बढ़े अटल राजनीति में उदारवाद और समता एवं समानता के समर्थक माने जाते हैं. उन्होंने राजनीति को दलगत और स्वार्थ की वैचारिकता से अलग हट कर अपनाया और उसको जिया. जीवन में आने वाली हर विषम परिस्थितियों और चुनौतियों को स्वीकार किया. नीतिगत सिद्धांत और वैचारिकता का कभी कत्ल नहीं होने दिया. राजनीतिक जीवन के उतार-चढ़ाव में उन्होंने आलोचनाओं के बाद भी अपने को संयमित रखा...
विरोधी भी उनके कायल रहे
राजनीति में धुर विरोधी भी उनकी विचारधारा और कार्यशैली के कायल रहे, अटल बिहारी वाजपेयी राजनीति में कभी भी आक्रमकता के पोषक नहीं थे, वैचारिकता को उन्होंने हमेशा तवज्जो दिया, अटल मानते हैं कि राजनीति उनके मन का पहला विषय नहीं था, वो एक कवि के रूप में अपनी पहचान बनाना चाहते थे. लेकिन, शुरुआत पत्रकारिता से हुई. पत्रकारिता ही उनके राजनैतिक जीवन की आधारशिला बनी. उन्होंने संघ के मुखपत्र पांचजन्य, राष्ट्रधर्म और वीर अर्जुन जैसे अखबारों का संपादन किया, 1957 में देश की संसद में जनसंघ के सिर्फ चार सदस्य थे जिसमें एक अटल बिहारी वाजपेयी भी थे. संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए हिंदी में भाषण देने वाले अटलजी पहले भारतीय राजनीतिज्ञ थे, हिन्दी को सम्मानित करने का काम विदेश की धरती पर अटलजी ने किया।
अटल बिहारी वाजपेयी राजनीति में कभी भी आक्रमकता के पोषक नहीं थे. वैचारिकता को उन्होंने हमेशा तवज्जो दिया. अटल जी मानते हैं कि राजनीति उनके मन का पहला विषय नहीं था. राजनीति से उन्हें कभी कभी तृष्णा होती थी. लेकिन, वे चाहकर भी इससे भाग नहीं सकते थे क्योंकि विपक्ष उन पर पलायन की मोहर लगा देता, वे अपने राजनैतिक दायित्वों का डट कर मुकाबला करना चाहते थे, यह उनके जीवन संघर्ष की भी खूबी रही।
राजनीतिक कुशलता की छाप
सबसे पहले 1955 में अटल जी पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा. बाद में 1957 में गोंडा की बलरामपुर सीट से जनसंघ उम्मीदवार के रूप में जीत कर लोकसभा पहुंचे. उन्हें मथुरा और लखनऊ से भी लड़ाया गया लेकिन हार गए. अटल जी ने बीस साल तक जनसंघ के संसदीय दल के नेता के रूप में काम किया, पूर्व पीएम इंदिरा गांधी के खिलाफ जब विपक्ष एक हुआ और बाद में जब देश में मोरारजी देसाई की सरकार बनी तो अटल जी को विदेश मंत्री बनाया गया. इस दौरान उन्होंने अपनी राजनीतिक कुशलता की छाप छोड़ी और विदेश नीति को बुलंदियों पर पहुंचाया, बाद में 1980 में जनता पार्टी से नाराज होकर पार्टी का दामन छोड़ दिया, इसके बाद बनी भारतीय जनता पार्टी के संस्थापकों में वो एक थ,. उसी साल उन्हें भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष की कमान सौंपी गयी, इसके बाद 1986 तक उन्होंने बीजेपी अध्यक्ष पद संभाला. उन्होंने इंदिरा गांधी के कुछ कार्यों की तब सराहना की थी, जब संघ उनकी विचारधारा का विरोध कर रहा था।
चुनौतियों से कभी डरे नहीं
अटल जी ने लाल बहादुर शास्त्री की ओर से दिए गए नारे जय जवान जय किसान में अलग से जय विज्ञान भी जोड़ा, देश की सामरिक सुरक्षा पर उन्हें समझौता गवारा नहीं था, वैश्विक चुनौतियों के बाद भी राजस्थान के पोखरण में 1998 में परमाणु परीक्षण किया, इस परीक्षण के बाद अमेरिका समेत कई देशों ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिया. लेकिन उनकी दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति ने इन परिस्थितियों में भी उन्हें अटल स्तंभ के रूप में अडिग रखा,
कारगिल युद्ध की भयावहता का भी डट कर मुकाबला किया और पाकिस्तान को धूल चटायी, दक्षिण भारत के वर्षों पुराने कावेरी जल विवाद का हल निकालने का प्रयास भी अटल जी ने किया, स्वर्णिम चतुर्भुज योजना से देश को राजमार्ग से जोडऩे के लिए कॉरिडोर बनाया, मुख्य मार्ग से गांवों को जोडऩे के लिए प्रधानमंत्री सड़क योजना बेहतर विकास का विकल्प लेकर सामने आई, कोंकण रेल सेवा की आधारशिला उन्हीं के काल में रखी गई थी।
Published on:
25 Dec 2017 03:18 pm
बड़ी खबरें
View Allशहडोल
मध्य प्रदेश न्यूज़
ट्रेंडिंग
