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आदिवासी परिवारों पर कुपोषण का काला साया: बेटी जन्म से कुपोषित, बेटे का मांस हड्डियों से चिपका, लगातार बढ़ रहा सिर का आकार

कुपोषण की भयावह स्थिति: बढ़ते गए कुपोषण के मामले, फिर भी गंभीर नहीं अफसर, एनआरसी तक नहीं पहुंच रहे बच्चे, अति कुपोषित बच्चों की संख्या बढ़ी

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malnutrition in india

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शुभम सिंह बघेल@शहडोल.
बैगा बाहुल्य पचड़ी गांव के सोनी लाल व आरती बैगा के दोनों बच्चे कुपोषण के कू्रर कुचक्र में फंसकर जिंदगी मौत के बीच संघर्ष कर रहे हैं। 6 वर्ष की बेटी जन्म से ही कुपोषित है। 3 साल का बालक भी कुपोषण और गंभीर बीमारी से जूझ रहा है। सिर का आकार लगातार बढ़ रहा है। आंखें भीतर धंस गई हैं और मांस हड्डियों से चिपक गया है। स्थिति यह है कि बालक 3 वर्ष का होने के बाद भी खुद से बैठ नहीं पाता है। बैठते ही लुढ़क जाता है और घसीटते हुए एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचता है। मां आरती बैगा कहती है, अब तक न आयुष्मान कार्ड बना है और न ही राशन कार्ड में नाम जुड़ा है। इलाज कराने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं हैं। अफसरों के पास कई बार लेकर गए लेकिन कोई मदद नहीं मिली। दोनों बच्चों की चिंता की वजह से मजदूरी भी नहीं कर पाते हैं। पूरा परिवार आर्थिक समस्या से जूझ रहा है। ये पीड़ा सिर्फ एक परिवार की नहीं, बल्कि कई ऐसे आदिवासी परिवार हैं, जिनके बच्चे कुपोषण का दंश झेल रहे हैं। पचड़ी से सटे खौहाई गांव के 22 वर्षीय उदय भी गंभीर बीमारी (विकलांगता) की चपेट में हैं। बचपन में एनीमिक और कुपोषित थे। इलाज नहीं मिला तो मर्ज बढ़ता गया। परिजन बताते हैं, उदय 20 वर्ष तक चलने में असक्षम थे और बिस्तर पर ही रहे। दरअसल संभाग में कुपोषण की भयावह स्थिति है। लगातार बढ़ते कुपोषण के मामलों के बाद भी अफसर गैर जिम्मेदार हैं। कुपोषण से जंग सिर्फ कागजों तक सीमित है। पोषण पुनर्वास केन्द्रों में गिनती के बच्चे भर्ती हो रहे हैं। मैदानी अमला सिर्फ कोरम पूरा कर रहा है। अफसरों की कमजोर निगरानी से पोषण आहार भी नहीं मिल पा रहा है।
बढ़ रहा सिर्फ, कर्ज लेकर कराया इलाज, अफसर कहते हैं बाहर ले जाओ
मां आरती बैगा बताती हैं, लगातार सिर बढ़ रहा है। कई बार डॉक्टर व अधिकारियों के पास ले गए। अधिकारी गांव आए तब भी दिखाया लेकिन कहते हैं कमजोर हैं। एनीमिक हैं। बाद में ठीक हो जाएगा, बाहर ले जाओ। परिजनों के अनुसार, कर्ज लेकर इलाज कराया लेकिन कोई राहत नहीं मिली। बेटी भी 6 वर्ष की हो गई है लेकिन अब तक एनीमिक हैं। पोषण आहार भी समय पर नहीं मिलता है।
कुपोषण में इलाज नहीं मिला तो घेर ली विकलांगता
पचड़ी गांव से सटे खौहाई गांव में 22 वर्षीय उदय गंभीर बीमारी से जूझ रहा है। परिजन बताते हैं, पहले उदय कुपोषित और एनीमिक था। कोई इलाज नहीं मिला, गांव में अस्पताल और आंगनबाड़ी दूर-दूर थे। स्थिति यह हो गई कि उदय को विकलांगता ने घेर लिया। 20 वर्ष तक बिस्तर पर था। जब सरकारी मदद और इलाज नहीं मिला तो परिजन खुद हाथ पकड़कर लकड़ी से चलना सिखाया।
बढ़ते गए कुपोषित, एनआरसी में भी बढ़ती गई लापरवाही
पिछले तीन माह के आंकड़ों के अनुसार पोषण पुनर्वास केन्द्र में कुपोषित बच्चों को भर्ती कराने में लगातार लापरवाही बरती जा रही है। गांव-गांव कुपोषित बच्चों के इलाज के लिए मैदानी अमला पहुंच ही नहीं रहा है। सितंबर में कुपोषित बच्चों के भर्ती का आंकड़ा 76.77 प्रतिशत था। यह घटकर अक्टूबर में 41.21 प्रतिशत हो गया। नवंबर में शुरुआत से ही खराब स्थिति थी। पूरे नवंबर माह में 37 प्रतिशत सिर्फ था। नवंबर में जयसिंहनगर, ब्यौहारी व गोहपारू में सबसे ज्यादा खराब स्थिति थी। दिसंबर के 15 दिनों में भी खराब स्थिति थी।जिला अस्पताल के एनआरसी में सिर्फ 15 बच्चे पहुंचे थे।जयसिंहनगर और ब्यौहारी में भी एनआरसी में बच्चों को भर्ती कराने में रुचि नहीं दिखाई। अक्टूबर व नवंबर में शहडोल, जयसिंहनगर ब्यौहारी, सिंहपुर और गोहपारू में 50 फीसदी से भी कम कुपोषित बच्चे भर्ती हुए थे।
अस्पताल न जांच केन्द्र, शहडोल जाते हैं ग्रामीण
पचड़ी व खौहाई गांव के ग्रामीण बताते हैं, गांव में कोई जांच केन्द्र नहीं है। दो किमी दूर अस्पताल है। मझगवां अस्पताल में अक्सर ताला लगा रहता है, डॉक्टर भी नहीं रहते हैं। इस स्थिति में इलाज के लिए शहडोल जाना पड़ता है। गांव में आंगनबाड़ी भी नहीं है। 2 किमी दूर जाना पड़ता है।

कुपोषण की स्थिति 2022 2021
सामान्य पोषण के दर्ज बच्चे 86014 87685
कम वजन के बच्चे कुपोषित 11668 11580
अति कम वजन के बच्चे कुपोषित 2080 1495
मध्यम गंभीर कुपोषित बच्चे 4288 4034
अति गंभीर कुपोषित बच्चे 820 629
कुल कुपोषित बच्चे 18856 17738

ब्लॉक भर्ती कुपोषित बच्चे (प्रतिशत में)

सितंबर अक्टूबर नवंबर दिसंबर
जिला अस्पताल 51.5 28.87 34.83 15
बुढ़ार 105.67 79.31 96.67 104.71
जयसिंहनगर 70.67 28.5 20 10
ब्यौहारी 61 35.48 18.18 20
सिंहपुर 73.8 36.4 14.81 37.5
गोहपारू 98.67 38.7 37.65 33.75
कुल 76.77 41.21 37.02 42.19
(जिला मुख्यालय व ब्लॉक में कुपोषित बच्चों के डाइट के लिए संचालित एनआरसी की स्थिति)

कुपोषण व भूख से मौत पर सरकार जिम्मेदार
सर्वोच्च न्यायालय ने अक्टूबर 2002 में स्पष्ट किया था कि राज्य सरकारें कुपोषण या भूख से मौत रोकने के लिए जिम्मेदार हैं। भूख से मौत पर मुख्य सचिवों को जिम्मेदार ठहराया जाएगा।

संविधान और कुपोषण
संविधान के अनुच्छेद-21 और अनुच्छेद-47 सरकार को सभी नागरिकों के लिए पर्याप्त भोजन के साथ एक सम्मानित जीवन सुनिश्चित करने के लिए उचित उपाय करने के लिये बाध्य करते हैं। अनुच्छेद 21 के मुताबिक, किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन से वंचित नहीं किया जा सकता। संविधान के अनुच्छेद 47 के अनुसार, राज्य अपने लोगों के पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊंचा करने तथा लोक स्वास्थ्य में सुधार को प्राथमिक कर्तव्योंं के रूप में शामिल करेंगे। संविधान के मूल अधिकारों से अप्रत्यक्ष जबकि राज्य के नीति निर्देशक तत्वोंं से प्रावधानों में प्रत्यक्ष रूप से कुपोषण को खत्म करने की बात की गई है।


स्वास्थ्य विभाग, महिला बाल विकास और प्रशासन की टीम गांव-गांव दौरा कर रही है। कुपोषण रोकने हमने कार्ययोजना बनाई है। कुपोषण के मामले बढ़ रहे हैं तो टास्क फोर्स बनाएंगे। जिन गांवों में ज्यादा केस हैं, वहां स्क्रीनिंग के साथ हेल्थ कैंप लगवाएंगे। चिन्हित बच्चों का बेहतर इलाज कराएंगे।
वंदना वैद्य, कलेक्टर शहडोल

कुपोषण के खिलाफ कार्ययोजना बना रहे हैं, अभियान चलाया जाएगा। जिन गांवों में ज्यादा केस हैं, वहां शिविर लगाकर बच्चों को एनआरसी में भर्ती कराएंगे। मैदानी अमले के साथ बैठक लेंगे।
राजीव शर्मा, कमिश्नर

मैं खुद विजिट करुंगी। बच्चों के इलाज के लिए अधिकारियों से चर्चा की जाएगी। टीम भी भेजेंगे।
मेघा पवार, सदस्य
मप्र बाल संरक्षण आयोग