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मेडिकल कॉलेज में पहली बार कॉर्निया रिट्रीवल, भेजा गया रीवा लैब

परिजनो की सहमति के बाद मेडिकल कॉलेज के नेत्ररोग विभाग की टीम ने की सुरक्षित प्रक्रिया

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शहडोल. बिरसा मुंडा शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय के नेत्ररोग विभाग ने मृत व्यक्ति के परिजनों की सहमति से पहली बार सफलता पूर्वक कॉर्निया रिट्रीवल की प्रक्रिया पूरी की है। इस प्रक्रिया से नेत्रहीन व्यक्ति को आंखों की रोशनी मिलने की उम्मीद जगी है। यह उपलब्धि न केवल मेडिकल कॉलेज बल्कि पूरे संभाग के लिए गर्व का विषय मानी जा रही है। जानकारी के अनुसार मंगलवार सुबह नगर के सिंंधी धर्मशाला के समीप निवासी श्रीचंद छाबड़ा का निधन हो गया था। मृतक के परिजनों ने मानवता का परिचय देते हुए नेत्रदान की सहमति दी। इसके बाद मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विभाग की विशेषज्ञ टीम ने मृतक की आंखों से कॉर्निया को सुरक्षित रूप से निकालने की प्रक्रिया पूरी की। निकाले गए कॉर्निया को विशेष सुरक्षा मानकों के तहत रीवा स्थित लैब भेजा गया है, जहां परीक्षण और संरक्षण के बाद इसका उपयोग नेत्र प्रत्यारोपण में किया जाएगा।

परिजनों ने लिया निर्णय, होगा सम्मान

श्रीचंद छाबड़ा के बेटे संजय छाबड़ा ने बताया कि पिता की आंखें किसी और के काम आ जाए, इसी मंशा से उन्होने नेत्रदान का निर्णय लिया। अमरज्योति नेत्रदान महादान संस्था के संयोजक लखन बुचवानी की मदद से उन्होने मेडिकल कॉलेज प्रबंधन के समक्ष अपनी बात रखी। इसके बाद मेडिकल कॉलेज टीम ने सुरक्षित कॉर्निया रिट्रीवल की प्रक्रिया पूर्ण की।

इनकी रही महती भूमिका

इस उपलब्धि के पीछे महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. जीबी रामटेके की अहम भूमिका रही। कॉर्निया रिट्रीवल की प्रक्रिया नेत्र रोग विभाग के असिस्टेंट प्रो. डॉ. धीरेंद्र पांडे ने विभागाध्यक्ष डॉ. प्रणदा शुक्ला एवं एसोसिएट प्रो. डॉ. शोएब अर्शद के नेतृत्व में सफलतापूर्वक किया। इस दौरान गुलाब सिंह, नर्सिंग ऑफिसर्स राहुल प्रजापति और ज्योति चौहान का सराहनीय सहयोग रहा। इसके अलावा मेडिसिन विभाग के असिस्टेंट प्रो. डॉ. प्रदीप कोरी ने भी प्रक्रिया को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अस्पताल अधीक्षक डॉ. नागेंद्र सिंह, एएमएस डॉ. विक्रांत कबीरपंथी सहित कॉलेज एवं अस्पताल के सभी आधिकारी कर्मचारियों ने उस उपलब्धि की सराहना की है।

दो नेत्रहीनों को मिल सकती है रोशनी

विशेषज्ञों का कहना है कि नेत्रदान में केवल कॉर्निया निकाला जाता है, आंखों की बाहरी संरचना सुरक्षित रहती है। एक व्यक्ति के नेत्रदान से दो नेत्रहीन लोगों को रोशनी मिल सकती है। संभाग में नेत्रदान और नेत्र प्रत्यारोपण सेवाओं के विस्तार की दिशा में यह बढ़ी उपलब्धि है। इससे भविष्य में कई जरूरतमंद मरीजों को नई दृष्टि और नया जीवन मिलने की उम्मीद है।