
सर्वजन कल्याण हेतु स्वयं आचार्य ने रखी इस आश्रम की नींव
शहडोल। गायत्री रुपी गंगा को जनमानस के उत्थान के लिए सुलभ कराने वाले पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के सैकड़ों अनुयायी शहडोल में भी हैं। सदस्यों के घर देवस्थान के रुप में आचार्य विराजमान हैं। आचार्य 36 वर्ष पहले शहडोल भी आए थे और उन्होंने गायत्री मंदिर का शुभारंभ किया था। आज गायत्री मंदिर ट्रस्ट के सैकड़ों सदस्य ग्रामीण अंचलों में जनजागरण की अलख जगा रहे हैं। गुरु पूर्णिमा के अवसर पर आचार्य की पूजा-आराधना होती है और सामाजिक कार्य किए जाते हैं।
हरिद्वार शांतिकुंज आध्यात्मिक केंद्र के संस्थापक आचार्य पंडित श्रीराम शर्मा सन् 1982 में शहडोल आए और उन्होंने गायत्री मंदिर का उद्घाटन किया। क्षेत्र में गायत्री जाप की अलख जगाने और लोगों को जागरुक करना था। सन् 2009 में मंदिर के ट्रस्ट का गठन किया गया। आज 7 ट्रस्टी हैं और 500 से अधिक सदस्य। यह मंदिर जनजागरण का केंद्र है। ट्रस्टी और सदस्य गांव-गांव जाकर अज्ञान्ता दूर करने और जनकल्याण के कार्य करते हैं। अपने गुरु के उद्देश्यों को पूरा करने में लगे रहते हैं। मंदिर में गुरु पूर्णिमा पर्व, नवरात्रि, बसंत पंचमी पर्व विशेष रुप से मनाया जाता है। मंदिर परिसर में विवाह संस्कार भी होते हैं। मंदिर से मिलने वाला विवाह प्रमाण पत्र से नगर पालिका द्वारा मैरिज सर्टिफिकेट मिल जाता है। ट्रस्ट पंजीकृत भी है और ट्रस्ट के पदेन अध्यक्ष जिला कलेक्टर हैं।
गुरु ने दिए दर्शन, बताए तीन जन्मों के अवतार
बताया जाता है कि आचार्य 15 वर्ष की आयु में गायत्री जाप में लीन हो गए थे। उनके गुरुदेव सर्वेश्वरानंद जी ने बसंत पंचमी के दिन पूजा स्थल पर उन्हें दर्शन दिए थे। गुरु ने उन्हें अपने 3 जीवन का परिचय कराया था। जिसमें बताया गया था कि वह पहले कबीर हुए, रामकृष्ण परमहंस और तीसरे समर्थ गुरु रामदास। गुरु ने जीवन का उपदेश बताया कि उनका जन्म समाज के कल्याण के लिए हुआ है।
गायत्री जाप सभी वर्गों के लिए सुलभ कराया
आचार्य ने गायत्री के 24 पुरुष चरण गाय का मठ्ठा और जौ की रोटी खाकर पूर्ण किए, इनकों गायत्री सिद्ध हुईं। सन 1958 में मथुरा में उन्होंने 108 कुंडी यज्ञ किया। उस समय गायत्री का प्रचार-प्रसार नहीं था, गायत्री एक विशेष वर्ग के लिए सीमित थीं। गायत्री जाप करने का अधिकार केवल ब्राम्हणों को था, आचार्य ने इस मिथिक को तोड़कर गायत्री जप और यज्ञ को बिना वर्गभेद के सबके लिए सुलभ कराया था। कहा जाता है कि जिस तरह भागीरथी जी ने गंगा का अवतरण कराया था, उसी तरह आचार्य श्रीराम शर्मा ने गायत्री रुपी गंगा को सुलभ कराकर जनमानस के कष्ट दूर किए।
शांतिकुंज दुनिया का एक आध्यात्मिक केंद्र
11 सितंबर 1911 को आगरा के आंवलखेड़ा में जन्में पंडित श्रीराम शर्मा 1971 में मथुरा छोड़कर शांतिकुज हरिद्वार गए। वहां आध्यात्म और विज्ञान का संबंध स्थापित करने के लिए ब्रम्ह बर्चस्व शोध संस्थान की स्थापना की। देव संस्कृति विद्यालय का निर्माण कराया। शांतिकुंज विश्व का एक आध्यात्मिक केंद्र है। जहां प्रतिदिन 50 हजार लोग रहते हैं। लोगों की निशुल्क व्यवस्थाएं और धार्मिक गतिविधियां होती हैं।
80 वर्ष में कर दिया 800 साल का कार्य
आचार्य ने अपनी 200 एकड़ जमीन दान कर दी थी, आज उस जमीन पर कन्या विद्यालय, कॉलेज, अस्पताल, गायत्री मंदिर हैं। वे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी थे। 3200 पुस्तकें लिखीं, चारों वेदों का भाष किया और उन्होंने 16 पुराण भी लिखे। 2 जून 1990 को उनका स्वर्गवास हो गया। कहा जाता है कि उन्होंने 80 वर्ष की उम्र में 800 वर्षों का कार्य कर दिया था।
---यह गुरु के प्रति समर्पण का पर्व है। गुरु मां भी होती है जिससे हम सीखते हैं, एक शैक्षणिक गुरु जो हमे शिक्षा देकर सामर्थ बनाते हैं, लेकिन सबसे बड़ा गुरु आध्यात्मिक गुरु होता है, जो हमे परमात्मा से मिलाता है।
रामलाल श्रीवास्तव
सदस्य व आचार्य श्याम शर्मा अनुयाई।
---सन् 1992 से सदस्य हैं, गुरुपूर्णिमा पर गुरु की अराधना करने छिंदवाड़ा से आते हैं। मैं एक रिटायर्ड शिक्षक हूं, गुरु के बिना ज्ञान नहीं मिलता।
तुकाराम तिनकर
सदस्य व आचार्य श्याम शर्मा अनुयाई।
Published on:
26 Jul 2018 08:44 pm
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