
Goa beach also defeats Kshirsagar
शहडोल। शहर से 20 किमी दूर प्राकृतिक सौंदर्यता की चादर ओढ़े क्षीरसागर को यदि संवारा जाए तो गोवा से टक्कर ले सकता है। यदि प्रशासन इसे संवारता है तो यह बड़ा पर्यटन स्थल विकसित किया जा सकता है। नया साल नजदीक है अब यहां पर पर्यटकों का पहुंचना भी शुरू हो गया है। क्षेत्र की मुडऩा और सोन दो बड़ी नदियों के इस संगम स्थल पर रेत की आकर्षक चादर बिछी हुई है। बच्चे जमकर मस्ती करते देखे जा रहे हैं। गुलाबी धूप और रेत में लेटकर लोग गोवा के बीच का लोग मजा ले रहे हैं। हालाकि यहां व्यवस्थाओं का अभाव बना हुआ है। व्यवस्थाओं के अभाव में यहां पर कूड़ा-कचरा भी बढ़ रहा है।
बिछी है पीले सोने की चादर
मुडऩा और सोन नदी के संगम स्थल पर करीब ५० एकड़ का मैदान रेत से सराबोर है। ठंड की गुलाबी धूप जब रेत पर पड़ती है तो ऐसा प्रतीत होता है मानो मैदान ने सोने की चादर बिछा दी गई हो। आकर्षक रेत बच्चों, महिलाओं और यहां पहुंचने वाले पर्यटकों को मस्ती करने के लिए मजबूर कर देती है। परिवार सहित पहुंचने वाले लोग रेत में खेलते दिखाई देते हैं। इसके अलावा प्राकृतिक रूप से नदी के मुहाने पर बने पत्थर व चट्टानें, पेड़-पौधे, नदी का साफ कल-कल बहता पानी दृश्य को मनमोहक बना देते हैं।
पुणे से घर आया बेटा तो पिकनिक मनाने पहुंचा परिवार
शहर के कृष्ण कुमार गुप्ता, विनोद गुप्ता, संतोष गुप्ता, अरुण गुप्ता, सुनील गुप्ता, नीरज अपने परिवार के साथ पिकनिक मनाने क्षीर सागर पहुंचे। उन्होंने बताया कि परिवार में एक बेटा स्वपनिल एयरफोर्स में है जो पुणे से छुट्टियां मनाने घर आया है। बेटा और परिवार के साथ पिकनिक मनाने क्षीर सागर पहुंचे हैं। परिवार के लोग खाने बनाने का सामान भी अपने साथ लेकर पहुंचे, जहां गुप्ता परिवार के लगभग ३० सदस्यों ने पूरे दिन मस्ती की।
महिलाओं, बच्चों, युवाओं के साथ पहुंचे व्यापारियों ने कहा कि नए वर्ष में भी वह समय निकालकर क्षीरसागर आएंगे।
पिकनिक स्पॉट में व्यवस्थाओं की दरकार
स्थानीय रामधारी यादव और मंदिर के पुजारी बच्चू बैगा ने बताया कि क्षीरसागर का पिकनिक स्पॉट जिला प्रशासन की उपेक्षा का शिकार है। आकर्षक मैदान तक पहुंचने के लिए लोगों को एक किलोमीटर कच्चे रास्ते से जाना पड़ता है। नदी में नीचे जाने के लिए घाट नहीं हैं। यहां सीमेंटेड सीढिय़ां बनाई जा सकती हैं। कूढ़ा दान न होने से पन्नियां और कचरा नदी के आसपास डाल दिया जाता है। करीब १० वर्षों से यहां पर्यटकों की भीड़ प्रतिवर्ष बढ़ रही है। यहां आसपास जंगली जानवरों का मूवमेंट और बरसात में पानी के बहाव के कारण सुरक्षा की कमी भी रहती है।
बैगन के भरता के साथ दाल-बाफले का आनंद
यहां बड़ी संख्या में पहुंचे लोग देसी खाने का भी आनंद उठा रहे थे। कुछ लोग जंगल से लकडिय़ां लाए और वहीं पर चूल्हा जला दिया। चूल्हे की आंच पर ही दाल और बाफले बनाए गए। साथ में बैंगन भी उसी चूल्हे की आग में भूना गया। सभी लोगों ने मिलकर खाना तैयार किया। इसके साथ ही शहडोल से ले जाए लड्डू के साथ दाल-बाफले और बैंगन के भर्ते के साथ लोगों ने आनंद लिया। लोग शहर से पानी खुद ही ले गए थे, हालांकि न भी ले जाते तो भी यहां का पानी इतना साफ और स्वच्छ है कि उसे भी पिया जा सकता था।
यह व्यवस्थाएं की जा सकती हैं
-नदी तक पहुंचने के लिए घाट होना
-पानी रोकर वोटिंग की जा सकती है
-1 किमी कच्ची सड़क का निर्माण हो
-सुरक्षा के इंतजाम हों
-पर्यटकों को बैठने और खाना-पीना खाने के इंतेजाम हों
-स्थल के आसपास कूड़ेदान रखे जाएं
-प्राथमिक उपचार की सुविधा
-मंदिर के आसपास गार्डन, बच्चों के झूले लगाए जा सकते हैं
Published on:
17 Dec 2017 08:43 pm
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