
यहां संपूर्ण राम दरबार की दिखती है अनुपम झलक, चारों धाम की परिकल्पना पर बना है मोहन राम मंदिर
शहडोल. नगर में लगभग डेढ़ सौ वर्ष पुराना भगवान का भव्य मंदिर स्थापित है। मोहनराम तालाब स्थित मंदिर का निर्माण चारों धामों की परिकल्पना के आधार पर कराया गया है। मंदिर परिसर में चारों धामों के देवता स्थापित है। यहां भगवान राम के सम्पूर्ण दरबार की अनुपम झलक देखने मिलती है। मंदिर में राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न के साथ मां जानकी की प्रतिमा स्थापित हैं। इसके अलावा यहां भगवान लक्ष्मी नारायण की अष्टधातु की सबसे बड़ी व प्राचीन प्रतिमा विद्यमान है। मंदिर परिसर में चार चांदी के व चार पीतल के स्तंभ विशेष आकर्षण का केन्द्र है। जानकारों की माने तो मंदिर का निर्माण दक्षिण के वास्तु विशेषज्ञों व वेदाचार्यों के संरक्षण में कराया गया था। नगर का यह सबसे प्राचीन राम मंदिर नगर वासियों के लिए आस्था का मुख्य केन्द्र है।
दास हनुमान की प्रतिमा स्थापित
बैकुण्ठ धाम की परिकल्पना के आधार पर निर्मित मंदिर में सामने दास के रूप में भगवान हुनमान की प्रतिमा स्थापित है। जानकारों की माने तो मंदिर परिसर में कांच के बड़े-बड़े झूमर लगे हुए थे। इसके अलावा पुराने संगमरमर की टाइल्स में चांदी के सिक्के चिपके हुए थे।
पूजा अर्चना के लिए है विशेष विधान
मंदिर परिसर में पूजा अर्चना के लिए भी विशेष विधान है। यहां अपरस सेवा तहत पूजा अर्चना होती है। मंदिर के मुख्य पुजारी सिले वस्त्र धारण नहीं कर सकते, दूसरे को स्पर्श नहीं करते, मंदिर परिसर की रसोई में जो भोजन बनता है उसी का भोग लगेगा। दूसरे का बनाया भोजन नहीं करेंगे। मुख्य मंदिर के अंदर कोई बाहरी व्यक्ति प्रवेश नहीं कर सकता। इसके अलावा पुजारी वैष्णव हों व दोनों भुजाओं में शंख व चक्र अंकित होना अनिर्वाय है।
मंदिर निर्माण कराकर गुरू को किया था समर्पित
मंदिर निर्माण को लेकर ऐसा मान्यता है कि अमरपाटन के असरार निवासी मोहन राम पाण्डेय घूम-घूम कर व्यापार करते थे। उन्हें स्वप्न आया कि व्यापार से जो मुनाफा होगा उससे तालाब व देवालय का निर्माण कराना। व्यापार करने के बाद उन्हें जो मुनाफा हुआ उससे उन्होंने मोहन राम तालाब व भगवान शिव का मंदिर बनवाकर अपने गुरु राम प्रपन्नाचार्य महाराज पुरानी लंका चित्रकूट को सौंपना चाहा। राम प्रपन्नाचार्य महाराज ने राम मंदिर निर्माण की बात कही। इसके बाद मोहनराम पाण्डेय ने दक्षिण से वास्तु विशेषज्ञों व वेदाचार्यों को बुलाकर मंदिर का निर्माण कराकर गुरुदेव को समर्पित किया। मंदिर के रख रखाव के लिए समिति बनाई गई। पुरानी लंका चित्रकूट के पदेन महंत समिति के अध्यक्ष होते हैं। उन्हीं की देखरेख में मंदिर में सभी गतिविधियां आयोजित होती है।
Published on:
19 Jan 2024 12:20 pm
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