
Lakhpati is not such that this farmer has done special farming
शहडोल- खेती भी लोगों के लिए मुनाफे का सौदा बन रहा है, और लोगों को इसका फायदा भी मिल रहा है। बशर्ते सही तरीके से की जाए। जिले में सोहागपुर विकास खण्ड के ग्राम पंचायत खेतौली के आदिवासी
किसान समयलाल जैविक खेती अपनाकर आज लखपति बन गया है।
जैविक खेती से मिली सफलता
जैविक खेती से किसान समयलाल की खेती की लागत भी कम हुई है, वहीं खेती से फसलों का उत्पादन भी बढ़ा है। किसान समयलाल ने बताया कि उनके पास कुल 4 हेक्टैयर भूमि है जिसमें रासायनिक खादों का उपयोग करके छिटकाव विधि से खरीफ में धान की फसल एवं रबी मे गेंहू और चने की फसल लेता था। सिंचाई के साधन मौजूद होने के बावजूद भी उत्पादन अधिक नहीं होता था, जिससे वो अपने परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं कर पाया था।
उन्होने बताया कि आत्मा परियोजना के अधिकारी क्षेत्र भ्रमण पर खेतौली गांव आए व मैंने उनसे खेती किसानी की जानकारी ली, साथ ही अपने तथा अपने गांव के अन्य कृषकों के खेतों का भ्रमण कराया। उनके द्वारा हमें परंपरागत जैविक खेती के लिए समूह बनाकर ख्ेाती करने की सलाह दी गई। आदिवासी किसान समयलाल ने बताया कि मेरे द्वारा 50 कृषकों का समूह बनाया गया जिसमें 50 एकड़ भूमि का पंजीयन जैविक ख्ेाती के लिए परियोजना संचालक आत्मा समिति द्वारा किया गया। परियोजना संचालक आत्मा द्वारा समूह में सम्मिलित सभी कृषकों को प्रशिक्षण देकर हरी खाद के महत्व को बताया गया एवं धान की फसल ली जाने वाले खेत में ढेंचा लगाने के लिए प्रोत्साहित किया गया। किसानों को आत्मा परियोजना के अधिकारियों द्वारा ढेंचा का बीज उपलब्ध कराया गया, जिसके बाद अधिकारियों के मार्गदर्शन में धान की फसल ली जाने वाले खेत में ढेंचा लगाए। कुछ दिनों बाद विकासखंड तकनीकी प्रबंधक के निर्देशानुसार ढेंचा 30 से 35 दिन की हो जाने पर ढेंचा को प्लाऊ के माध्यम से जमीन में दबा दिया। कुछ समय के बाद हरी खाद जमीन में मिल गई जिससे हरी खाद के सभी पोषक तत्व जमीन में उपलब्ध हो गए।
इसके बाद आत्मा परियोजना की तरफ से चयनित 50 एकड़ रकवा के लिये वर्मी कम्पोस्ट एवं कल्चर व जैविक खाद, और अन्य आदान सामग्री उपलब्ध कराई गई। श्री पद्धति तकनीक के समस्त सिद्धांतों का पालन करते हुए अपने जीवन में प्रथम बार जैविक विधि से रासायनिक खाद का उपयोग किए बिना 10-12 इंच की दूरी पर 12 दिन के धान के पौधों का रोपा लगाया। समूह में कृषि विभाग से कोनीबीडर उपलब्ध कराकर अपने धान की फसलों में 10-12 दिन के अंतर पर कोनोबीडर से फसल निंदाई-गुड़ाई की। खेत में रासायनिक खाद का उपयोग न करके और जैविक खादों का उपयोग करके अपनी जमीन को बंजर होने से बचाया।
Published on:
02 Jan 2018 01:07 pm
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