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महात्मा गांधी से प्रेरित है यह गांव: कबाड़ से तैयार किए चरखा से पूरा परिवार मालामाल

चरखे से तैयार हो रहे बैगा जनजाति के वस्त्र, गाँव के प्रत्येक परिवार में रोजगार का माध्यम बना चरखा

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This village is inspired by Mahatma Gandhi: tribe family made charkha

This village is inspired by Mahatma Gandhi

डिंडोरी. मां खादी की चादर दे दे मैं गाँधी बन जाऊं.... यकीनन यह कविता कभी ना कभी आप सब ने भी पढ़ी होगी। लेकिन खादी शब्द वास्तव में है क्या यह होश संभालने के बाद ही पता चला होगा। दरअसल खादी या खद्दर भारत मे हाँथों से बनाये जाने वाले वस्त्रों को कहते हैं। जो कि सूती रेशम या ऊन से बने हो सकते हैं और सूत बनाने के लिये चरखे का उपयोग किया जाता है। खादी वस्त्रों की विशेषता है कि यह भीषण गर्मी में भी जिस्म को ठंडा रखते हैं और सर्दी में भी ठंड अपने पूरे शबाब पर हो तो यह गर्माहट देने का काम बखूबी करती है। संभवत: इन्ही कारणों और खादी वस्त्रों की माँग के चलते इसके उत्पादन में बढ़ोत्तरी हुई है। जिसका उपयोग विशेष पिछड़े और जंगलों के बीच कस्बाई इलाकों में भी बहुतायत मात्रा में होने लगा है। प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य डिंडोरी जिले के बजाग विकासखंड में एक गाँव सरवाही है। जहाँ के प्रत्येक घर मे सूत कातने चरखा लगा कर रखा गया है। जो कि इनकी आजीविका का साधन भी है। इसके अलावा यह जानना भी दिलचस्प होगा कि इनमें से कुछ एक मेहनत कश बुनकरों ने तो चरखा भी कबाड़ एकत्रित कर जुगाड़ से बना रखा है।

IMAGE CREDIT: patrika

चरखा दे रहा रोजगार
मौके पर ही बुनकर ग्रामीणों ने बताया कि शासन से सहायता प्राप्त गाँधी जी का यह चरखा ही उन्हें रोजगार दे रहा है। गांव के प्रत्येक घर मे युवाओं से लेकर बड़े बुजुर्ग इस रोजगार से लगे हुये है। जिसमे प्रत्येक परिवार माह में दस से बारह हजार रुपये तक कि आय बेहद आसानी से प्राप्त कर लेता है। यदि इन बुनकरों की माने तो यह महीने में चरखे से सूत कात लगभग 30 अलग अलग तरह की साडिय़ाँ तैयार कर लेते हैं। जिनकी कीमत 500 रुपये से लेकर 1500 रुपये तक हो सकती है।

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ऐसे बढ़ाया जा सकता है कारोबार
स्थिति देख यह अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है कि जब बुनकर 10/10 के छोटे छोटे कमरों में मेहनत मशक्कत कर 10 से 12 हजार रुपये प्रतिमाह कमा सकते हैं तो फिर यदि प्रशासन रोजगार के प्रति इनकी मेहनत लगन और जज्बे को ध्यान में रख चरखे के इस छोटे से कारोबार को विस्तार देने में आगे कदम बढ़ाता है तो नि:संदेह संसाधन प्राप्त कर यह बुनकर अधिक से अधिक लोगों को रोजगार उपलब्ध करा सकेंगे। इससे इनकी अतिरिक्त आय में इजाफा तो होगा ही साँथ ही क्षेत्र में विकास के द्वार भी खुलेंगे और ज्यादा से ज्यादा जरूरतमंदों को भी रोजगार प्राप्त होगा।

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दशकों से चला रहे चरखा, तैयार होते हैं वस्त्र
ग्राम सरवाही के चरखा बुनकरों से इस पिछड़ हुये इलाके में खादी उत्पादन को लेकर चर्चा की गई तो पता चला कि वह दशकों से चरखा चलाते आ रहे हैं। उनके द्वारा विशेष जनजाति बैगा के लिए ही इन वस्त्रों का उत्पादन किया जाता है और जब वस्त्र तैयार हो जाते हैं तो वह गाँव .गाँव फेरी लगाकर इन वस्त्रों का विक्रय करते हैं। जिसे की खासकर बैगा महिलाएं बेहद पसंद करती हैं।